मप्र के ग्वालियर-चंबल और विंध्य क्षेत्र में जन्मदर सबसे ज्यादा है, यानी इन इलाकों में सबसे ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं। वहीं मालवा और महाकौशल के इलाकों में ये जन्मदर कम है। ये खुलासा रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे की रिपोर्ट में
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रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 10 सालों में मध्य प्रदेश में जन्मदर में 12.8 फीसदी की कमी आई है, लेकिन अभी भी ग्रामीण इलाकों में बच्चों के पैदा होने की दर शहरी क्षेत्र से ज्यादा है। वहीं मप्र की आबादी देश की औसत आबादी की तुलना में तेजी से बढ़ रही है। पढ़िए रिपोर्ट
क्या है सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम भारत में जन्म और मृत्यु से संबंधित डेटा एकत्र करने के लिए 1969-70 से सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) की शुरुआत की गई। इसका उद्देश्य जनसंख्या और स्वास्थ्य से जुड़े प्रमुख संकेतकों की लगातार निगरानी करना है, जिससे सरकार को स्वास्थ्य सुधार और इससे जुड़ी नीतियां बनाने में मदद मिल सके।
सर्वे के लिए चयनित सैंपल यूनिट्स का सर्वेक्षण किया जाता है, जिसमें क्षेत्र की जनसंख्या, परिवारों की संख्या और उनके सामाजिक-आर्थिक विवरण एकत्रित किए जाते हैं। सर्वें के लिए 2023 में देशभर से 8839 सैंपल लिए गए थे, जिनमें 4960 शहरी और 3879 ग्रामीण से लिए गए हैं। मध्यप्रदेश से 448 सैंपल कलेक्ट किए गए, जिनमें 285 शहरी और 163 ग्रामीण से थे।
ग्वालियर-विंध्य में जन्म दर बाकी क्षेत्रों से ज्यादा आरएसआर की रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में जन्मदर में अंतर है। ग्वालियर और विंध्य क्षेत्र में सबसे अधिक बच्चे जन्म ले रहे हैं। इन क्षेत्र में रीवा, सीधी, सतना, शहडोल, सिंगरौली, ग्वालियर, भिंड, मुरैना, दतिया, पन्ना, टीकमगढ़ जैसे जिले शामिल हैं। यहां सबसे अधिक जन्मदर 24.1 फीसदी से अधिक दर्ज की गई है, जो प्रदेश के औसत से अधिक है।
प्रदेश के बाकी क्षेत्रों में जन्मदर प्रदेश की औसत के बराबर या कम है। मालवा, महाकौशल, दक्षिण और मध्य क्षेत्र में जन्मदर 20 से 24 फीसदी के बीच है। इन क्षेत्रों में इंदौर, भोपाल, जबलपुर, विदिशा, बालाघाट, छिंदवाड़ा, खंडवा, खरगोन, सागर, बैतूल, देवास, सीहोर, नर्मदापुरम, सिवनी, मंडला, डिंडोरी, झाबुआ जैसे जिले शामिल हैं।

गांवों में अधिक पैदा हो रहे बच्चे एक हजार की जनसंख्या पर एक साल में पैदा हुए जीवित बच्चों की संख्या को क्रूड बर्थ रेट कहा जाता है। 2023 के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में क्रूड बर्थ रेट 22.5 फीसदी है जो देश के औसत 18.4 फीसदी से काफी अधिक है। इसका मतलब प्रदेश की जनसंख्या देश की अपेक्षा तेजी बढ़ रही है।
मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 24.4% जबकि शहरी क्षेत्रों में 17.5% है। ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की अपेक्षा अधिक बच्चे पैदा हो रहे हैं, लेकिन बीते दस सालों में जन्मदर में शहरों 9.1% की तुलना में ग्रामीण इलाकों में 11.9 फीसदी की कमी आई है।

शहरी इलाकों में लड़कियों की शादी की औसत उम्र 23 साल मध्य प्रदेश में 100 में से 16.8 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से पहले ही कर दी जाती है। 19.2 फीसदी लड़कियों की शादी 18 से 20 साल के बीच में हो जाती है। 21 से अधिक आयु में विवाह करने वाली लड़कियां 23.8% हैं, जो भारत के औसत 24.4% से कम है। मध्य प्रदेश में महिलाओं की कुल औसत विवाह आयु 22.1 साल है, जो राष्ट्रीय औसत 22.9 साल से कम है।
ग्रामीण क्षेत्रों में औसत विवाह आयु 21.5 साल है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 23.9 साल है। मप्र में 62.5 फीसदी लड़कियों की शादी 21 साल से ज्यादा उम्र होने के बाद हुई है। हालांकि ग्रामीण और शहरी इलाकों में इसमें काफी अंतर है। ग्रामीण इलाकों में 21 साल से ज्यादा उम्र की लड़कियों की शादी का प्रतिशत 57.5% और शहरी में ये 80.2% है।

