‘जब कोचिंग पढ़ रहे बच्चों के बीच बैठे कलेक्टर’: 5 छात्रों से शुरू हुई कोचिंग में अब 1200 बच्चे; फ्री क्लास के लिए भी करना पड़ा संघर्ष – Satna News

‘जब कोचिंग पढ़ रहे बच्चों के बीच बैठे कलेक्टर’:  5 छात्रों से शुरू हुई कोचिंग में अब 1200 बच्चे; फ्री क्लास के लिए भी करना पड़ा संघर्ष – Satna News


सुबह 6 बजे कड़कड़ाती ठंड हो या भीषण गर्मी का दौर… या फिर बरसात का मौसम हो.. न बैठने के लिए टाट और न ही बेंच। खुले आसमान तले सैकड़ों छात्रों की भीड़ वह भी पिन ड्रॉप साइलेंस। फिजिक्स (भौतिक शास्त्र) को जानने और समझने की सैकड़ों विद्यार्थियों की ऐसी ललक

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हायर सेकेंडरी स्कूल व्यंकट क्रमांक-2 से निकलने वाला छात्र-छात्राओं का हुजूम बिहार की सुपर-30 कोचिंग की यादें ताजा कराता है। बस फर्क सिर्फ इतना है कि उसमें 30 स्टूडेंट्स रहते हैं और यहां आंकड़ों की कोई बाध्यता नहीं है। फिजिक्स के टीचर और मौजूदा समय में जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में बतौर योजना अधिकारी आलोक सिंह दो बैच में 1200 से विद्यार्थी फ्री कोचिंग दे रहे हैं। पढ़ने वालों में 11वीं और 12वीं के छात्र शामिल हैं।

शिक्षक दिवस के मौके पर दैनिक भास्कर ने टीचर आलोक सिंह ने बात की और जाना कि कैसे नेकी की क्लास की शुरुआत हुई…

पैसे लेकर पढ़ाया तो समाज के लिए क्या किया…

रामपुर बघेलान के मरौहा गांव के रहने वाले टीचर आलोक सिंह बताते हैं कि गांव में ही शुरुआती शिक्षा हासिल की। किसान परिवार का होने के चलते खेती के साथ ही पढ़ाई में भी मेरी काफी रुचि थी। तब पंडित दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय कानपुर को पढ़ाई के लिए काफी अच्छा माना जाता था। मेरा ननिहाल कानपुर का है, इसलिए मां ने भी इसी संस्थान में पढ़ाने का फैसला किया, पिता ने भी हामी भर दी। 9वीं से 12 तक की पढ़ाई कानपुर में ही हुई। इसके बाद रीवा की एपीएस यूनिवर्सिटी से एमएससी, बीएड किया।

कॉलेज खत्म कर सतना वापस लौटा और सन् 1992 में फिजिक्स के टीचर के तौर पर शिक्षा विभाग में नियुक्ति मिल गई। करीब 20 साल तक जिले के अलग-अलग सरकारी स्कूलों में पढ़ाया। 2012 में उन्होंने कोचिंग पढ़ाने का निर्णय लिया। मैंने बच्चों को फीस लेकर कोचिंग देना शुरू किया। यह सिलसिला 2014 तक चला। इसी दौरान कानपुर जाना हुआ। यहां अपने गुरु उमाशंकर त्रिपाठी से मिला।

गुरुजी ने पूछा- सब कैसा चल रहा है, तब मैंने बताया कि स्कूल में शिक्षा देने के साथ ही कोचिंग भी शुरू की है। मेरे द्वारा फीस लेकर पढ़ाने का पता चलने पर उन्होंने कहा- पैसे लेकर पढ़ाया तो समाज के लिए क्या किया। गुरुजी की यह बात मेरे मन में घर कर गई। गुरु से मिलकर बाहर निकला, तभी फैसला कर लिया कि अब फीस लेकर शिक्षा नहीं दूंगा। वह दिन था और आज का दिन, सिर्फ पढ़ाने से मतलब है, कौन क्या सोचता है, इसकी कोई परवाह नहीं है।

