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Balaghat News: मध्य प्रदेश के बालाघाट में ही नहीं बल्कि देश की कई जगहों पर रावण को भगवान माना जाता है और पूजा-अर्चना की जाती है. इस फेहरिस्त में मंदसौर भी शामिल है, जहां पर लंकापति की पत्नी मंदोदरी का मायका माना जाता है.
बालाघाट. दशहरा (Dussehra 2025) एक ऐसा पर्व है, जिसे असत्य पर सत्य की जीत, अधर्म पर धर्म की जीत और बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है. दशहरा पर्व इसलिए भी मनाया जाता है क्योंकि भगवान राम ने लंकापति रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी. ऐसे में हर साल विजयादशमी यानी दशहरे के मौके पर बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन किया जाता है लेकिन भारत में कुछ जनजाति ऐसी भी हैं, जो रावण की पूजा करती हैं. वहीं कुछ लोग रावण को अपना राजा मानते हैं. ऐसे में आज जानने की कोशिश करेंगे कि रावण को लेकर क्या है आदिवासी समुदाय की मान्यता.
मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में ही नहीं बल्कि देश के कई स्थानों पर रावण को भगवान माना जाता है और दशानन की पूजा-अर्चना की जाती है. इसमें मंदसौर भी शामिल है, जहां पर रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका माना जाता है. ऐसे में वहां रावण को दामाद मानकर उसकी पूजा की जाती है. उत्तर प्रदेश के बिसरख में रावण का मंदिर भी है. वहीं महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में रावण को कुलदेवता माना जाता है. वहां भी दशानन की पूजा की जाती है. मध्य प्रदेश के पातालकोट में रावण के बेटे मेघनाद की पूजा की जाती है.
आदिवासी समाज के लोगों ने रावण दहन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चाल बताया है, जिन्होंने 1969 में संघ के मुख्यालय नागपुर से रावण दहन की शुरुआत की थी. हालांकि 1947 के बाद से रावण दहन की शुरुआत झारखंड के रांची से हुई थी. वहीं अब उन्होंने रावण दहन को आदिवासियों की भावनाओं को आहत करने वाला बताया और इसे एक घृणित परंपरा बताया है. समाज ने पुतला दहन को एक गैरकानूनी सभा का हिस्सा भी बताया है.
राहुल सिंह पिछले 10 साल से खबरों की दुनिया में सक्रिय हैं. टीवी से लेकर डिजिटल मीडिया तक के सफर में कई संस्थानों के साथ काम किया है. पिछले चार साल से नेटवर्क 18 समूह में जुड़े हुए हैं.
राहुल सिंह पिछले 10 साल से खबरों की दुनिया में सक्रिय हैं. टीवी से लेकर डिजिटल मीडिया तक के सफर में कई संस्थानों के साथ काम किया है. पिछले चार साल से नेटवर्क 18 समूह में जुड़े हुए हैं.