खरगोन: मध्यप्रदेश का निमाड़ अंचल अपने लोकपर्वों और अनोखी परंपराओं के लिए जाना जाता है. इस समय पूरे देश में नवरात्रि की धूम है, मां दुर्गा की आराधना में हर कोई भक्ति भाव से जुड़ा हुआ है. वहीं, खरगोन और आसपास के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं व बालिकाएं मिट्टी से नरवत (शिव-पार्वती की प्रतिमाएं) बनाकर लोकगीतों और खेलकूद के साथ नवरात्रि मनाती हैं. खरगोन सहित ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ लोग इसे आज भी जीवित रखे हुए है.
क्या है नरवत लोकपर्व
हालांकि, खरगोन शहर, बांमंदी सहित अन्य गांवों में आज भी कुछ परिवार न सिर्फ इसे संजोए हुए हैं, बल्कि बड़े उत्साह के साथ मना रहे है. यहां हर साल महिलाएं मिट्टी से नरवत बनाती हैं और नई पीढ़ी को इसके महत्व से जोड़ने का प्रयास करती हैं. इस बार भी शहर की चमेली की बाड़ी में मंजुला तारे के घर पर महिलाएं और बालिकाएं जुटकर रोजाना पूजा-अर्चना और गीतों के साथ नरवत मना रही हैं.
मिट्टी की प्रतिमाएं बनाकर बोते है ज्वारे
नेहा तारे, कृतिका जोशी एवं तनवी बताती है कि, इस लोकपर्व की शुरुआत संजा पर्व के समाप्ति और शारदीय नवरात्र के प्रारंभ से होती है. संजा विसर्जन के समय ही बालिकाएं, नदी या किसी पवित्र जलाशय से मिट्टी लेकर घर आती है. इसमें गंगाजल, गाय का गोबर आदि मिलकर नरवत (शिव पार्वती स्वरूप प्रतिमाएं) बनाते है. इनके आस-पास ज्वारे बोते है. नवमी के दिन इनका विसर्जन होता है.
पारंपरिक निमाड़ी गीतों से आराधना
सुनीता कामदार एवं मंजुला तारे ने बताया, नवरात्रि के पहले दिन से पूजा अर्चना आरंभ होती है, जो पूरे नौ दिन चलती है. हर दिन नरवत का श्रृंगार रंग-बिरंगी, खुशबूदार, सहित विभिन्न प्रजातियों के फूलों से करते है. 3 से 4 पारंपरिक निमाड़ी गाकर आराधना और आरती करते है. टोकरी का खेल खेलती है, हारने वाले को चिढ़ाते है.
बचाने के लिए 10 साल से प्रयास
तनवी और श्रुति बताती है कि, नरवत की पूजा के समय महिलाएं लाल रंग के वस्त्र, या चुनरी पहनती है. संध्या कानूनगो कहती है विगत 10 वर्षों से हमलोग नरवत लोकपर्व मना रहे है, और बालिकाओं को सिखा रहे है, ताकि वे भी अपनी इस लोकपर्व से जुड़े रहे ओर बरसो पुरानी संस्कृति बची रहे.