आलोक सर की क्लास में अभी 1200 बच्चे फ्री कोचिंग ले रहे हैं।

आलोक सर की क्लास में अभी 1200 बच्चे फ्री कोचिंग ले रहे हैं।

फ्री कोचिंग देना आसान नहीं था, 2 साल तक विरोध झेलना पड़ा

भास्कर से बातचीत में अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए आलोक सर कहते हैं- निःशुल्क शिक्षा देना आसान नहीं था। शुरुआती 2 साल काफी विरोध झेलना पड़ा। निजी महाविद्यालय के एक कमरे में 5 बच्चों के साथ फ्री कोचिंग की शुरुआत हुई। व्यवसायिक कोचिंग देने वालों ने बच्चों को बरगलाने का प्रयास किया। बच्चों से बोलते थे- जमीन में बैठते हो, न पंखा है, न कूलर है.. ऐसे में पढ़ाई नहीं होती। तुम्हारा भविष्य खराब हो जाएगा।

आलोक सर बड़ी सहजता से बताते हैं, उन लोगों ने काफी प्रयास किया, लेकिन उनकी लाख कोशिशों के बावजूद एक भी छात्र मुझसे अलग नहीं हुआ। आखिरकार वे लोग खुद ही धीरे-धीरे शांत होते गए। यह पूछे जाने पर कि वो लोग ऐसा क्यों करते थे? के जवाब में आलोक सर ने बताया कि हमारी कोचिंग में सुविधाओं के आभाव के बाद भी बच्चों का कारवां जुड़ता जा रहा था, यह बात उन्हें ना गवारा गुजर रही थी।

सुबह 6 बजे से पढ़ाई की शुरुआत होती है, जो 2 घंटे तक चलती है।

सुबह 6 बजे से पढ़ाई की शुरुआत होती है, जो 2 घंटे तक चलती है।

कोरोना काल में हुआ विरोध, परिजनों ने खुद संभाला मोर्चा

कोरोना के दिनों का जिक्र करते हुए आलोक सर ने बताया कि इस वैश्विक महामारी के समय जब सब कुछ थम सा गया था, तब भी हमारी कोचिंग शुरू रही। बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाना शुरू किया। पढ़ाई तो ठीक चल रही थी, लेकिन कई टॉपिक समझने में बच्चों को परेशानी होती थी। ऐसे में हमने क्लास में बैठ कर पढ़ाना शुरू किया।इसका पता चलाते ही विरोध शुरू हो गया। इस बार भी मैंने कुछ नहीं बोला। जो बच्चे पढ़ने आते थे, उनके अभिभावकों ने इस विरोध का डटकर सामना किया और साफ-साफ कह दिया कि हमारे बच्चे हैं, कुछ होगा तो जिम्मेदारी भी हमारी ही है। इस तरह कोरोना काल में भी बच्चों की पढ़ाई अनवरत जारी रही। ईश्वर की कृपा से बच्चे पूरी तरह स्वस्थ्य रहे।

तत्कालीन कलेक्टर अनुराग वर्मा (गोल घेरे में) को पता चला कि क्लास मैदान में लग रही है तो देखने आए। इस दौरान बच्चों के बीच बैठ रहे।

तत्कालीन कलेक्टर अनुराग वर्मा (गोल घेरे में) को पता चला कि क्लास मैदान में लग रही है तो देखने आए। इस दौरान बच्चों के बीच बैठ रहे।

छात्रों के बीच कलेक्टर को बैठा देख चौंक गया

स्कूल के खुले मैदान से हाल तक के सफर का किस्सा सुनाते हुए आलोक सर ने बताया कि एक दिन वे व्यंकट क्रमांक-2 स्कूल के खुले मैदान में बच्चों को पढ़ा रहे थे कि तभी अचानक तत्कालीन कलेक्टर अनुराग वर्मा वहां आ गए। मेरा ध्यान बोर्ड में लिखने की तरफ था तो ध्यान नहीं दिया। जब मैं बोर्ड से बच्चों की तरफ मुड़ा तो देखा कलेक्टर बच्चों के बीच जमीन पर बैठे हैं। उन्होंने मुझसे थोड़ी सी बात की।

