क्रिकेट की पिच पर ‘इंडियन जेन जी’ की जीत, हमारे GEN-Z पड़ोसियों से बेहतर हैं!

क्रिकेट की पिच पर ‘इंडियन जेन जी’ की जीत, हमारे GEN-Z पड़ोसियों से बेहतर हैं!


पटना. एशिया कप में जिस तरह से भारतीय टीम ने पाकिस्तान को धराशायी कर दिया, विरोधी टीम को हराने की जिद को जुनून में बदलकर अनुशासित तरीके से खेल खेला और जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया. इसकी तुलना हम नेपाल और बांग्लादेश में हुई जेन जी आंदोलन से करते हैं, क्योंकि नेपाल और बांग्लादेश के जेन जी ने हिंसा कर अपने ही देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया. भले ही सत्ता बदलने में वह सफल रहे, जिस तरह से हिंसा और उपद्रव किया वह नये जेनरेशन के दिशाहीन होने का सबूत था. वहीं, जिस तरह से भारतीय टीम ने पाकिस्तान को लगातार तीन मैचों में शिकस्त दी, तब भी बेहद संतुलित व्यवहार किया.अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लड़ना जरूर है, लेकिन अनुशासन के दायरे में रहकर अपनी जिद और जुनून को दिशा देनी है… यही तो जेन जी से लोग अपेक्षा करते हैं. वहीं, नेपाल और बांग्लादेश के जेन जी आंदोलनों ने दिखाया कि दिशा विहीन गुस्सा और हिंसा किस तरह देश को नुकसान पहुंचा सकती है.

भारत के जेन जी और पाकिस्तान पर जीत

दरअसल, नेपाल और बांग्लादेश के जेन जी आंदोलनों ने सत्ता तो बदल दी, लेकिन देश को हिंसा और अव्यवस्था की आग में झोंक दिया. इसके विपरीत, भारतीय टीम ने पाकिस्तान को हराने की जिद को जुनून और अनुशासन के साथ जोड़कर ऐतिहासिक जीत दर्ज की. यही अंतर बताता है कि लक्ष्य पाने के लिए संतुलन, संयम और अनुशासन कितना जरूरी है. यह सबक सिर्फ क्रिकेट या राजनीति नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में नई पीढ़ी यानी जेन जी (Gen Z) के लिए एक मार्गदर्शन है. सवाल यह है कि नई पीढ़ी अपनी ऊर्जा को किस दिशा में लगाती है-निर्माण की ओर या विनाश की ओर.

क्या व्यवस्था में भी बदलाव की संभावनाएं हैं?

दरअसल, आजकल चर्चा में ‘जैन जी’ का गुस्सा है. नेपाल और बांग्लादेश के उदाहरण देकर भारत में आंदोलन की बातें की जाती हैं. कहा जाता है कि ‘जेन जी’ पीढ़ी के लोगों बेहद ही प्रतिक्रियावादी होते हैं जो सत्ता में परिवर्तन करने की ताकत के रूप में पहचान लेकर आए हैं. ऐसा नेपाल और बांग्लादेश में कर भी चुके हैं. लेकिन, जिस तरीके से अपनी ताकत के बल पर बदलाव की बातें करते हैं क्या उससे व्यवस्था में भी बदलाव की संभावनाएं हैं? जानकार तो बिल्कुल ही इस संभावना को सिरे से खारिज कर देते हैं. हिंसक आंदोलन से प्राप्त की हुई सत्ता का बदलाव स्थायी नहीं हो सकता. नेपाल और बांग्लादेश में जिस तरह से अराजकता देखी गई, आने वाले समय में उसकी प्रतिक्रिया और भी चिंताजनक हो सकती है. ऐसे में भारतीय क्रिकेट टीम की एशिया कप क्रिकेट में जीत को इंडियन जेन जी की जीत के तौर पर देखा जा रहा है.

जिस तरह से पाकिस्तान टीम के खिलाड़ियों ने मैदान पर भी अनुशासन की सीमाओं को कई बार तोड़ा, वहीं भारतीय टीम ने अनुशासित और संयमित रहकर लगातार जवाब दिया. तीन मैचों में लगातार हारने के बाद पाकिस्तान कि वह जेन जी पीढ़ी पस्त पड़ गई जो मैदान पर खुलेआम एक-47 और फाइटर जेट जैसे संकेत के जरिए खुद को आक्रामक बताने की कोशिश करते हुए दिखाई दिए. लेकिन, भारतीय टीम ने अपना अनुशासन और संयम बना कर रखा और जीत की जिद को अपने जुनून और संयम से पूरा किया. यानी हमारे जेन जी बेहतर इसलिए हैं कि उनके पास कुछ मजबूत वैकल्पिक रास्ते हैं, मौके और मंच पर अनुशासन की प्रवृत्ति है.

आखिर हमारे भारतीय जेन जी क्यों बेहतर हैं?

