मध्यप्रदेश क्राइम फाइल्स के पार्ट-1 में आपने पढ़ा कि 24 अगस्त 2015 की दोपहर, इंदौर के मित्रबंधु नगर से बेटी को बस स्टॉप पर लेने निकली कविता रैना अचानक लापता हो जाती है। 2 दिन बाद, तीन इमली चौराहे के पास नाले में उसकी लाश 6 टुकड़ों में बोरे में बंद मि
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पुलिस 5 लाख कॉल डिटेल्स खंगालती है, नवलखा पार्किंग से कविता की स्कूटी बरामद करती है, लेकिन कातिल तक नहीं पहुंच पाती। तभी पुलिस की जांच जाकर टिकती है महेश बैरागी नाम के एक शख्स पर। क्या कातिल महेश ही था या कोई और? कत्ल की वजह क्या थी? क्या कविता को इंसाफ मिला? पढ़िए अगला पार्ट
पार्किंग में गाड़ी खड़ी करने वाले का चेहरा याद कैसे रहा? नवलखा स्थित पब्लिक पार्किंग से कविता की स्कूटी बरामद हुई। पुलिस ने रजिस्टर खंगाला। उसमें दर्ज था- “राजू” नाम से एक व्यक्ति ने 24 अगस्त की रात 8 बजकर 20 मिनट पर यह स्कूटी पार्क की थी, लेकिन अब सवाल ये था कि उसे रोजाना पार्किंग के लिए आने वाले सैकड़ों लोगों में चेहरा कैसे याद रहा?
पार्किंग कर्मचारी ने जवाब दिया – “उस रात इसने बहस की थी। कह रहा था कि स्कूटी को लॉक लगाकर खड़ा करूंगा। मैंने मना किया – लॉक मत लगाना, दूसरी गाड़ियां निकालने में दिक्कत होगी। मगर ये जिद कर रहा था। बहस हुई थी, इसलिए चेहरा दिमाग में बैठ गया।” यानी, पुलिस के हाथ पहला ठोस सुराग लगा।
महेश और साड़ी की दुकान का रहस्य जांच ने एक और मोड़ लिया। पुलिस को पता चला कि महेश की पत्नी मीना बैरागी का शृंगार बुटिक सेंटर नाम से एक बुटिक चलता था। उसी दुकान पर कविता आती-जाती थी। वहीं से दोनों की जान-पहचान बढ़ी।महेश ने कविता से नजदीकी बढ़ाने के लिए खुद की एक अलग साड़ी की दुकान भी खोल ली।
पुलिस को एक बार अजीब लगी, वो ये कि कविता की हत्या के सिर्फ 5-6 दिन बाद ही महेश ने साड़ी की दुकान बंद कर दी। जबकि, उसकी दुकान का 11 महीने के किराए का एग्रीमेंट था। जांच एजेंसियों को यह बेहद संदिग्ध लगा।

पुलिस को शक हुआ। आखिर महेश क्यों चाहता था कि फुटेज देखे जाएं? क्या डर था उसे? फुटेज निकाले गए। महेश दुकान आते-जाते तो दिखा, लेकिन उसके साथ कविता नहीं थी। अब तक के सारे सूत्र धीरे-धीरे महेश के इर्द-गिर्द सिमटने लगे।
22 दिन की लंबी पूछताछ पुलिस ने महेश को उठा लिया। पूछताछ शुरू हुई। 22 दिनों तक लगातार सवाल किए गए। कभी डंडे के साये में, कभी मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर तो कभी सबूतों के ताने-बाने बुनकर, लेकिन महेश एक ही रट लगाए रहा – “मैं निर्दोष हूं।” आखिर पुलिस के पास पर्याप्त सबूत न होने से उसे छोड़ना पड़ा। दिन बीते। जांच धीमी पड़ने लगी।
एक दिन अचानक पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। मीडिया के कैमरों के सामने पुलिस अफसरों ने ऐलान किया। “कविता रैना का कातिल पकड़ा गया है। उसका नाम है महेश बैरागी।”

