आइए जानें केले की खेती के बारे में
डाक्टर गौतम के अनुसार, सबसे पहले जमीन के बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए. केले की खेती कई तरह की भूमि में की जा सकती है. बशर्ते उस भूमि में पर्याप्त उर्वरता, नमी और अच्छा जल निकास हो. किसी भी मिट्टी में केले की खेती के लिए उपयुक्त बनाने के लिए जरूरी है कि मृदा की संरचना को सुधारा जाए, पानी की सही व्यवस्था हो. केला 4.5 से लेकर 8.0 तक पीएच मान वाली मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन केले की खेती के लिए बलुआ या दोमट मिट्टी उपजाऊ मानी जाती है.
केले के बारे में कहा जाता है कि इसकी खेती सही ढंग से करें तो मुनाफा कई गुना तक बढ़ जाता है. सही खेती के लिए कहा जाता है कि पौधे से पौधे के बीच का गैप 6 फीट होना चाहिए. इस लिहाज से एक एकड़ में 1250 पौधे आसानी से और सही ढंग से बढ़ते हैं. पौधों के बीच की दूरी सही हो तो फल भी सही और एक समान आते हैं. जहां तक लागत की बात है तो प्रति एकड़ डेढ़ से पौने दो लाख रुपये तक आती है. बेचने की बात करें तो एक एकड़ की पैदावार 3 से साढ़े तीन लाख रुपये तक में बिक जाती है. इस लिहाज से एक साल में डेढ़ से दो लाख रुपये तक का मुनाफा हो सकता है.
भारत में लगभग 500 किस्में उगाई जाती हैं, लेकिन एक ही किस्म का विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नाम है. रीवा कृषि महाविद्यालय के पास केला की 79 से ज्यादा प्रजातियां संग्रहित हैं. केला का पौधा बिना शाखाओं वाला कोमल तना से निर्मित होता है, जिसकी ऊंचाई 1.8 मी. से लेकर 6 मी. तक होता है. इसके तने को झूठा तना या आभासी तना कहते हैं क्योंकि यह पत्तियों के नीचले हिस्से के संग्रहण से बनता है. असली तना जमीन के नीचे होता है जिसे प्रकन्द कहते हैं. इसके मध्यवर्ती भाग से पुष्पक्रम निकलता है. ये सकर पतली और नुकीली पत्तियों वाले (तलवार की तरह) होते है. देखने में कमजोर लगते है, लेकिन प्रवर्धन के लिए अत्यधिक उपयुक्त होते हैं. यह सकर चौडी पत्तियों वाले होते हैं. देखने में ये मजबूत लगते हैं लेकिन आंतरिक रूप से ये कमजोर होते हैं. प्रवर्धन के लिए इनका प्रयोग वर्जित है. सकर सदैव स्वस्थ उच्च गुणवत्ता वाली किस्मों के पौधों से ही लेना चाहिए. जिसमें रोग और किड़ों का प्रकोप बिल्कुल न हो. दो तीन माह पुराना ओजस्वी सकर प्रवर्धन के लिए अच्छा होता है. केले के प्रकन्द से ही नए पौधे तैयार हो सकते हैं. बहुत अधिक पौधे जल्द तैयार करने के लिए पूरा प्रकन्द या इसके टुकड़े काटकर प्रयोग में लाते हैं.
कैसे लगाएं पौधे?
पालीथिन थैले में 8-10 इंच उंचाई के ऊतक संवर्धन द्वारा तैयार पौधे रोपण के लिए उपयुक्त होते हैं. पॉलीथिन के पैकेट को तेज चाकू या ब्लेड से काटकर अलग कर देते हैं तथा पौधों को निकाल लेते है. ध्यान यह देना चाहिए कि मिट्टी के पिंडी न फूटने पाए.
इस प्रकार रोपण के बाद 12-13 माह में ही केला की पहली फसल प्राप्त हो जाती है. ऊतक संवर्धन विधि से तैयार पौधों से औसत उपज 30-35 किलोग्राम प्रति पौधा तक मिलती है.
पहली फसल लेने के बाद दूसरी खुटी फसल (रैटून) में गहर 8-10 माह के भीतर पुनः आ जाती है. इस प्रकार 24-25 माह में केले की दो फसलें ली जा सकती हैं जबकि प्रकन्दों से तैयार पौधों से सम्भव नहीं है.
ऐसे पौधों के रोपण से समय तथा धन की बचत होती है. परिणाम स्वरूप, पूंजी की वसूली जल्दी होती है. यानी लाखों रुपये की सालाना किसानों को कमाई होती है.