युवा और आत्महत्या
सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि इनमें से लगभग आधे, यानी 51% लोग युवा हैं, उम्र 18 से 35 साल के. यही वह उम्र है जब सपनों को ऊँची उड़ान भरनी होती है, परिवार की उम्मीदें आँखों में चमकती हैं और भविष्य का आसमान खुला होता है. मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकान्त त्रिवेदी बताते हैं कि आज की स्थिति इतनी गंभीर है कि “एक व्यक्ति जब आत्महत्या करता है, उस दौरान 20 लोग प्रयास कर चुके होते हैं और लगभग 200 लोगों के मन में यह विचार मौजूद होता है.
यह संकट केवल मध्यप्रदेश तक सीमित नहीं है. NCRB के आंकड़ों के मुताबिक 2022 में पूरे देश में 1,70,924 आत्महत्याएँ दर्ज हुईं, जिनमें से 15,386 मामले मध्यप्रदेश से थे. इंदौर, सागर और भोपाल जैसे बड़े शहर इस समस्या के प्रमुख केंद्र बन गए हैं. पूर्व मंत्री पीसी शर्मा का मानना है कि बेरोज़गारी इसका मुख्य कारण है.
आध्यात्म और परिवार का सहारा
हर दिन 42 ज़िंदगियाँ बुझ जाती हैं, हर घंटे दो लोग हमें हमेशा के लिए अलविदा कह जाते हैं. यह केवल एक व्यक्ति का नुकसान नहीं, बल्कि पूरे परिवार की टूटती दुनिया है. हर आंकड़े के पीछे एक चेहरा है — माँ-बाप की उम्मीद, दोस्तों की मुस्कान, भाई-बहन का सहारा. भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा बताते हैं कि आध्यात्म और संयुक्त परिवार के संस्कार युवाओं को मानसिक रूप से मजबूत बनाने में मदद कर सकते हैं.
कारण और समाधान
सुसाइड के मामलों में बेरोज़गारी, आर्थिक कठिनाइयाँ, प्रेम संबंध और पारिवारिक दबाव मुख्य कारण हैं. इसके पीछे अक्सर डिप्रेशन भी होता है, जिसे आसपास के लोग समझ नहीं पाते. गांव से शहरों की ओर पलायन, छोटे परिवार और सोशल मीडिया पर नकारात्मक सामग्री युवाओं के लिए नई चुनौतियाँ पैदा कर रही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को बड़े स्तर पर सुसाइड रोकथाम अभियान चलाने की आवश्यकता है.