पुलिस ने कविता के मर्डर के मामले में महेश को पर्याप्त सबूत न होने के चलते छोड़ दिया था, लेकिन बाद में उसी को कातिल ठहराया।
पुलिस की थ्योरी – कैसे हुई हत्या? पुलिस ने जो कहानी पेश की, वो किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं थी। 24 अगस्त को कविता अपनी बेटी को लेने बस स्टॉप जाने के बजाय मीना बैरागी के बुटिक पहुंची। वहां उसका सामना महेश से हुआ। महेश ने कहा – “कुर्ते की बाजुओं में दिक्कत है। असली कपड़ा मेरे दोस्त के फ्लैट पर रखा है। चलो, वहीं नाप ले लेते हैं।”
कविता महेश के मंसूबों से अनजान थी। वह महेश के साथ आईडीए बिल्डिंग, मूसाखेड़ी पहुंच गई। वहां महेश ने उससे जबरदस्ती करने की कोशिश की। कविता ने इसका विरोध किया। गुस्से में महेश ने लोहे के पाइप से उसके सिर पर वार कर दिया। कविता वहीं गिर पड़ी। फिर जो हुआ, वह किसी भी इंसान की रूह कंपा दे।
महेश ने चाकू से कविता की लाश के टुकड़े किए। कुल छह हिस्से। उन्हें पॉलीथिन बैग में पैक किया। स्कूटी पर लादकर तीन इमली चौराहे के नाले में फेंक आया।

प्रेस कॉन्फ्रेंस का नाटकीय पल मीडिया के सामने जब महेश को लाया गया तो उसका चेहरा नकाब से ढंका हुआ था। कैमरों की फ्लैश चमक रही थी। पुलिस अधिकारी पूरे आत्मविश्वास से कह रहे थे- “मामला सुलझ गया है।” तभी महेश ने अचानक नकाब हटा दिया और जोर से बोला – “मैं बेकसूर हूं! पुलिस मुझे झूठा फंसा रही है।”
ये सुनकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद हर कोई शख्स सकते में आ गया। महेश और कुछ बोल पाता उससे पहले पुलिस उसे जल्दी से पकड़कर बाहर ले गई। उस एक पल ने पुलिस की पूरी जांच को संदेह के दायरे में ला दिया।

गवाह नीलेश की गवाही एक गवाह नीलेश ने कोर्ट में कहा-“मैंने वैभव नगर में महेश को दुकान किराए पर दी थी। 11 महीने का एग्रीमेंट था। 20 अगस्त से किराएदारी शुरू हुई, लेकिन 28 अगस्त को उसने कहा कि दुकान बंद करनी है और 1 सितंबर को पूरी तरह खाली भी कर दी।” जब मैंने इसका कारण पूछा तो महेश ने कहा- “कविता हत्याकांड से महिलाएं डर गई हैं।
मेरी पत्नी की दुकान पर कोई नहीं आ रहा। किराया नहीं दे पाऊंगा।” यानी, हत्या के महज 6-7 दिन बाद ही दुकान खाली कर दी गई।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी 18 मई 2018 को कविता रैना हत्याकांड केस में इंदौर जिला अदालत का फैसला आया। अदालत ने पुलिस की पूरी थ्योरी को दरकिनार कर दिया।

परिवार का टूटा भरोसा कविता के घरवालों ने तीन साल इंतजार किया। उन्हें विश्वास था कि इंसाफ मिलेगा। लेकिन फैसले के बाद उन्होंने कहा – अब हमें न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं रहा। कविता के हत्यारे को सजा नहीं मिली।
वो सवाल जिनके जवाब आज भी बाकी
कविता की हत्या हुई, लेकिन हत्यारा कौन है ये आज तक पता नहीं चला है। ये पूरा मामला कई अहम सवाल छोड़ गया है।
- क्या महेश सचमुच कातिल था या पुलिस ने दबाव में उसे बलि का बकरा बना दिया?
- अगर महेश बेगुनाह था तो कविता के टुकड़े-टुकड़े किसने किए?
- स्कूटी पार्किंग में कैसे पहुंची?
- कपड़े जलाने और सबूत मिटाने की बात कितनी सच थी?
- कविता की हत्या के पीछे असली मकसद क्या था?
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बेटी इंतजार करती रह गई, मां 6 टुकड़ों में मिली:हत्यारे के लिए 10 साल के रिश्तों को खंगाला; हर पहचान-संबंध शक में आया

मध्यप्रदेश क्राइम फाइल्स में इस बार बात चर्चित कविता रैना हत्याकांड की। जो घर से बस स्टॉप पर बेटी को लेने के लिए निकली थी, लेकिन वापस नहीं लौटी। मोबाइल भी घर में ही छूट गया था। बाद में बंद बोरे में 6 टुकड़ों में कविता की लाश मिली। कविता को किसने मारा और क्यों? पुलिस कातिल तक कैसे पहुंची? पढ़ें पूरी रिपोर्ट