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Paddy Crop Diseases: धान की फसल को पत्तियों से लेकर बालियों तक जकड़ने वाला झुलसा रोग (ब्लास्ट) किसानों के लिए बड़ा खतरा है. जानिए कैसे इससे फसल को बचाया जा सकता है. (रिपोर्ट: शिवांक द्विवेदी/सतना)
धान की फसल इस समय खेतों में लहलहा रही है लेकिन इसी बीच झुलसा (ब्लास्ट) रोग किसानों की चिंता बढ़ा रहा है. यह रोग धान की पत्तियों और तनों को नुकसान पहुंचाने के साथ साथ बालियों पर भी असर डालता है.

खासकर तब जब धान की बालियां निकलने लगती हैं तभी झुलसा रोग तेजी से फैलता है और दानों के बनने की प्रक्रिया को रोक देता है. इसके कारण बालियों पर भूरे-काले धब्बे पड़ने लगते हैं साथ ही दाने भी नहीं बन पाते और पूरा पौधा कमजोर होकर झुक जाता है.

विशेषज्ञों के अनुसार झुलसा रोग सबसे पहले पत्तियों पर असर दिखाता है. पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और धीरे-धीरे पौधे का विकास रुक जाता है. अगर समय पर नियंत्रण न किया जाए तो यह रोग पूरे खेत में फैल सकता है.

धान की बालियों तक पहुंचने पर नुकसान और भी गंभीर हो जाता है जिससे फसल की पैदावार आधी रह जाती है. यही वजह है कि किसान इसे धान की खेती के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं.

धान की बालियों तक पहुंचने पर नुकसान और भी गंभीर हो जाता है जिससे फसल की पैदावार आधी रह जाती है. यही वजह है कि किसान इसे धान की खेती के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं.

लोकल 18 से बातचीत में खाद-बीज विशेषज्ञ अमित सिंह ने बताया कि झुलसा रोग को रोकने के लिए सबसे पहले किसानों को रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करना चाहिए. इसके साथ ही नाइट्रोजन का सीमित उपयोग करना जरूरी है क्योंकि अधिक नाइट्रोजन झुलसा को बढ़ावा देता है.

झुलसा रोग के उपचार के लिए ट्राइसाइक्लाज़ोल या मैन्कोजेब जैसे कवकनाशी का छिड़काव काफी कारगर है. वहीं इज़ुकी और अमिस्टार टॉप फंगीसाइड का प्रयोग झुलसा को रोकने में बेहतर असर दिखाता है.

विशेषज्ञों के मुताबिक, एसएसपी डीएपी से सस्ता होता है और इसमें सल्फर व कैल्शियम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो डीएपी में अनुपस्थित रहते हैं.

अगर झुलसा रोग शुरुआती या हल्के स्तर पर हो तो किसान घरेलू उपायों का सहारा भी ले सकते हैं. नीम के फल और पत्तियों से बना हुआ जैविक कीटनाशक खेतों में छिड़काव करने पर असरदार साबित होता है. यह न सिर्फ किफायती है बल्कि मिट्टी और फसल के लिए भी सुरक्षित रहता है.