तीन साल से हर रोज 70 रोटियां खा रही महिला: फिर भी भूख नहीं मिटती, कहती है- मुझे अभी और खाना है – rajgarh (MP) News

तीन साल से हर रोज 70 रोटियां खा रही महिला:  फिर भी भूख नहीं मिटती, कहती है- मुझे अभी और खाना है – rajgarh (MP) News


राजगढ़ जिले के एक छोटे से गांव में, 28 वर्षीय मंजू सौंधिया एक रहस्यमय बीमारी से जूझ रही है, जिसने उसके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है। तीन साल पहले तक, मंजू एक खुशहाल गृहिणी थीं, जो अपने परिवार के साथ सामान्य जीवन जी रही थीं। लेकिन अब, वह हर समय भूख

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“मुझे रोटी चाहिए… और फिर से रोटी चाहिए,” यह पुकार अब मंजू के घर में हमेशा गूंजती रहती है, जो एक दिमागी विकार का संकेत है जिसे डॉक्टर ईटिंग डिसऑर्डर बता रहे हैं। लेकिन इस बीमारी के पीछे का रहस्य क्या है? एक स्वस्थ महिला अचानक रोटी की गुलाम कैसे बन गई?

मंजू एक ऐसी अनजानी बीमारी की गिरफ्त में फंसे परिवार की दास्तां है, जिसने न केवल उनकी खुशियों को छीन लिया है, बल्कि समाज और प्रशासन के सामने भी एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। गरीबी में फंसा यह परिवार अब मदद की गुहार लगा रहा है।

भास्कर टीम ने इस बीमारी को लेकर नेवज गांव की मंजू सौंधिया के भाई और डॉक्टर से बातचीत की। डॉक्टर ने ईटिंग डिसऑर्डर के बारे में बताया। मंजू को यह बीमारी कैसे और कब लगी और अब वह क्या-क्या करती हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…

मंजू सौंधिया अधिकांश बीमार रहती है और पलंग पर ही लेटी रहती हें।

तीन साल पहले तक सब कुछ था सामान्य

तीन साल पहले तक, मंजू सौंधिया का जीवन सामान्य था। सिंगापुरा गांव के राधेश्याम सौंधिया से विवाह के बाद, उनके जीवन में दो बच्चे आए – छह साल की बेटी और चार साल का बेटा, जो उनकी सबसे बड़ी खुशी थे। तीन साल पहले तक मंजू पूरी तरह स्वस्थ थीं, जो घर संभालती थीं, बच्चों की देखभाल करती थीं और अपने परिवार के साथ सुखी जीवन जी रही थीं।

लेकिन अचानक उनकी आदतें बदल गईं। पहले उन्हें हल्की कमजोरी महसूस हुई, फिर बार-बार खाने की इच्छा होने लगी, जो धीरे-धीरे एक विकार में बदल गई। अब मंजू का पूरा दिन रोटी और पानी के बीच बीतता है। कभी 20 रोटियां, तो कभी 60 से 70 रोटियां खाने के बाद भी वह कहती हैं, “मुझे भूख नहीं लगती… बस रोटी चाहिए।”

राजगढ़ का नेवज गांव, जहां पर मंजू अपने भाई के साथ रहती है।

राजगढ़ का नेवज गांव, जहां पर मंजू अपने भाई के साथ रहती है।

इलाज की खोज में दौड़ती बेबसी

मंजू के परिवार ने हर संभव इलाज की कोशिश की। राजस्थान के कोटा, झालावाड़, इंदौर, भोपाल, राजगढ़ और ब्यावरा में डॉक्टरों से संपर्क किया गया। इस मामले में जब डॉ. कोमल दांगी, एमडी मेडिसिन से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि यह महिला छह माह पहले मेरे पास आई थी। जब उसे लाया गया था, तो वह घबराई हुई थी। उपचार हेतु भर्ती करके इलाज किया गया। उसके बाद एक-दो बार वह उपचार के लिए पुनः आई और बताने लगी कि उसे कमजोरी महसूस हो रही है। उसके लिए मल्टीविटामिन की दवाइयां दी गईं।