कहते हैं जेन जेड पीढ़ी के लोग 1997 से 2012 के बीच इस दुनिया में आए हैं, यानी इनका जन्म इसी अवधि में हुआ है. अब अगर भारतीय टीम के खिलाड़ियों की औसत आयु आप देखेंगे तो यह 28 वर्ष के करीब होती है. यानी जेन जेड पीढ़ी की 13 वर्ष से 28 के बीच. खास बात यह भी भारत पाकिस्तान के बीच एशिया कप फाइनल में जीत जो  नायक बनकर सामने आए उस तिलक वर्मा उसकी उम्र महज 22 वर्ष है.  जाहिर है एशिया कप की भारतीय जीत और पाकिस्तान की हार के साथ ही नेपाल-बांग्लादेश के जेन जी आंदोलन दोनों ही युवा ऊर्जा के अलग-अलग परिणाम दिखाते हैं.

आंदोलन की राह और दिशा रखती है मायने

भारतीय टीम ने एशिया कप में पाकिस्तान को लगातार मात दी. खिलाड़ियों ने अपनी जिद को जुनून में बदला, लेकिन यह जुनून अनुशासन से बंधा था. यही अनुशासन उन्हें जीत की ओर ले गया. वहीं, नेपाल और बांग्लादेश में जेन जी की जिद हिंसा और तोड़फोड़ में बदल गई. फर्क साफ है-एक ओर जीत की प्रेरणा, दूसरी ओर अराजकता का अंधेरा. नेपाल और बांग्लादेश के जेन जी आंदोलनों ने सरकारें गिरा दीं, लेकिन खरबों की संपत्ति का नुकसान कर डाला. इन आंदोलनों में युवा शक्ति की ऊर्जा का नकारात्मक प्रयोग अधिक था बजाय रचनात्मक होने के.

आंदोलन में आक्रोश, पर खेल में पूरा अनुशासन

कहने का अर्थ है कि सकारात्मक बदलाव के लिए नकारात्मक रास्ता कतई अख्तियार नहीं किया जाना चाहिए. एशिया कप के फाइनल में यही तो हुआ जब नकारात्मक सोच के विपरीत, भारतीय टीम ने अपने जुनून को संयमित कर अनुशासन में बदला और इतिहास रच दिया. नेपाल और बांग्लादेश के जेन जी आंदोलनों ने दिखाया कि गुस्से और हिंसा से बदलाव की कीमत देश की तबाही होती है. वहीं, भारतीय क्रिकेट टीम ने साबित किया कि अनुशासन और संयम से जुनून को दिशा देकर हर लक्ष्य पाया जा सकता है.

लक्ष्य तक पहुंचने की जिद के संग तरीका क्या हो?

दरअसल, हर आंदोलन या अभियान का लक्ष्य होता है, फर्क बस साधन का होता है. भारतीय टीम ने खेल भावना से पाकिस्तान को हराया और सम्मान कमाया. नेपाल और बांग्लादेश के आंदोलनों ने भी लक्ष्य पाया, लेकिन देश की छवि और संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर. नई पीढ़ी के लिए यह दो रास्तों का फर्क है-निर्माण या विनाश! अंतर साफ-साफ है तो सबक भी बिल्कुल ही स्पष्ट है, यही अनुशासन जेन जी को सीखना चाहिए-गुस्से से बदलाव नहीं, बल्कि संयम से सफलता मिलती है.

भारत के जेन जी नेपाल-बांग्लादेश से क्यों बेहतर?

दरअसल, नेपाल और बांग्लादेश के जेन जी की तुलना में भारत की नई पीढ़ी खेल, स्टार्टअप और शिक्षा में अनुशासन के साथ आगे बढ़ रही है. यह वही जेन जी है, जिसने क्रिकेट टीम को प्रेरणा दी. अगर यही पीढ़ी अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाए तो भारत को विश्व में नई पहचान दिला सकती है. एशिया कप में पाकिस्तान पर भारत की जीत सिर्फ क्रिकेट की जीत नहीं थी, बल्कि यह नई पीढ़ी को एक सबक भी देती है. जीतने की जिद, अनुशासन और जुनून का सही तालमेल लक्ष्य प्राप्ति के लिए आवश्यक है.

सूर्य कुमार ब्रिगेड से यह सबक लेना जरूरी है!

नई पीढ़ी के सामने विकल्प साफ है-ऊर्जा का इस्तेमाल निर्माण में हो या विनाश में. नेपाल और बांग्लादेश के जेन जी आंदोलनों ने दिखाया कि गुस्से और हिंसा से बदलाव की कीमत देश की तबाही होती है. यही सबक आज की जेनरेशन के लिए सबसे जरूरी है-जिद और जुनून तभी सार्थक हैं जब वे अनुशासन के साथ हों. एशिया कप में पाकिस्तान पर भारत की ऐतिहासिक जीत नई पीढ़ी के लिए अनुशासन और संतुलन का पाठ है. फर्क भी साफ है-ऊर्जा को दिशा देना ही जीत और हार का असली निर्धारक है.



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