सजा से बचने 19 साल तक बना रहा पागल: बैंक ने लोन दिया, शादियों में भी गया; कोर्ट ने जांच कराई तो खत्म हुआ नाटक – Madhya Pradesh News

सजा से बचने 19 साल तक बना रहा पागल:  बैंक ने लोन दिया, शादियों में भी गया; कोर्ट ने जांच कराई तो खत्म हुआ नाटक – Madhya Pradesh News


मध्यप्रदेश क्राइम फाइल्स के पार्ट 1 में आपने पढ़ा कि जबलपुर की पाटन विधानसभा क्षेत्र के चंदवा गांव में 28 अप्रैल 2004 को 30 वर्षीय शिक्षक रविंद्र पचौरी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। रविंद्र ने अपने घर के बाहर बीजेपी का झंडा लगाया था, जो कांग्रेस का

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दोनों के बीच कहासुनी हुई और नन्हू ने रविंद्र की गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस ने नन्हू को गिरफ्तार किया लेकिन नन्हू की पत्नी ने कहा कि उसका पति मानसिक बीमार है इसलिए वह सात महीने बाद जेल से बाहर आ गया और इस केस के ट्रायल पर भी हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। साल 2020 में यानी घटना के 16 साल बाद रविंद्र के परिजन ने हाईकोर्ट से ट्रायल पर लगी रोक हटाने की मांग की।

इसके बाद एक बार फिर सत्र न्यायालय में केस की सुनवाई शुरू हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट रूम में एक शख्स पहुंचा और उसने कोर्ट को जो बताया, उसने केस की दिशा बदल दी। कौन था वो शख्स? इस केस में कोर्ट ने क्या फैसला दिया? पढ़िए, रिपोर्ट…

कोर्ट में सामने आया कातिल का इलाज करने वाला डॉक्टर डॉ. पीके ज्वेल, यही नाम था उस शख्स का। नन्हू के परिवार ने दावा किया था कि साल 2002 से 2004 के बीच डॉ. ज्वेल से नन्हू की मानसिक बीमारी का इलाज कराया था। कोर्ट में डॉ. ज्वेल ने कहा- 2002 से 2004 के बीच आरोपी कभी मेरे पास इलाज कराने नहीं आया। ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है। इस गवाही ने पूरी तस्वीर बदल दी। यानी हत्या के समय आरोपी पूरी तरह स्वस्थ था।

अदालत में जो मेडिकल पर्चियां पेश की गईं, वे सभी 15 मई 2004 के बाद की थीं। यानी वारदात के 15 दिन बाद की। इनमें लिखा गया था कि आरोपी बायपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित है। यह बीमारी ऐसी होती है, जिसमें व्यक्ति कई हफ्तों या महीनों तक बहुत उदास या बहुत खुश रहता है।

उदासी के दौर में नकारात्मक विचार आते हैं, जबकि उत्साह के दौर में असामान्य हरकतें करता है। लेकिन ये दस्तावेज हत्या के बाद के थे, जिससे साफ था- हत्या के समय मानसिक बीमारी का कोई सबूत नहीं था।

जांच में पागलपन के नाटक का खुलासा पाटन कोर्ट में आरोपी नन्हू के इलाज के पर्चे पेश किए गए। वो 15 मई 2004 के बाद के थे। घटना अप्रैल महीने की थी। आरोपी वाकई पागल है या सिर्फ पागलपन का नाटक कर रहा है, सच क्या था? इसका पता लगाने हाईकोर्ट ने नन्हू की मानसिक स्थिति की नए सिरे से जांच के आदेश दिए।

हाईकोर्ट के आदेश पर जबलपुर मेडिकल कॉलेज में 14 दिसंबर 2022 को नन्हू की जांच हुई। आरोपी को 10 दिन तक देखरेख में रखा गया। जब रिपोर्ट आई तो बताया कि आरोपी को सिजोफेक्टिव डिसऑर्डर है। यानी दो मेडिकल रिपोर्ट में आरोपी को बायपोलर डिसॉर्डर से ग्रसित होना बताया गया। बीमारी का नाम साइकेट्रिक डिप्रेशन और सिजोफेक्टिव डिसऑर्डर बताया गया था।

‘पागल’ होकर गाड़ी और लोन कैसे लिया? रविंद्र के परिजन ने अदालत में एक अहम दलील रखी। उन्होंने सवाल किया कि अगर नन्हू सचमुच पागल है, तो 2013 में सहकारी बैंक पाटन से 1.65 लाख रुपए का लोन उसके नाम पर कैसे मंजूर हुआ? 2015 में उसके नाम पर गाड़ी फायनेंस कैसे हुई? 2000 में उसके नाम पर शस्त्र लाइसेंस कैसे जारी हुआ? क्या कोई मानसिक रोगी लाइसेंसधारी बन सकता है?

