पंचायत और राजस्व विभाग के बीच उलझकर रह गई प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना, पांच साल बाद भी नहीं मिला फायदा
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शहरों में जिस तरह से लोगों के पास अपनी संपत्ति के सटीक दस्तावेज और मालिकाना हक होता है, वैसी स्थिति गांवों में नहीं है। उनकी संपत्ति का रिकॉर्ड राजस्व विभाग में दर्ज नहीं होता। इसके लिए 24 अगस्त 2020 को शुरू की गई प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के रहने वालों को भी अधिकृत रूप से संपत्ति का अधिकार देना था। लेकिन मप्र शासन के ही दो विभागों पंचायत और राजस्व की लापरवाही के कारण योजना का मकसद पीछे छूट गया है।
इस योजना के तहत ड्रोन तकनीक से भूखंडों के नक्शे तैयार कर संपत्ति के मालिक को अधिकार-पत्र(संपत्ति कार्ड) प्रदान करना था। लेकिन, मप्र में अब भी 20 हजार गांवों के करीब 10 लाख लोगों को संपत्ति कार्ड नहीं मिल पाए हैं। कलेक्टरों के पास लगातार इस तरह की शिकायतें पहुंच रही हैं। मप्र में 43,014 गांव राजस्व रिकार्ड में दर्ज है, जिनमें 25 लाख से ज्यादा लोगों को अधिकार-पत्र दिए जाने हैं।
ड्रोन फोटोग्राफी से तय होना था मकानों का नक्शा, इसके बाद देने थे अधिकार-पत्र
पंचायत सचिवों ने चूना ही नहीं खरीदा, ड्रोन फोटोग्राफी भी नहीं हुई
मध्यप्रदेश में यह योजना दो विभागों के बीच तालमेल न होने से उलझकर रह गई है। दरअसल, गांवों में मकानों की मार्किंग चूने से करना था और इसके बाद ड्रोन से नक्शा तैयार कर डिजिटल अधिकार-पत्र ग्रामीणों को सौंपना था। इसमें चूने की खरीदी पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को करनी थी और इस चूने से जमीन की मार्किंग पटवारी को करनी थी।
इसके बाद ड्रोन से फोटोग्राफी करवानी थी। इसके लिए प्रति गांव 5 हजार रुपए के हिसाब से राशि दी गई थी। जिला पंचायत सीईओ को इसका बजट दिया गया था, जिन्हें पंचायत सचिवों के माध्यम से खरीदी करानी थी। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, ज्यादातर जगह पंचायत सचिवों ने चूने की खरीदी ही नहीं की। कहीं चूना खरीद भी लिया गया तो ड्रोन से फोटोग्राफी नहीं हो सकी।
10 लाख लोगों को संपत्ति कार्ड नहीं मिल पाए हैं
पहले चरण से शुरू हो गई थी गड़बड़ी… पहले योजना 1109 गांवों में शुरू हुई। इसमें 2.54 लाख लोगों को लाभ दिया जाना था। लेकिन सर्वे में गड़बड़ी से महज 10% लोगों को ही अधिकार-पत्र मिल सके। यह गलती पटवारी व राजस्व निरीक्षक द्वारा की गई, जिन्होंने प्रमुख मकानों को पोर्टल पर दर्ज किया और अन्य को बाहर कर दिया। अब तो पोर्टल से रिकाॅर्ड ही हटा दिए हैं।
गलत पट्टे बनने के दो लाख मामले सामने आए अब तक जो 15 लाख अधिकार-पत्र तैयार किए गए उनमें दो लाख से ज्यादा में तो नाम ही गलत दर्ज कर लिए। अब कलेक्टर की अनुमति से ही इसमें सुधार हो सकता है। ऐसे लोग नाम जुड़वाने के लिए तहसील और जिलों के चक्कर काट रहे हैं। इस तरह के मामले रायसेन, छिंदवाड़ा, टीकमगढ़, छतरपुर जिले में ज्यादा हैं।
अधिकार पत्र होने से ये फायदे होते
- मकान और भूमि का अधिकार पत्र मिलने से बैंक से प्रॉपर्टी को मार्गेज करवाकर कर्ज ले सकते हैं।
- अधिकार पत्र मिलने से मकान का दस्तावेजों में भी मालिकाना हक गांवों में लोगों को मिल जाता है।
- राजस्व रिकार्ड में मकान या भूमि दर्ज हो जाती, जिससे मकान या जमीन का कानूनन बंटवारा आसान होता है।
- गांवों के विकास की योजना बेहतर तरीके से बन पाती हैं, जिससे विकास कार्य योजनाबद्ध तरीके से हो पाते हैं।
- लेकिन… ऐसा संपत्ति कार्ड न होने से ग्रामीणों को परेशानी उठानी पड़ रही है। पटवारी-आरआई ने सही सर्वे नहीं किया।
शिकायतों का निराकरण कर रहे हैं जो शिकायतें प्राप्त हो रही हैं, उनका निराकरण किया जा रहा है। इसकी जानकारी भी ली जा रही है कि ग्रामीणों को उनके मकानों के अधिकार-पत्र क्यों नहीं मिले। -विवेक पोरवाल, प्रमुख सचिव राजस्व