जॉब छोड़ मैकेनिकल इंजीनियर ने शुरू की खेती… 12 एकड़ से शुरुआत, अब कमा रहा लाखों का मुनाफा

जॉब छोड़ मैकेनिकल इंजीनियर ने शुरू की खेती… 12 एकड़ से शुरुआत, अब कमा रहा लाखों का मुनाफा


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Engineer Become Farmer: एमपी के खंडवा जिले के भगवानपुरा गांव के 30 वर्षीय युवा अक्षय पटेल ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद प्राइवेट नौकरी को अलविदा कहकर खेती को अपना जीवन बना लिया. आज वो सबके लिए एक प्रेरणा बन रहे हैं.

Engineer Become Farmer: खंडवा जिले के भगवानपुरा गांव का नाम अब प्रगतिशील खेती के लिए जाना जाने लगा है. इसके पीछे गांव के 30 वर्षीय युवा अक्षय पटेल हैं, जिन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद प्राइवेट नौकरी को अलविदा कहकर खेती को अपना जीवन बना लिया. इंदौर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद अक्षय ने कुछ समय तक निजी क्षेत्र में काम किया, लेकिन गांव के हालात, खेती की संभावनाएं और अपने खेत के कुएं में सालभर पानी देख उन्होंने खेती को अपनाने का फैसला किया. साल 2020 में अक्षय ने नौकरी छोड़ दी और आधुनिक तकनीकों के साथ खेती शुरू कर दी.

कैसे उगाई जाती हैं फसल?
उनके पास 25 एकड़ पुश्तैनी जमीन है, जिसमें से 12 एकड़ में टिंडा, खीरा और ककड़ी जैसी फसलें ड्रिप और मल्चिंग पद्धति से उगाई जा रही हैं. इन फसलों की खास बात यह है कि ये गर्मी और सर्दी दोनों सीजन में अच्छी पैदावार देती हैं और लागत के मुकाबले मुनाफा कहीं ज्यादा होता है. अक्षय की पहली खेती सिर्फ 2 एकड़ में शुरू हुई थी. पहले ही साल में अच्छा मुनाफा मिला, जिससे उनका उत्साह और बढ़ा. पिछले साल 5 एकड़ में सब्जियों की खेती कर 8 लाख रुपए की कमाई की. इस साल 12 एकड़ में खेती से लगभग 18 लाख रुपए की आमदनी का अनुमान है.

खेती के साथ-साथ अक्षय ने सामाजिक जिम्मेदारी भी निभाई है. गांव में पीने के पानी की भारी किल्लत थी. अपने खेत के कुएं से 5 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाकर उन्होंने पूरे गांव को पानी देना शुरू किया. आज गांव के 250 से अधिक घरों में नल कनेक्शन है, जिससे हर महीने करीब 60 हजार रुपए की अतिरिक्त आमदनी होती है. गरीब परिवारों से वे कोई शुल्क नहीं लेते हैं.

टिंडा और खीरे की फसल पर फोकस
खेती में उनका प्रमुख फोकस टिंडा और खीरे की फसल पर है. अप्रैल में पहली फसल और अगस्त में दूसरी फसल लगाते हैं. पौधों को खाद और पानी ड्रिप सिस्टम से दिया जाता है. हर एकड़ पर लगभग 20 हजार की लागत आती है, जबकि उत्पादन डेढ़ लाख तक पहुंचता है. मल्चिंग तकनीक के तहत खेतों में पॉलीथिन की परत बिछाई जाती है, जिससे नमी बनी रहती है और घास-फूस नहीं उगती है. इससे सिंचाई की जरूरत कम पड़ती है और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है. एक एकड़ में मल्चिंग पेपर बिछाने का खर्च करीब 12 से 15 हजार रुपए आता है.

खेती के साथ-साथ अक्षय ने गांव के युवाओं को भी रोजगार से जोड़ा है. 4 से 6 लोगों को नियमित काम देते हैं. इसके अलावा 50 एकड़ जमीन लीज पर लेकर चने की खेती भी कर रहे हैं. आज जब गांव के ज्यादातर युवा नौकरी की तलाश में शहरों की ओर रुख करते हैं. वहीं, अक्षय पटेल ने यह साबित किया है कि अगर संसाधनों का सही उपयोग और आधुनिक तकनीक से खेती की जाए, तो गांव में रहकर भी करोड़ों की संभावनाएं पनप सकती हैं.

Deepti Sharma

Deepti Sharma, currently working with News18MPCG (Digital), has been creating, curating and publishing impactful stories in Digital Journalism for more than 6 years. Before Joining News18 she has worked with Re…और पढ़ें

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