परिजन ने कोर्ट को यह भी बताया कि आरोपी ने अपनी जमीन बैंक में गिरवी रखकर लोन लिया और 2021 में पत्नी के नाम से एचडीएफसी बैंक से 42 लाख रुपए का कर्ज भी लिया। उस दस्तावेज पर नन्हू के स्पष्ट हस्ताक्षर मौजूद हैं। इतना ही नहीं, साल 2022 में वह भोपाल और जबलपुर में हुई दो शादियों में शरीक भी हुआ। उसके वीडियो भी परिवार ने अदालत में सबूत के तौर पर पेश किए।

पत्नी बोली- मुझे पति के क्रेडिट कार्ड का नहीं पता नन्हू उर्फ घनश्याम के बचाव में उसकी पत्नी कामिनी उर्फ राजकुमारी ने गवाही दी। बताया कि उसकी शादी आरोपी के साथ साल 1993 में हुई थी। शादी के समय उसके पति स्वस्थ नहीं थे। पिताजी यूपी से थे इसलिए ससुराल पक्ष और पति के बारे में ज्यादा पता नहीं कर पाए। शादी के बाद से पति का नियमित इलाज चल रहा था।

पति को गंभीर डिप्रेशन की बीमारी है। जिसमें वह अपने आप को कमरे में बंद कर लेते हैं और रोने लगते हैं। उनका व्यवहार उग्र हो जाता है। पति का व्यवहार ज्यादातर ठीक नहीं रहता है। पति कोई भी काम नहीं करते हैं। पत्नी ने अदालत में कहा कि उसे पति के नाम पर बने क्रेडिट कार्ड की जानकारी नहीं है। गाड़ी भी उसके ससुर ने खरीदी थी।

पीड़ित पक्ष की ओर से सरकारी वकील संदीप जैन ने इन दलीलों को एक-एक कर तोड़ दिया।

19 साल तक सजा से बचा रहा, कोर्ट ने सुनाई उम्रकैद रविंद्र के वकील ने ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ‘मानसिक रूप से बीमार’ लोग और मनोरोगी किसी आपराधिक मामले में छूट पाने में असमर्थ हैं, क्योंकि अपराध के समय पागलपन प्रदर्शित करना उनकी जिम्मेदारी है। इसलिए व्यवहार में, मानसिक रूप से बीमार प्रत्येक व्यक्ति को आपराधिक दायित्व से छूट नहीं है। कानूनी पागलपन और चिकित्सीय पागलपन के बीच अंतर होना चाहिए।

केवल मन की असामान्यता, आंशिक भ्रम, अप्रतिरोध्य आवेग या मनोरोगी का बाध्यकारी व्यवहार आपराधिक अभियोजन को सुरक्षा प्रदान नहीं करता है। अदालत ने पूरे मामले पर गौर करने के बाद अपने आदेश में साफ किया कि कोई भी व्यक्ति विकृत है या नहीं, यह साबित करने का दायित्व उसी पर है। मानसिक रूप से कमजोर होने भर से अपराध से दोषमुक्ति मिलना विधि सम्मत नहीं है।

यदि ऐसा होने लगे तो प्रत्येक अपराधी स्वयं को मानसिक विकृत करार देकर सजा से बचने लगेगा। अदालतों का दायित्व है कि वे न्यायदान की प्रक्रिया में तथ्यों का विवेचन कर दूध का दूध और पानी का पानी करें। न्याय की अवधारणा समाज में दोषी को दंड देने पर आधारित है, चाहे वह कितनी ही प्रभुत्वशाली क्यों न हो।

मध्यप्रदेश क्राइम फाइल्स सीरीज की इस कड़ी का पार्ट-1 भी पढ़िए…

बीजेपी का झंडा लगाने पर टीचर का मर्डर, कोर्ट में पहुंची पर्ची और 7 महीने में छूटा कातिल

21 साल पहले जबलपुर की पाटन विधानसभा सीट के चांदवा गांव में शाम के वक्त अचानक गोली चलने की आवाज सुनाई दी। कुछ देर बाद पता चला कि गांव के ही रहने वाले घनश्याम पटेल उर्फ नन्हू ने टीचर रविंद्र पचौरी को गोली मार दी। आखिर नन्हू ने रविंद्र पर गोली क्यों चलाई? दोनों के बीच किस बात को लेकर दुश्मनी थी? नन्हू को पुलिस ने पकड़ा, लेकिन वह 7 महीने बाद छूट गया। पढें पूरी खबर…



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