मध्यप्रदेश क्राइम फाइल्स में आज बात एक 21 साल पुराने केस की। जबलपुर की पाटन विधानसभा सीट के चांदवा गांव में शाम के वक्त अचानक गोली चलने की आवाज सुनाई दी। कुछ देर बाद पता चला कि गांव के ही रहने वाले घनश्याम पटेल उर्फ नन्हू ने टीचर रविंद्र पचौरी को गोल
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रविंद्र दो दिन तक जिंदगी और मौत से लड़ा लेकिन उसने दम तोड़ दिया। आखिर नन्हू ने रविंद्र पर गोली क्यों चलाई? दोनों के बीच किस बात को लेकर दुश्मनी थी। नन्हू को पुलिस ने पकड़ा, लेकिन वह 7 महीने बाद छूट गया। ऐसा क्या हुआ था? पढ़िए पार्ट-1
तारीख 28 अप्रैल 2004
जबलपुर जिले के पाटन विधानसभा क्षेत्र का चंदवा गांव। लोकसभा चुनाव का समय था। गांव-गांव, गली-गली राजनीति की सरगर्मियां थीं। कांग्रेस और भाजपा कार्यकर्ताओं में तनातनी बढ़ी हुई थी। 30 वर्षीय शिक्षक रविंद्र पचौरी उर्फ बबलू के घर पर बीजेपी का झंडा लगा था। भाजपा समर्थक रविंद्र के लिए यह सामान्य-सा काम था।
गांव का दबंग नन्हू उर्फ घनश्याम पटेल (32) इसे अपनी “हुकूमत” के खिलाफ समझ रहा था। गांव में कांग्रेस नेताओं का दबदबा था। नन्हू ने चेतावनी दी थी-“कोई भाजपा का झंडा नहीं लगाएगा, वर्ना अंजाम भुगतना होगा।” लेकिन रविंद्र ने यह चेतावनी अनसुनी कर दी। नन्हू गन लेकर रविंद्र के घर पहुंचा और वह रविंद्र को गालियां देने लगा।
रविंद्र की मां सीता बाई ने नन्हू को गालियां देने से रोका। लेकिन गुस्से में चूर नन्हू ने उन्हें धक्का देकर गिरा दिया। आवाज सुनकर रविंद्र घर के बाहर आया।

मौत की ओर धकेलने वाली बहस कुछ ही सेकेंड में रविंद्र और नन्हू की इस बहस ने भयावह रूप ले लिया। और फिर गन का ट्रिगर दबा। गोली रविंद्र के पेट को चीरते हुए कूल्हे से निकल गई। रविंद्र वहीं गिर पड़ा। खून से लथपथ शिक्षक तड़प रहा था और नन्हू राइफल थामे मौके से भाग निकला। भतीजा नंदकेश्वर, दोस्त वैभव और शैलेंद्र, रविंद्र को बाइक पर बिठाकर पाटन थाने ले गए। वहां से वे लोग जबलपुर मेडिकल कॉलेज पहुंचे।
रातभर डॉक्टरों ने रविंद्र का ऑपरेशन किया। गोली ने छोटी-बड़ी आंत और कूल्हे की हड्डी तोड़ दी थी। खून इतना बह चुका था कि रविंद्र का शरीर जवाब दे रहा था। दो दिन तक कोमा में रहने के बाद 30 अप्रैल 2004 को रविंद्र ने दम तोड़ दिया। पुलिस ने नन्हू के खिलाफ हत्या के प्रयास का जो केस दर्ज किया था। वो अब हत्या के मामले में तब्दील हो गया था।
फॉरेंसिक प्रमुख डॉ. विवेक श्रीवास्तव की रिपोर्ट में गोली की वजह से मौत की पुष्टि भी हो गई। पुलिस को पूछताछ में रिश्तेदार अनंता पलहा ने गवाही दी। उसने बताया कि नन्हू हाथ में राइफल लिए चाचा रविंद्र उर्फ बबलू के घर के बाहर गालियां दे रहा था। चाचा घर से बाहर निकले दोनों के बीच कहासुनी हुई और नन्हू ने रविंद्र पर गोली चला दी।

