यूरिया-डीएपी की होगी छुट्टी
बालाघाट के आगरवाड़ा के रहने वाले किसान रांगडाले बताते हैं कि अगर यूरिया-डीएपी का इस्तेमाल करते हैं तो भूमि में मौजूद सूक्ष्म जीव मर जाते हैं. ऐसे में भूमि से मिलने वाले पोषक तत्व भी फसल को नहीं मिलते हैं. लेकिन, गोबर-गौमूत्र बनी खाद से सूक्ष्म जीवों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति पर भी असर पड़ता है. फसल से निकले उत्पाद भी पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं और भूमि की उर्वरा शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है. इस खाद को जीवामृत कहते हैं, इसे बनाना बेहद आसान है.
जीवामृत बनाने के लिए किसान भाई को पशुपालन करना जरूरी है. ऐसे में एक ड्रम, 200 लीटर पानी, 10 किलो गाय का ताजा गोबर, 10 लीटर गोमूत्र की जरूरत होती है. वहीं, 2 किलो चने का आटा और चिकटा गुड़ भी लगता है. किसी पेड़ या मेड़ के नीचे की 150 ग्राम मिट्टी की जरूरत होती है.
86 घंटे में खाद तैयार
जीवामृत बनाने के लिए एक ड्रम में पानी, गाय का गोबर और गौमूत्र के साथ पेड़ या मेड़ के नीचे लाई मिट्टी को गुड़ और चने के बेसन के साथ अच्छी तरह मिला देना चाहिए. फिर करीब 96 घंटे तक इसे छांव में ढक कर रखना चाहिए. फिर जरूरत के हिसाब इसका इस्तेमाल करना चाहिए. ये एकड़ के लिए पर्याप्त है.
इस दमदार खाद का इस्तेमाल आप सिंचाई के साथ यानी ड्रिप में भी दे सकते हैं. वहीं, सीधे फसल पर भी छिड़क सकते हैं. वहीं, जुताई के समय भी आप छिड़काव कर सकते हैं. इसके इस्तेमाल के लिए किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि खेत में नमी हो.
फायदे जान रह जाएंगे दंग
जीवामृत के इस्तेमाल से भूमि में केंचुए की संख्या को बढ़ाता है, जो भूमि को भुरभुरी बनाने में मदद कर सकता है. साथ ही खेत में NPK जैसे जरूरी पोषक तत्वों भी देता है. पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है. फसल की पैदावार और गुणवत्ता में सुधार करता है.