नवरात्रि शुरू होने से ठीक एक हफ्ता पहले, मध्य प्रदेश के महेश्वर में नर्मदा तट पर बनी एक छोटी सी झोपड़ी में दिनभर की थकान के बाद एक शख्स गहरी नींद में सो रहा था। रात के करीब ढाई बजे उसका फोन बजा। नींद में ही उसने फोन उठाया, दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘बागे
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कुछ पलों की खामोशी के बाद एक जानी-पहचानी आवाज गूंजी, ‘अमित कहां हो?’ उसने जवाब दिया, ‘महेश्वर में हूं, महाराज।’ गुरुजी बोले, ‘नवरात्रि में तुम्हें बागेश्वर धाम आना है। यहां अपने भजन सुनाना है।’ कॉल करने वाले बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र शास्त्री थे। इस एक कॉल ने उस शख्स की जिंदगी बदल दी है।
यह कहानी है आदिवासी समुदाय से आने वाले गायक अमित धुर्वे की, जो आज बागेश्वर धाम के मंच से एक गजल गाकर पूरे देश में वायरल हो चुके हैं। उन्हें अब कनाडा से लेकर टी-सीरीज जैसी म्यूजिक कंपनी से भी गाने के लिए ऑफर आ चुका है। अमित धुर्वे ने गाना कहां से सीखा, कैसे ये जर्नी शुरू हुई और बागेश्वर धाम के संपर्क में कैसे आए? दैनिक भास्कर ने बागेश्वर धाम पहुंचकर अमित से खास बातचीत की।
बचपन में मां को खोया, पहली क्लास भी नहीं पढ़े अमित ने बताया, ‘ मेरा जन्म कटनी में हुआ, लेकिन वहां मेरा कोई घर-बार नहीं है। हम शुरू से ही टपरी (झोपड़ी) में रहे हैं। पिताजी भी तंबू लगाकर ही रहते थे। न कोई काम-धंधा था, न खेती-बाड़ी।’ वे कहते हैं- मेरा बचपन दुख और तकलीफों में बीता। मेरी दो मां थीं। हम लोग 7 बहनें और 3 भाई हैं। मैं छोटी मां का बेटा हूं। मैं जब 7-8 साल का था, तब मां का देहांत हो गया। बड़ी बहन ने मुझे पाला। घर के हालात इतने खराब थे कि कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा।
ट्रेन में पत्थर बजा कर गाया, मांग कर खाया जब अमित 10-11 साल के हुए, तो घर से निकल गए। कटनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें अपनी ही उम्र के कुछ लड़के मिले, जो ट्रेन में पत्थर बजाकर गाना गाते थे और भीख मांगकर अपना पेट भरते थे। अमित भी उनकी टोली में शामिल हो गए। उन्होंने उन्हीं लड़कों से पत्थर बजाना और गाना सीखा। वह दिनभर ट्रेन में गाते, लोगों से जो मिलता उससे पेट भरते और रात को अपनी झोपड़ी में पिता और बहन के पास लौट आते।

पिता से सीखा हुनर और महेश्वर तक का सफर अमित के पिता हारमोनियम सुधारने का काम करते थे। वे एक गांव में डेरा डालते और आसपास के 20-30 गांवों में घूम-घूमकर काम करते। ऐसे ही एक डेरे के दौरान वे महेश्वर पहुंचे। तब अमित की उम्र 14-15 साल रही होगी। यहीं रहकर अमित ने भी पिता से हारमोनियम बनाने का काम सीख लिया और साइकिल पर गांव-गांव घूमने लगे। कुछ समय बाद परिवार वापस कटनी आ गया।
अमित का मन अब गाने-बजाने में रम चुका था। वह अकेले ही घर से निकल पड़े और गांव-गांव डेरा डालकर हारमोनियम सुधारने और रामायण मंडलियों में भजन गाने लगे।
गाने से हुई शादी, फिर लकवे ने तोड़ा आष्टा के पास एक गांव में भजन गाते समय एक तबला वादक, जो उनके पिता के दोस्त थे, उनकी गायकी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव रख दिया। अमित कहते हैं, ‘मेरे पास तो पैसे नहीं थे, उन्होंने खुद के खर्च पर अपनी बेटी से मेरी शादी कराई।’ शादी के बाद वह पत्नी के साथ मध्य प्रदेश के अलग-अलग गांवों में झोपड़ी बनाकर रहने लगे। उनके तीन बेटियां और दो बेटे हैं।
शादी के कुछ साल बाद एक पारिवारिक चिंता के चलते उन्हें पैरालिसिस (लकवा) का अटैक आ गया। उनका मुंह टेढ़ा हो गया और वह ठीक से बोल भी नहीं पा रहे थे। डॉक्टरों ने उन्हें गाना गाने से सख्त मना कर दिया था। इस मुश्किल वक्त में उनके भजन गाने वाले साथियों ने ही उनका साथ दिया। अब वह पूरी तरह से नहीं मगर काफी हद तक ठीक हो चुके हैं।