दबंग की गिरफ्तारी और राइफल की बरामदगी हत्या की खबर फैलते ही गांव और आसपास का माहौल तनावपूर्ण हो गया। भाजपा कार्यकर्ता उग्र थे। 30 अप्रैल को ही पुलिस ने आरोपी नन्हू को पकड़ लिया। पूछताछ में उसने राइफल का पता बताया उसने कहा “राइफल चंदवा से मेहगवां नहर के पास मिट्टी में दबा दी है।” पुलिस ने नन्हू की निशानदेही पर राइफल और 20 कारतूस बरामद किए।
जांच में पता चला, राइफल का लाइसेंस 2003 में ही खत्म हो चुका था। यानी हत्या अवैध हथियार से हुई थी। मामले में अब हत्या के साथ आर्म्स एक्ट की धाराएं भी जुड़ गई।
224 दिन बाद कोर्ट से मिली जमानत आरोपी नन्हू को जेल भेज दिया गया, लेकिन यहां से कहानी ने नया मोड़ लिया। लगातार 224 दिन जेल में रहने के बाद नन्हू को जमानत मिली। कोर्ट में उसके परिवार ने दावा किया – “वह मानसिक रूप से बीमार है, पागल है, इलाज चल रहा है।” परिवार ने जबलपुर मेडिकल कॉलेज, ग्वालियर मेंटल अस्पताल, इंदौर और आगरा के मेंटल अस्पतालों में हुए नन्हू के इलाज की पर्चियां कोर्ट में पेश की।

पागलपन के नाम पर रुका ट्रायल घटना के बाद जब पाटन कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई, तभी आरोपी की पत्नी कामिनी उर्फ राजकुमारी हाईकोर्ट पहुंच गई। उसने कहा कि घटना के वक्त वह नोएडा में अपनी बहन की शादी में थी। शादी 29 अप्रैल 2004 को थी। “मुझे लौटकर पता चला कि गांव में झगड़ा हुआ और पुलिस ने मेरे पति को राजनीतिक दबाव में फंसा दिया।”
उसने सीधे आरोप लगाया कि मृतक के परिवार और तत्कालीन सीएम उमा भारती, पाटन विधायक अजय विश्नोई ने दबाव डालकर पुलिस से कार्रवाई कराई। ये भी कहा कि नन्हू की जैसी मानसिक हालत है उस सूरत में ये केस नहीं चल सकता। ये सारी दलीलें सुनकर हाईकोर्ट ने केस के ट्रायल पर रोक लगा दी।

16 साल बाद पाटन कोर्ट में फिर शुरू हुआ ट्रायल अब यह मामला एक सीधी हत्या से हटकर कानूनी पेचीदगियों और “मानसिक बीमारी” की दलीलों में उलझ गया। शिक्षक रविंद्र की गोली मारकर हत्या हुई थी। यह सच था। लेकिन आरोपी नन्हू की दलील और उसके परिजनों का “पागलपन” के दावे की वजह से केस लंबा खींचता रहा। इधर रविंद्र के परिजन ने हाईकोर्ट से ट्रायल पर लगी रोक हटाने की अपील की।
साल 2020 में हाईकोर्ट ने ट्रायल पर लगी रोक को हटा लिया। इसके बाद पाटन एडिशनल सेशंस जज की अदालत में केस का ट्रायल शुरू हुआ। गवाह, जांचकर्ता और लंबी सुनवाई हुई। 3 साल तक मुकदमा चला। इस दौरान तीन विवेचक अधिकारी और 15 गवाह अदालत में पेश हुए। इसी दौरान एक शख्स अदालत में पहुंचा उसने कोर्ट से जो कहा उसने केस की दिशा ही बदल दी।

- आखिर कौन था ये शख्स? उसने कोर्ट को क्या बताया?
- इस शख्स की बातें सुनकर अदालत ने क्या किया?
- क्या सचमुच नन्हू मानसिक रूप से बीमार था?
- हत्या के 19 साल बाद कोर्ट ने साल 2023 में इस केस में क्या फैसला सुनाया?
इन सवालों के जवाब जानिए क्राइम फाइल्स पार्ट-2 में…
