“अब तो मुझे लगता ही नहीं कि मुझ में कोई कमी है। मैं सब कुछ कर सकती हूं।” यह कहना है मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के एक छोटे से गांव राक्सी की दुर्गा येवले (यादव) का, जिन्होंने अपनी प्रतिभा और दृढ़ संकल्प से यह साबित कर दिया है कि कोई भी कमी इंसान को आगे
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दृष्टिहीन दुर्गा का चयन भारतीय महिला ब्लाइंड क्रिकेट टीम में हुआ है। वह 11 से 25 नवंबर तक भारत में होने वाले पहले महिला टी-20 ब्लाइंड वर्ल्ड कप में भारत की टीम में शामिल रहेंगी।
महिला टी-20 ब्लाइंड वर्ल्ड कप में चयन होने पर भास्कर टीम ने दुर्गा येवले से बात की और उनके सफर को जाना। पढ़िए सिलसिलेवार उनका संघर्ष…
दुर्गा येवले: संघर्ष से विश्व कप तक का सफर
2003 में जन्मीं दुर्गा ने अपनी शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल से शुरू की। शिक्षक नत्थू वडुकले और पिता झब्बू येवले ने उनका मार्गदर्शन किया, जिसके बाद वे बैतूल छात्रावास और फिर पाढर ब्लाइंड स्कूल पहुंचीं। इंदौर के महेश दृष्टिहीन कल्याण संघ छात्रावास में पढ़ाई के दौरान, उन्हें क्रिकेट में रुचि आई।
नवंबर 2022 में, इंदौर में आयोजित एक ब्लाइंड क्रिकेट कैंप में, क्रिकेट एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड इन मध्यप्रदेश के अध्यक्ष सोनू गोलकर ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए उन्हें जिला स्तरीय टीम में खेलने का अवसर दिया। इंदौर के लिए खेले गए मैचों में उनके प्रदर्शन के आधार पर उनका मध्यप्रदेश की टीम में चयन हुआ। 2023 में बेंगलुरु, 2024 में हुबली और 2025 में केरल में राष्ट्रीय स्तर पर उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन ने उन्हें भारतीय टीम तक पहुंचाया।

भारतीय टीम में मध्यप्रदेश की तीन खिलाड़ी
- कर्नाटक की दीपिका टीसी कप्तान
- महाराष्ट्र की गंगा एस कदम उपकप्तान
- मध्य प्रदेश से दुर्गा येवले, सुषमा पटेल और सुनीता सराठे भी टीम में शामिल हैं
- भारत, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, नेपाल, श्रीलंका और अमेरिका की टीमें भाग लेंगी
- कुल 21 लीग मैच, दो सेमीफाइनल और एक फाइनल होगा

दुर्गा बोली-फैमिली को टीचर ने बताया ब्लाइंड हूं
दुर्गा येवले ने बताया कि मेरी फैमिली को तो पता ही नहीं था कि मैं ब्लाइंड हूं। मेरी क्लास टीचर ने बताया कि आपका विजन कम है। मैं ब्लैक बोर्ड पर नहीं देख पाती थी, देखकर लिख भी नहीं पाती थी। शिक्षक ने बताया घर पर कि यह ब्लाइंड है। इसे ब्लाइंड स्कूल में पढ़ाना चाहिए, ये नॉर्मल स्कूल में नहीं पढ़ पाएगी। उसके बाद मैंने कक्षा सातवीं से ग्रेजुएशन तक ब्रेल लिपि से पढ़ाई की।
दुगार् ने बताया कि जब मेरे घरवालों को पता चला कि मैं सिर्फ छह मीटर तक ही देख पाती हूँ, तो वे चिंतित हो गए। उन्हें यह जानकर दुख हुआ कि मेरा विजन कम हो रहा है। लेकिन उन्होंने मुझे हिम्मत दी और कहा कि पढ़ाई करो और मेहनत करो।
मुझे भी चिंता होने लगी कि मैं अब क्या करूंगी, मेरा विजन कम होता जा रहा है। मैंने सोचा कि भविष्य में मैं कैसे कर पाऊंगी जब मैं पूरी तरह से ब्लाइंड हो जाऊंगी। पहले मेरा विजन 40 था, लेकिन अब यह कम हो गया है और मैं सिर्फ 6 मीटर तक ही देख पाती हूं।