डॉ. श्री दांगी ने बताया कि यह महिला वर्तमान में ईटिंग डिसऑर्डर नाम की बीमारी से जूझ रही है। इस बीमारी में ऐसा लगता है कि उसने खाने से परहेज कर लिया हो और अपने मन को शांत करने के लिए बार-बार रोटी खाती है। पानी पीती रहती है। श्री दांगी ने बताया कि उसे भोपाल के साइकॉटिक चिकित्सक डॉ. आर. एन. साहू का पता दिया गया, ताकि वहां पर वह इलाज करा सके।

बताया जा रहा है कि जब भी वह अन्य दवाएं खाती है तो उसे लूज मोशन की समस्या हो जाती है। इसलिए वह दवाइयां नहीं ले पा रही है। डॉ. कोमल दांगी ने पीड़ित महिला के परिवारवालों से कहा कि आप उसकी रोटी खाने की आदत छुड़वाएं। यदि वह रोटी मांगे तो खिचड़ी, फल-फूल या अन्य प्रकार का संतुलित भोजन दें, ताकि मानसिक रूप से उसकी आदत में सुधार हो।

मंजू का कई डॉक्टरों से इलाज कराया गया, लेकिन अभी तक कोई फायदा नहीं हुआ है।

मंजू का कई डॉक्टरों से इलाज कराया गया, लेकिन अभी तक कोई फायदा नहीं हुआ है।

भाई चंदरसिंह बोला-टाइफाइड के बाद बिगड़ी हालत

नेवज निवासी मंजू के भाई चंदरसिंह सौंधिया ने बताया कि उनकी बहन मंजू का विवाह सिंगापुरा गांव के राधेश्याम सौंधिया से हुआ है। मंजू के एक 6 वर्षीय बेटी और 4 वर्षीय बेटा है, जो वर्तमान में ससुराल में ही हैं। उनकी बहन समय-समय पर ससुराल आती-जाती रहती है। पहले उसे टाइफाइड हुआ था, जिसके बाद वह ठीक हो गई थी। लेकिन पिछले तीन सालों से उसे रोटी खाने की अजीब बीमारी ने घेर रखा है। कभी-कभी वह 20 से 30 रोटी खाती है, तो कभी 60 से 70 रोटी तक खा जाती है।

आर्थिक तंगी से इलाज कराना मुश्किल

चंदरसिंह ने बताया कि मंजू के ससुराल वालों ने भी उसका उपचार कराया है। वे भी इलाज करवा रहे हैं, लेकिन कोई आराम नहीं मिल रहा है। इलाज में उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई है और उन्हें अभी तक कोई सरकारी मदद नहीं मिली है। अब उनके पास इलाज के लिए पैसे भी नहीं बचे हैं और मदद मिलने पर ही उपचार संभव है। चंदरसिंह ने बताया कि डॉक्टर कहते हैं कि यह मानसिक बीमारी है। लेकिन उन्होंने मानसिक डॉक्टर को भी दिखाया, जिन्होंने कहा कि कोई मानसिक बीमारी नहीं है।

नेवज गांव में मंजू का घर, जहां वह भाईयों के साथ रहती है।

नेवज गांव में मंजू का घर, जहां वह भाईयों के साथ रहती है।

मदद की गुहार और भविष्य की चिंता

मंजू की बीमारी न केवल उसके लिए, बल्कि पूरे परिवार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन गई है। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई है कि अब इलाज कराना भी मुश्किल हो गया है। परिवार ने कई बार सरकारी सहायता के लिए आवेदन किया है, लेकिन उन्हें अभी तक कोई राहत नहीं मिली है। चंदरसिंह सौंधिया ने संबंधित प्रशासन और समाजसेवी संगठनों से अपील की है कि वे उनकी बहन मंजू को सही इलाज दिलाने में मदद करें, ताकि वह एक सामान्य जीवन जी सके। उन्होंने कहा, “हमने हर जगह इलाज के लिए हाथ फैलाए, पर कोई ठोस सहायता नहीं मिली। अगर सरकार हमारी मदद नहीं करेगी, तो मंजू की स्थिति और बिगड़ती जाएगी।



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