उज्जैन में अनोखी परंपरा… न दहन, सिर्फ दशानन की पूजा, जानें रावण के अनूठे मंदिर का राज

उज्जैन में अनोखी परंपरा… न दहन, सिर्फ दशानन की पूजा, जानें रावण के अनूठे मंदिर का राज


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Ravana Worship Unique Tradition: महाकाल की नगरी उज्जैन में रावण को शिव का परम भक्त माना जाता है. उज्जैन से करीब 20 किमी दूर बड़नगर रोड पर चिकली गांव में आज भी रावण की पूजा की जाती है. यहां हर साल दशहरे पर रावण दहन नहीं होता है. आइए जान लेते हैं यहां की सदियों से चली आ रही परंपरा के बारे में.

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Ravana Worship Unique Tradition: विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकाल की नगरी में हर पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ में बनाया जाता है. आज विजयादशमी पर पूरे भारतवर्ष में कई जगह रावण दहन होगा, लेकिन धार्मिक नगरी उज्जैन से करीब 20 किमी दूर बड़नगर तहसील के चिकली गांव में अतिप्राचीन दशानन लंकेश रावण महाराज की पूजा की जा रही है. यहा रावण का अनूठा मंदिर है, जिसमें रावण की 8 फीट ऊंची प्रतिमा विराजमान है. ग्रामीण लोगों के मुताबिक, यह मंदिर वर्षों पुराना है और सदियों पुरानी परंपरा है. श्रद्धालु मन्नत लेकर आते हैं. ग्रामीणों के मुताबिक, यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. किसी को नहीं पता कि मंदिर कब और किसने बनवाया, लेकिन पूजन और दहन की परंपरा लगातार निभाई जा रही है.

विजयादशमी पर पूजन होता है न की रावण दहन 
चैत्र नवरात्रि की नवमी और शारदीय नवरात्रि के बाद दशहरा के दिन यहां दो बार रावण का पूजन और दहन किया जाता है. इस मौके पर गांव में मेला भी लगता है. श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां मांगी गई मनोकामनाएं जरूर पूरी होती है. इसलिए गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के दूर-दराज से लोग दर्शन करने पहुंचते हैं. यहां चैत्र नवरात्रि में माताजी की आराधना के साथ रामनवमी के अगले दिन पर दशहरा मनाने की परंपरा है.

चैत्र नवरात्रि पर होता है वध 
गांव के बद्रीलाल कुमावत ने कहा कि चैत्र नवरात्रि में यहा मेला लगता है और श्रीराम-रावण का युद्ध देखने आसपास के 25 गांव के लोग शामिल होते हैं. राम और रावण का युद्ध देखने सभी धर्म के लोग एकत्रित होते हैं. इतना ही नही रामनवमी के अगले दिन रावण के मंदिर को पूरा सजा दिया जाता है. पूरे प्रदेश में सिर्फ चिकली में रामनवमी के दूसरे दिन धूमधाम से रावण दहन कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. इसमें राम, लक्ष्मण, हनुमान जी बनकर गांव के कलाकार रावण से युद्ध करने रथ पर सवार होकर आते हैं.

लोगों की मन्नत पूरी होती हैं 
गांव वालों के अनुसार, यहां पूजा की परंपरा आज से नहीं, बल्कि सदियों पुरानी है. कोई नहीं जानता कि रावण का मंदिर कब और किसने बनाया. हमारे पूर्वजों को हमने रावण की पूजा करते देखा और अब हम भी इसी परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. ग्रामीणों का मानना है कि एक बार रावण की पूजा करना भूल गए थे, इसके बाद गांव में भीषण आग लग गई और काफी नुकसान भी हुआ था. इसके बाद हमेशा दशहरा पर रावण की पूजा का विधान है.

Deepti Sharma

Deepti Sharma, currently working with News18MPCG (Digital), has been creating, curating and publishing impactful stories in Digital Journalism for more than 6 years. Before Joining News18 she has worked with Re…और पढ़ें

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