कम उम्र में मां बनने की प्रवृत्ति अभी भी ज्यादा 2023 के आंकड़ों के अनुसार, 20-24 वर्ष की आयु वर्ग में महिलाओं की प्रजनन क्षमता सबसे अधिक है। मध्य प्रदेश में 20-24 वर्ष की आयु वर्ग में प्रजनन दर सबसे अधिक एक हजार में महिलाओं में 343.6 रही। 15-19 वर्ष की आयु में यह 324.3 दर्ज हुई, जो बताता है कि कम उम्र में मां बनने की प्रवृत्ति राज्य में अभी भी अधिक है।
25-29 वर्ष की आयु वर्ग में दर 228.6 रही, जबकि 30-34 वर्ष में 100.2 जो 45-49 वर्ष में घटकर 3.9 रह गई। इन आंकड़ों से पता चलता है कि प्रदेश में विवाह की शुरुआत में मां बनने का ट्रेंड सबसे अधिक है, हालांकि बीते 10 सालों में 30 की उम्र के बाद मां बनने का ट्रेंड 22 फीसदी बढ़ा है।

मातृ मृत्यु दर के आंकड़ों में मामूली सुधार 2023 के आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश 100 में से 91.1 प्रसव सरकारी अस्पतालों में हुए। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या 94.4% और शहरी क्षेत्रों में 77.6% रही। निजी अस्पतालों में कुल 6.8% प्रसव दर्ज किए गए, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह प्रतिशत 22.0% तक पहुंचा। बिना चिकित्सकीय देखरेख के प्रसव का प्रतिशत लगभग 0.6% रहा। भारत में 71.5% प्रसव सरकारी अस्पतालों में हुए।
मप्र में एक लाख प्रसूताओं में से 142 की हर साल मौत हो जाती है, जबकि राष्ट्रीय औसत 88 है। प्रदेश में मातृ मृत्यु दर का औसत राष्ट्रीय औसत के करीब दोगुना है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में बीते 10 सालों में मातृ मृत्यु दर के आंकड़ों में मामूली कमी आई है, जो 159 से घटकर 142 हो गई है, यानी सिर्फ 17 अंक का सुधार हुआ है।
शिशु मृत्यु दर में 30 फीसदी की कमी
2021-23 के आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश में शिशु मृत्यु दर (IMR) में 30.3% की कमी आई है। यह 2011-13 के 56.4 से घटकर 2021-23 में 39.3 पर पहुंचा है, लेकिन राष्ट्रीय औसत 26.3 की तुलना में यह अभी भी चिंताजनक है। ग्रामीण क्षेत्रों में 29.8% कमी दर्ज की गई, जो 60.0 से घटकर 42.1 है। शहरी क्षेत्रों में 37.6 से घटकर 28.7 फीसदी शिशु मृत्यु दर दर्ज की गई है।
मध्य प्रदेश के दक्षिण, दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में शिशु मृत्यु दर 41 फीसदी या उससे अधिक है। इनमें छिंदवाड़ा,बुरहानपुर, खंडवा, बैतूल, सिवनी, मंडला, बालाघाट, डिंडोरी, अनूपपुर, जबलपुर, कटनी जैसे जिले शामिल हैं। विंध्य, ग्वालियर-चंबल, मालवा, और मध्य क्षेत्र में यह औसत 31 से 40 के बीच है।

एक्सपर्ट बोले- गांवों की मानसिकता बदलने में समय लगेगा भोपाल के एमएलबी कॉलेज के समाज शास्त्र विभाग की एचओडी डॉ. तैयबा खातून प्रदेश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के जन्मदर के अंतर का प्रमुख कारण शिक्षा और जागरूकता को मानती हैं। उनके मुताबिक महिलाओं की शिक्षा पर ध्यान देना जरूरी है, इसके लिए परिवार और समाज जिम्मेदार है। लड़कियों के 18 साल का होते ही परिजन और समाज उसके विवाह के लिए चिंतित होने लगता है।
ग्रामीण परिवेश में महिला शिक्षा और रोजगार के कोई विशेष साधन न होने के कारण उनके पास विवाह के अलावा को ऑप्शन नहीं होता। वहां लड़कियों को रोल मॉडल भी नहीं मिलता। कम उम्र में विवाह के कारण प्रजनन दर बढ़ती है। गांवों में समाज की मानसिकता अभी उतना विकसित नहीं हो पाई है कि लड़कियों की देरी से शादी की जाए।
इसके उलट शहरी और शिक्षित इलाकों में अब महिलाएं शिक्षा, करियर पर ध्यान दे रहीं हैं। उनके लिए शादी दूसरी प्राथमिकता है। देर से शादी होगी तो शहरों की जन्मदर भी कम होगी।
