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Tarpana Ritual In Narmada River: हर साल श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए सभी पिंडदान, श्राद्धकर्म करते हैं. इसमें अगर कोई नर्मदा नदी में करते हैं, तो वो सबसे पवित्र और पुण्यदायक जगह मानी जाती है.
श्राद्ध पक्ष के दौरान यह विश्वास किया जाता है कि पितृ आत्माएं इस धरती पर आती हैं. उन आत्माओं को तर्पण और पिंडदान से तृप्त किया जाता है. तर्पण का शाब्दिक अर्थ होता है ‘जल अर्पित करना’, यह कार्य श्रद्धा, भक्ति और कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है. खासतौर पर नर्मदा तट पर तर्पण करने की परंपरा बहुत प्राचीन है. स्कंद पुराण में उल्लिखित है कि नर्मदा नदी में तर्पण करने से पितरों की शांति सुनिश्चित होती है और अन्य स्थानों पर तर्पण करने की जरूरत नहीं रहती है.
ओंकारेश्वर, जहां नर्मदा माता के पवित्र जल से तर्पण का विधान होता है, वह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. यहां हर साल हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं और अपने पितृओं के लिए तर्पण करते हैं. यह कार्य न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य की भी प्राप्ति होती है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, नर्मदा में किए गए तर्पण से पितृलोक की मुक्ति होती है और वे संतुष्ट होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं. श्राद्ध का यह कर्म एक प्रकार से अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम है. इसके माध्यम से हम यह विश्वास करते हैं कि हमारे पूर्वज हमारे सुख-शांति की कामना करते हैं और हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं. खासकर नर्मदा जैसे पवित्र नदी में तर्पण करने से यह पुण्य बढ़ जाता है, क्योंकि यह नदी स्वयं भगवान के समान पवित्र मानी जाती है. लोक मान्यता के अनुसार, नर्मदा में तर्पण करने से न केवल पितृ सुखी होते हैं, बल्कि खुद श्रद्धालु का जीवन भी मंगलमय होता है.
क्या होती है तर्पण विधि?
तर्पण विधि के दौरान पहले स्नान किया जाता है, फिर स्थान का चयन कर विशुद्ध जल से तर्पण किया जाता है. विशेष मंत्रोच्चारण के साथ जल में तर्पण किया जाता है. स्कंद पुराण में बताया गया है कि इस विधि को करने से पितृलोक से पुण्य फल प्राप्त होता है. इस अनुष्ठान में विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है कि विधिपूर्वक सही समय और स्थान पर तर्पण किया जाए. ओंकारेश्वर का स्थान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां के पवित्र जल में किए गए तर्पण का प्रभाव दुगना माना जाता है. माना जाता है कि नर्मदा नदी खुद मां नर्मदा का स्वरूप है. इसलिए यहां तर्पण करना अन्य स्थानों की अपेक्षा ज्यादा पुण्यदायक और प्रभावशाली होता है. पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि नर्मदा में तर्पण करने से पितृ दोष भी समाप्त होता है. यह कर्म न केवल आत्मा की शांति प्रदान करता है, बल्कि व्यक्ति के जीवन में बाधाएं भी दूर करता है. धार्मिक विश्वास के अनुसार, जो व्यक्ति अपने पितरों को तर्पण नहीं करता, उसके जीवन में दुख, रोग और विपत्ति आती है.
नर्मदा नदी का पवित्र जल
अंततः यह समझना महत्वपूर्ण है कि तर्पण केवल एक कर्म नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति आदर, सम्मान और प्रेम की अभिव्यक्ति है. नर्मदा नदी का पवित्र जल इस कर्म को और भी प्रभावशाली बना देता है. आज के युग में जब आधुनिकता और व्यस्त जीवनशैली के चलते परंपराएं कमजोर होती जा रही हैं, तब ऐसे पवित्र स्थलों पर जाकर तर्पण और पिंडदान करना हमारी संस्कृति और धर्म का संरक्षण करता है. यह हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है. इसलिए, इस श्राद्ध पक्ष में आइए हम सब मिलकर नर्मदा तट पर अपने पितृओं के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करें. ओंकारेश्वर के पावन स्थान में जाकर विधिपूर्वक तर्पण करें, ताकि पितृ आत्माएं संतुष्ट हों और हमारे जीवन में सुख-शांति का वास हो.
Deepti Sharma, currently working with News18MPCG (Digital), has been creating, curating and publishing impactful stories in Digital Journalism for more than 6 years. Before Joining News18 she has worked with Re…और पढ़ें
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