नर्मदा तट पर झोपड़ी और संगीत की साधना साल 2016-17 में अमित महेश्वर आए और नर्मदा तट पर ही तंबू गाड़कर बस गए। यहां हारमोनियम सुधारने का काम ज्यादा नहीं मिलता था, इसलिए परिवार का पेट पालना मुश्किल हो रहा था। उन्होंने फिर से भजन मंडलियों के साथ गाना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्हें कथाओं और अन्य कार्यक्रमों में बुलाया जाने लगा, जिससे दो वक्त की रोटी का जुगाड़ होने लगा।
महेश्वर में नर्मदा तट पर देश के बड़े-बड़े संगीतकारों का आना-जाना लगा रहता था। अमित को भी उनके दर्शन करने और उन्हें सुनने का मौका मिला। करीब 4 महीने पहले, मंदसौर के फनी लाल नाम के एक व्यक्ति ने उनका एक भजन गाते हुए वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया। यह वीडियो मालवा-निमाड़ क्षेत्र में काफी फैला और लोग उन्हें जानने लगे।

मंदसौर के फनी लाल ने ही अमित की सोशल मीडिया प्रोफाइल भी बनाई।
गुरुजी का वो कॉल और बदल गई दुनिया अमित ने कभी नहीं सोचा था कि उन पर बागेश्वर धाम के गुरुजी की ऐसी कृपा होगी। वह उस रात को याद करते हुए कहते हैं, ‘मुझे लगा कोई मजाक कर रहा है। लेकिन जब गुरुजी की आवाज पहचानी, तो यकीन हुआ। उस रात मैं सो नहीं पाया।’ सुबह उन्होंने यह खुशखबरी अपने संगीत से जुड़े साथियों को दी।
हालत यह थी कि उनके पास बागेश्वर धाम जाने का किराया भी नहीं था। तब उनके दो मित्र, मुकेश भाई और संजू दादा, उन्हें अपने खर्चे पर लेकर आए और एक कुर्ता-पजामा भी खरीदवाया।
गुरुजी ने हजारों लोगों को मेरा परिचय दिया जब वह बागेश्वर धाम पहुंचे, तो पहली बार में पंडाल के पास तैनात दरबानों ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। उन्होंने धाम के तबला वादक रघुवीर जी को फोन किया, जिनकी मदद से वह मंच के करीब पहुंच पाए। अमित बताते हैं, ‘गुरुजी को देखते ही ऐसा लगा जैसे मैं उन्हें वर्षों से जानता हूं। उन्होंने मुझे बुलाया और मेरे जीवन की सारी बातें बताईं। ऐसा लगा जैसे वही मेरे मां-पिता और परिवार हैं।’
इसके बाद गुरुजी ने हजारों भक्तों के सामने अमित का परिचय कराया और उनसे भजन गाने को कहा। जैसे ही वह वीडियो धाम के ऑफिशियल पेज से शेयर हुआ, अमित की दुनिया बदल गई।

बागेश्वर धाम में पंडित धीरेंद्र शास्त्री अमित का परिचय भक्तों से कराते हुए।
कनाडा से टी-सीरीज तक, ऑफरों की झड़ी अमित के पास लगातार फोन आने लगे। वह कहते हैं, ‘ऐसी-ऐसी जगहों और देशों से कॉल आ रहे हैं, जिनका मैं नाम भी नहीं जानता। कनाडा से परफॉर्म करने का न्योता आया है। टी-सीरीज, संस्कार टीवी, वृंदावन के मंदिरों और अयोध्या, प्रयागराज जैसे कई धर्मस्थलों से भजन गाने के लिए बुलाया गया है।’ कथा पंडाल में आए अभिनेता और सांसद मनोज तिवारी ने भी उन्हें अपने एल्बम में गाने का मौका देने की बात कही है।
बेटे के पास बिस्कुट के पैसे नहीं, गुरुजी ने 50 हजार दिए इस शोहरत के बीच भी अमित अपनी जड़ों को नहीं भूले हैं। वह बताते हैं, ‘शुक्रवार(26 सितंबर) सुबह पत्नी से बात हुई। मेरा छोटा बेटा रोज बिस्कुट के लिए 5 रुपए मांगता है। आज भी उसने फोन पर पैसे मांगे। घर में पैसे नहीं थे, लेकिन गुरुजी की ऐसी कृपा हुई कि उन्होंने उस दिन की अपनी पूरी चढ़ोत्तरी, 50 हजार रुपए, मेरी झोली में डाल दिए।’
इन पैसों से वह एक अच्छा हारमोनियम खरीदने की योजना बना रहे हैं। गुरुजी के आदेश पर वह 9 दिन धाम में ही रुकेंगे, लेकिन परिवार में अष्टमी-नवमी की पूजा के लिए वह घर जाने की आज्ञा लेंगे।

बागेश्वरधाम में परफॉर्म करते हुए सिंगर अमित धुर्वे।