जबलपुर मेडिकल कॉलेज में करोड़ों रुपए के घोटाले का मामला सामने आया है। ईओडब्ल्यू (EOW) ने वर्ष 2011 से 2013 के बीच हुई कथित अनियमितताओं की जांच के बाद तत्कालीन संयुक्त संचालक एवं अधीक्षक सविता वर्मा, फार्मासिस्ट आर.पी. दुबे और एक निजी दवा कंपनी के संच
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आरोप और आपराधिक षड्यंत्र
इन तीनों पर अपने पद का दुरुपयोग कर दवा और सर्जिकल सामग्री की खरीद-फरोख्त में बड़ा घोटाला करने और आपराधिक षड्यंत्र रचने का आरोप है। EOW की जांच में पाया गया कि इस फर्जीवाड़े से सरकारी खजाने को 1.25 करोड़ रुपए का सीधा आर्थिक नुकसान हुआ।
लाभ देने के लिए नियमों की अनदेखी
जांच में खुलासा हुआ कि मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने मेसर्स मेडीनोवा फार्मास्यूटिकल्स एंड सर्जिकल डिस्ट्रीब्यूटर कंपनी को अवैध लाभ पहुंचाने के लिए नियमों को दरकिनार किया। कॉलेज ने इस कंपनी से करीब 7.63 करोड़ रुपए की दवाएं और सर्जिकल सामग्री खरीदी।
घोटाले का मुख्य आधार यह रहा कि अधिकारियों ने दवा क्रय नीति 2009 का उल्लंघन किया। सामान्य प्रक्रिया के तहत हर साल नई निविदा जारी होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इसके अलावा एग्रीमेंट में समाप्ति तिथि का उल्लेख जानबूझकर नहीं किया गया, जिससे कंपनी को लगातार महंगे दामों पर सप्लाई करने का मौका मिला।
निविदा प्रक्रिया में गड़बड़ी
EOW की रिपोर्ट के अनुसार, 2011-12 में जब दवा आपूर्ति के लिए निविदा जारी हुई, तब पहले के पांच निविदाकार असहमत होने पर उनकी सिक्योरिटी जब्त कर ली गई। यह एग्रीमेंट केवल नई निविदा जारी होने तक ही लागू होना चाहिए था, लेकिन साल 2013 तक नई निविदा जारी नहीं की गई और कंपनी से लगातार ऊंचे दामों पर खरीदारी होती रही।
EOW ने निष्कर्ष निकाला कि तत्कालीन डीन सविता वर्मा और फार्मासिस्ट आर.पी. दुबे ने कंपनी संचालक के साथ मिलकर आपराधिक षड्यंत्र किया, जिससे कंपनी को अवैध मुनाफा हुआ और शासन को 1.25 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा।
इस गंभीर मामले की पुष्टि के बाद आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं आपराधिक विश्वासघात और आपराधिक षड्यंत्र, साथ ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 2018 की धाराओं के तहत FIR दर्ज कर दी गई है।