किसान लाइन में खड़े
खंडवा के विभिन्न केंद्रों पर किसानों की लंबी-लंबी कतारें देखी जा सकती हैं. किसान सुबह से शाम तक लाइन में खड़े रहते हैं, लेकिन अंत में केवल यूरिया ही मिल पाती है. डीएपी खाद के नाम पर किसान मायूस होकर लौट रहे हैं.
काम छोड़कर लाइन में खड़े रहना मजबूरी
किसानों के मुताबिक, वो अपना रोज का काम छोड़कर खाद लेने के लिए लाइन में खड़े होते हैं. कई बार पूरा दिन बीत जाता है और खाद हाथ नहीं लगती. किसानों की नाराजगी साफ झलकती है, क्योंकि बिना डीएपी के खेती पूरी तरह प्रभावित हो रही है. गांव के एक अन्य किसान जंग बहादुर ने कहा कि 6 एकड़ जमीन पर खेती कर रहा हूं. सरकार कह रही है कि पर्याप्त खाद उपलब्ध है, लेकिन यहां तो छः एकड़ पर सिर्फ चार बोरी यूरिया दी जा रही है. डीएपी की बहुत जरूरत है. अगर ये नहीं मिला तो फसल पर असर पड़ना तय है. डीएपी से ही फसल को पोषण मिलता है और पैदावार अच्छी होती है और बिना डीएपी खेती अधूरी है.
किसानों के अनुसार, यूरिया से केवल एक हद तक काम चलाया जा सकता है, लेकिन असली जरूरत डीएपी की है. यह खाद मिट्टी को जरूरी पोषण देती है और फसल की जड़ों को मजबूती प्रदान करती है. अगर समय पर डीएपी नहीं मिली तो पैदावार पर सीधा असर पड़ेगा और किसानों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा. एक अन्य किसान ने कहा कि हम लोग सरकार से यही मांग करते हैं कि डीएपी जल्द उपलब्ध कराई जाए. अगर डीएपी नहीं आई तो फसल का उत्पादन आधा रह जाएगा. इससे किसान कर्ज में डूब जाएंगे और हालात और खराब होंगे।
सरकार के दावों पर उठे सवाल
जहां एक ओर सरकार दावा कर रही है कि पूरे प्रदेश में खाद की कोई कमी नहीं है. वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत कुछ और ही है. खंडवा जिले के हालात बताते हैं कि किसानों को खाद के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. किसान सवाल उठा रहे हैं कि जब सरकार कहती है कि खाद उपलब्ध है तो आखिर यह खाद कहां जा रही है?
तीन हजार बोरी खाद गलत तरीके से बिक जाने और ट्रक भर-भर कर खाद गायब होने की घटना ने पूरे मामले को और गंभीर बना दिया है. पुलिस ने इस पर मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. किसानों की मांग है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और जिले में खाद की आपूर्ति पारदर्शी तरीके से सुनिश्चित की जाए.
निष्कर्ष
किसानों की यह समस्या केवल खाद तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सीधे-सीधे उनकी आजीविका और आने वाले महीनों की पैदावार से जुड़ी हुई है. अगर समय पर खाद, खासकर डीएपी, उपलब्ध नहीं कराई गई तो इसका असर केवल किसानों पर ही नहीं बल्कि पूरे समाज पर पड़ेगा. आखिरकार किसान ही अन्नदाता है और अगर वही संकट में है, तो देश की खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है.