आलोक सर ने बताया कि जिले के सबसे बड़े अधिकारी को बच्चों के बीच देखकर पहले तो मैं कुछ समझ नहीं पाया, लेकिन उनके जाने के बाद मुझे पता चला कि बच्चों का एक ग्रुप-2 दिन पहले ही कलेक्टर से मिल कर आया था। बच्चों ने उनसे क्या कहा? क्या नहीं? पर इतना अवश्य हुआ कि बच्चों के सामने, उन्होंने स्कूल परिसर में ही हॉल बनवाने की घोषणा की और वह जल्द बन भी गया।

स्कूल के खुले मैदान में भी लंबे समय तक क्लास लगी। बच्चों को बारिश-ठंड में खुले में पढ़ने में काफी परेशानी होती थी।

स्कूल के खुले मैदान में भी लंबे समय तक क्लास लगी। बच्चों को बारिश-ठंड में खुले में पढ़ने में काफी परेशानी होती थी।

बच्चों से पूछा- कलेक्टर से आपने क्या कहा था

आलोक सर ने बताया कि जब एक दिन उन्होंने बच्चों से पूछा कि कौन-कौन कलेक्टर से मिलने गया था? तो उन बच्चों ने पूरी बात बताई। दरअसल, बच्चों को ठंड एवं बारिश के मौसम में पढ़ने में काफी दिक्कत हो रही थी। इसी लिए बच्चे आपस में तय कर कलेक्टर अनुराग वर्मा से मिले और अपनी समस्या बताई। समस्या जानने कलेक्टर स्वयं बच्चों के बीच पहुंचे थे।

आलोक सर ने बताया कि हाॅल में पढ़ाई शुरू हो गई थी। निःशुल्क कोचिंग की जानकारी मिलने पर वर्तमान कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार एस ने भी 10 लाख के बजट से हाॅल में टाइल्स, खिड़कियों के सीसे एवं साउंड सिस्टम लगवा दिया, ताकि बच्चों के अध्ययन में कोई समस्या न आए।

कलेक्टर वर्मा ने स्कूल परिसर में ही हॉल बनवाने की घोषणा की थी, इसी हॉल में अब बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।

कलेक्टर वर्मा ने स्कूल परिसर में ही हॉल बनवाने की घोषणा की थी, इसी हॉल में अब बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।

दो बैच में 1200 छात्र फ्री कोचिंग पढ़ रहे

आज 600- 600 के 2 बैच में 11वीं एवं 12वीं के बच्चों को शिक्षा देने वाले आलोक सर ने बताया कि 5 बच्चों को पढ़ाने के साथ उन्होंने शुरुआत की। फिर 4 ही दिन बाद 3 और बच्चों ने पढ़ने की जिज्ञासा व्यक्त की। इस तरह सिलसिला 25, 50, 100 और फिर धीरे धीरे बच्चों की संख्या कम होने की जगह बढ़ती ही चली गई। बच्चों की संख्या बढ़ने के साथ ही कोचिंग का स्थान भी बदलता चला गया। व्यंकट क्रमांक-2 स्कूल के खुले मैदान के बाद अब जाकर पिछले साल हॉल की व्यवस्था हो पाई है।

छात्र बोले- सर हर टॉपिक को क्लियर करते हैं

व्यंकट क्रमांक 2 स्कूल परिसर में चल रही आलोक सर की निःशुल्क कोचिंग आज छात्रों के बीच किसी परिचय की मोहताज नहीं है। आलोक सर से ही पढ़ने का जुनून कक्षा-11 के छात्र ध्रुव शुक्ला को शहर से 10 किलोमीटर दूर से खींच कर ले आता है। वह सुबह 5 बजे उठकर सतना आने की तैयारी करता है।

  • ध्रुव बताता है कि वह बस से रोज सतना आता है। आलोक सर से पढ़ने के बाद उसके हर टॉपिक क्लियर हो जाते हैं।
  • 5 किलोमीटर दूर शुक्ला बर्दाडीह से आने वाले छात्र साहिल रजक का भी कुछ इसी तरह मानना है। वह कहता है- आलोक सर के पढ़ाने का तरीका एकदम अलग है।
  • धवारी से आने प्राची प्रजापति कहती है कि सर आज पढ़ाए टॉपिक को अगले दिन किसी से भी रेंडमली पूछ लेते हैं। यदि वह नहीं बता पाया तो फिर से उसी टॉपिक को पढ़ा कर क्लियर करते हैं।



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