Health News: यहां दवाई से नहीं, जादू की झप्पी से होता है इलाज, जानें कैसे 

Health News: यहां दवाई से नहीं, जादू की झप्पी से होता है इलाज, जानें कैसे 


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Ajab Gajab News: डॉक्टरों का कहना है कि मां की गर्माहट, धड़कन और स्पर्श ही नवजात के लिए सबसे बड़ी दवा साबित हो रही है. इस अनोखे तरीके से बच्चों की सेहत में तेजी से सुधार देखने को मिल रहा है. बीते दो साल वर्षों में ढाई हजार से ज्यादा नवजात इस थैरेपी से स्वस्थ होकर घर लौट गए है. 

खरगोन : मध्य प्रदेश का एक सरकारी अस्पताल ऐसा भी है, जहां नवजात शिशुओं को दवाई, गोली या इंजेक्शन से नहीं, बल्कि जादू की झप्पी से ठीक किया जाता है. जी हां, यह अनोखी थैरपी खरगोन में अपनाई जा रही है. साल 2003 में अभिनेता संजय दत्त की फिल्म ”मुन्ना भाई MBBS” की तरह यहां भी मां अपने बच्चे को जादू की झप्पी देती है. हैरानी की बात तो ये है कि, इस थैरेपी से बच्चे जल्दी स्वस्थ भी हो रहे है.

बता दें कि, जिला अस्पताल के एसएनसीयू (नवजात शिशु गहन चिकित्सा कक्ष) में रोज़ाना कई कमजोर और प्री-मेच्योर बच्चों को मां अपने सीने से लगाकर जादुई झप्पी देती है. डॉक्टरों का कहना है कि मां की गर्माहट, धड़कन और स्पर्श ही नवजात के लिए सबसे बड़ी दवा साबित हो रही है. इस अनोखे तरीके से बच्चों की सेहत में तेजी से सुधार देखने को मिल रहा है. बीते दो साल वर्षों में ढाई हजार से ज्यादा नवजात इस थैरेपी से स्वस्थ होकर घर लौट गए है.

कंगारू से सीखी थैरेपी 

एसएनसीयू प्रभारी डॉक्टर पवन पाटीदार ने बताया कि, इसे कंगारू मदर केयर थैरेपी कहा जाता है. वर्ष 2024 से इस थैरेपी की शुरुआत हुई. यह नाम कंगारू के व्यवहार से लिया गया है, जो अपने बच्चे को थैली में सुरक्षित रखता है. उसी तरह, जब मां अपने बच्चे को सीने से लगाती है, तो नवजात के शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है, इम्युनिटी मजबूत होती है और उसकी ग्रोथ तेजी से होती है. कई बार जरूरत पड़ने पर पिता या परिवार का अन्य सदस्य भी इस थैरेपी को अपना सकता है.

दवाओं के साइड इफेक्ट्स से भी बचते है

अस्पताल में थैरेपी शुरू होने के बाद अब नवजातों का इलाज दवाई, गोली या इंजेक्शन के बिना हो रहा है. एंटीबायोटिक का इस्तेमाल भी काफी कम हो गया है. बच्चे बिना दवाओं के तेजी से ठीक हो रहे हैं और दवाओं के साइड इफेक्ट्स से भी बच रहे हैं. डॉक्टरों का कहना है कि इस थैरेपी से न सिर्फ नवजात को फायदा मिलता है, बल्कि मां-बच्चे का रिश्ता भी मजबूत होता है. अस्पताल में भर्ती हर मां को इस प्रक्रिया की पहले ट्रेनिंग दी जाती है.

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