अब लगता है मुझमें कोई कमी नहीं है
ब्लाइंड क्रिकेट में तीन कैटेगरी होती हैं-बी1, बी2 और बी3… बी1 में वो लोग होते हैं जो पूरी तरह से ब्लाइंड होते हैं। बी2 वो होते हैं जो चार मीटर तक देख सकते हैं और बी3 वो होते हैं जो छह मीटर तक देख सकते हैं।
मेरा सिलेक्शन जिले से लेकर इंडिया टीम तक के लिए हुआ है। अब मैं वर्ल्ड कप खेलूंगी, और मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। ऐसा लगता है कि मेरी मेहनत काम आ गई। अब तो मुझे लगता ही नहीं कि मुझ में कोई कमी है, और मैं सब कुछ कर सकती हूँ।
दुर्गा ने कहा-टीचर नहीं करती थीं सपोर्ट
दुर्गा ने कहा- जब मेरा सिलेक्शन जिले में हुआ था, तो मैं दृष्टिहीन कल्याण संघ हॉस्टल इंदौर में रहती थी। वहां टीचर्स मुझे बिल्कुल भी सपोर्ट नहीं करती थीं। वे कहती थीं, ‘अरे, यह तो ऐसा ही गेम है। इसमें क्या करोगी तुम?’ लेकिन क्रिकेट एसोसिएशन भोपाल के कुछ लोगों ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। वे मुझे टूर्नामेंट खेलने के लिए ले जाते थे।
मैडम छुट्टियां नहीं देती थीं, तब हॉस्टल की छुट्टी और परिवार की परमिशन सोनू गोलकर सर ही लेते थे। रुपए की कमी भी होती थी, लेकिन मैं अपनी पेंशन से मैनेज करती थी।
शुरू में, मैं बॉल पर फोकस नहीं कर पाती थी। फिर सोनू गोलकर सर ने बताया कि आवाज पर फोकस करो। इसके बाद मैंने आवाज पर फोकस किया, तो मेरा प्रदर्शन अच्छा होता गया। मैंने लगातार प्रैक्टिस की, और तब यह हो गया।

तीन नेशनल खेले, तब हुआ सिलेक्शन
दुर्गा ने बताया कि मैंने तीन नेशनल खेले और बी 3 कैटेगरी में हाई स्कोर रहा। उसी के बाद मेरा सिलेक्शन इंडियन टीम में हुआ। मैं बैटिंग और विकेट कीपिंग दोनों करती हूँ। दुर्गा का कहना है कि वे अक्टूबर तक अपनी फिटनेस पर ध्यान दे रही हैं। इसके बाद वर्ल्ड कप के लिए कैंप करूँगी।
दुर्गा का कहना है कि हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। प्रॉब्लम को इग्नोर कर देना चाहिए, चाहे कितनी भी परेशानियां आएं।

दुर्गा को 50 फीसदी ब्लाइंडनेस दुर्गा के मुताबिक उसे 50 फीसदी ब्लाइंडनेस है। इसके चलते वह बी 3 केटेगरी में खेलती है। इसकी शुरुआत इंदौर कैम्प से हुई थी। वह दो बहनों और एक भाई में छोटी है। पिता खेती करते हैं। आगे भी उसे क्रिकेट में ही भविष्य बनाना है। परिवार की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है।

IBSA वर्ल्ड गेम्स में गोल्ड मेडल जीत भारत पिछली बार 2023 के IBSA वर्ल्ड गेम्स में गोल्ड मेडल जीत चुका है। इस बार भी भारत मेजबान और मजबूत दावेदार है। 56 खिलाड़ियों में से चुने गए 16 सदस्यीय स्क्वाड में कर्नाटक की दीपिका टीसी कप्तान और महाराष्ट्र की गंगा एस कदम उपकप्तान हैं। मध्यप्रदेश से दुर्गा के साथ सुषमा पटेल और सुनीता सराठे भी शामिल हैं।
सामान्य और दृष्टिबाधित खिलाड़ियों में अंतर-दहिकर
कोच मनोज दहिकर का कहना है कि सामान्य खिलाड़ियों और दृष्टिबाधित खिलाड़ियों में अंतर होता है। ये लोग साउंड से खेलते हैं, इसलिए इसमें अंडर आर्म रोल कर बॉल खेली जाती है। शुरुआत में छोटे-छोटे शॉट्स की ड्रिल करना होता है, ताकि वे साउंड पर फोकस कर सकें। अब हम उनकी स्पीड पर फोकस कर रहे हैं, ताकि वे तेजी से प्रतिक्रिया दे सकें और बेहतर प्रदर्शन कर सकें।