विदिशा जिले के एक गांव में परमारकालीन प्राचीन रावण बाबा मंदिर स्थित है। यहां रावण की विशाल प्रतिमा लेटी हुई अवस्था में विराजमान है। ग्रामीण किसी भी शुभ कार्य से पहले रावण बाबा को आमंत्रित करते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
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ग्रामीणों के अनुसार, शादी का पहला कार्ड रावण बाबा को भेजा जाता है। विवाह की शुरुआत प्रतिमा की नाभि में तेल चढ़ाकर की जाती है। घर-परिवार में होने वाले हर बड़े कार्यक्रम का पहला आमंत्रण बाबा को ही दिया जाता है।
स्थानीय पुजारी पंडित सुमित तिवारी बताते हैं कि बरसों पहले प्रतिमा को सीधा करने की कोशिश की गई थी। उस दौरान जेसीबी में अचानक आग लग गई, जिसके बाद ऐसा प्रयास दोबारा नहीं किया गया। एक बार गांव में यज्ञ के दौरान एक संत ने बाबा को प्रसाद नहीं चढ़ाया, तो अचानक तेज आंधी और बारिश शुरू हो गई। संत द्वारा माफी मांगकर प्रसाद अर्पित करने के बाद यज्ञ बिना किसी बाधा के संपन्न हुआ।
यहां के ब्राह्मण परिवार खुद को रावण का वंशज मानते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उनके लिए रावण केवल लंका के राजा नहीं, बल्कि विद्या और वीरता के देवता हैं।
गांव की यह मान्यता और आस्था इस मंदिर को पूरे प्रदेश में एक अनोखी पहचान दिलाती है।
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