सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया है जिसमें सिविल जज के पद के लिए तीन साल की वकालत अनिवार्य कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें तीन साल की वकालत की अनिवार्य आव
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पिछले साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगाते हुए कहा था कि हमारी समझ से अयोग्य उम्मीदवारों की नियुक्ति नहीं की जा सकती। हालांकि, अंतरिम आदेशों के कारण कुछ अयोग्य उम्मीदवारों को लिखित परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई। केवल उन्हीं उम्मीदवारों पर विचार किया जा रहा है, जो पात्रता मानदंडों को पूरा करते हैं। इस बीच, विवादित आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जाती है।
तीन साल के अनुभव का यह था मामला
- मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा (भर्ती एवं सेवा शर्तें) नियम, 1994 में संशोधन करते हुए संशोधित भर्ती नियम 23 जून 2023 को अधिसूचित किए गए थे।
- कहा गया कि सिविल जज के लिए उम्मीदवारों के पास या तो वकील के रूप में लगातार 3 वर्षों का अनुभव होना चाहिए या उत्कृष्ट लॉ ग्रेजुएट होना चाहिए, जिनका शैक्षणिक जीवन शानदार रहा हो, जिन्होंने पहले प्रयास में सभी परीक्षाएं उत्तीर्ण की हों
- सामान्य एवं OBC श्रेणियों के लिए कुल मिलाकर कम से कम 70 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हों।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के उम्मीदवारों के लिए कुल मिलाकर कम से कम 50% अंक आवश्यक हैं।
एजेंसी की खबरों में बताया गया है कि न्यायमूर्ति पीएस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा अपनी खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने वाली अपील स्वीकार की। उच्च न्यायालय की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे ने तर्क दिया कि पुनर्परीक्षा असंवैधानिक और अव्यावहारिक है और इससे मुकदमेबाजी का सिलसिला शुरू हो जाएगा। दरअसल संशोधित नियमों को उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था लेकिन चयन से बाहर हुए दो उम्मीदवारों द्वारा संशोधित नियमों के लागू होने के बाद खुद को योग्य बताते हुए कट-ऑफ की समीक्षा की मांग करने के बाद मुकदमेबाजी का एक और दौर शुरू हो गया।