Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश में प्रशासनिक सर्जरी का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा. मंगलवार को जारी अधिसूचना में राज्य सरकार ने 24 आईएएस अधिकारियों के स्थानांतरण की घोषणा की, जिसमें 12 जिलों के कलेक्टरों को नया दायित्व सौंपा गया. यह फेरबदल न केवल विकास की गति को तेज करने का प्रयास लगता है, बल्कि कई अधिकारियों के विवादों से उपजे तनाव को भी सुलझाने की कोशिश नजर आती है. विशेष रूप से सात ऐसे आईएएस अफसरों का नाम चर्चा में है, जो अपने कार्यकाल में विधायकों, सामाजिक संगठनों और न्यायिक मामलों से उलझ चुके हैं. डिंडौरी की नेहा मारव्या और भिंड के संजीव श्रीवास्तव जैसे नामों का हटना साफ बता रहा है कि राजनीतिक हस्तक्षेप अब प्रशासनिक फैसलों को कैसे प्रभावित कर रहा है. इन तबादलों से न केवल स्थानीय स्तर पर सत्ता का संतुलन बदला है, बल्कि आईएएस कैडर में भी सतर्कता का संदेश गया है. आइए, इन विवादास्पद अधिकारियों की कहानी को गहराई से समझें, जो मध्य प्रदेश की नौकरशाही की चुनौतियों को उजागर करती है.
2011 बैच की नेहा मारव्या को 14 वर्षों की सेवा के बाद पहली बार कलेक्टर का दायित्व डिंडौरी में मिला. आदिवासी बहुल इस जिले में नेहा ने विकास योजनाओं को पारदर्शी बनाने की कोशिश की, लेकिन उनकी सख्ती शहपुरा से भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे को चुभ गई. जनसुनवाई के दौरान धुर्वे ने नेहा पर स्थानीय मुद्दों की अनदेखी और ग्रामीण योजनाओं में देरी का आरोप लगाया. एक घटना में धुर्वे ने सार्वजनिक रूप से नेहा की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए मुख्यमंत्री से शिकायत करने की धमकी दी. नेहा ने आदेश जारी कर कलेक्ट्रेट में जुलूस और रैलियों पर पाबंदी लगाई थी, जो विवाद का कारण बनी. महज आठ महीने बाद नेहा को हटा दिया गया. अब वे भोपाल में विमुक्त घुमंतू एवं अर्धघुमंतू जनजाति विभाग की संचालक हैं. दिलचस्प है कि नौ माह पूर्व आईएएस सम्मेलन में नेहा ने फील्ड पोस्टिंग में लिंग भेदभाव का मुद्दा उठाया था. यह विवाद महिलाओं के लिए प्रशासनिक चुनौतियों का प्रतीक बन गया. नेहा का मामला साबित करता है कि कलेक्टर का पद राजनीतिक दबाव का पहला शिकार कैसे बन जाता है.
संजीव श्रीवास्तव: विधायक से हाथापाई का कुख्यात चेहरा
भिंड के कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव का नाम सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा. 27 अगस्त को खाद संकट पर भाजपा विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह ने कलेक्टर बंगले के बाहर धरना दिया. बहस इतनी तीखी हो गई कि कुशवाह ने संजीव पर घूंसा तान दिया और उन्हें ‘चोर’ कहकर अपमानित किया. संजीव ने अवैध रेत खनन रोकने की बात कही, तो विधायक भड़क गए. वीडियो वायरल होने के बाद मामला थाने पहुंचा, जहां दोनों ने एक-दूसरे पर शिकायत दर्ज की. कुशवाह का आपराधिक इतिहास रहा है, जिसमें लोकसेवक पर हमले की सजा शामिल है. बाद में क्षत्रिय समाज ने संजीव को तलवार भेंट कर सम्मानित किया, लेकिन विवाद ने उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया. 34 दिन बाद संजीव को हटा दिया गया. अब वे अपर सचिव के पद पर हैं. यह घटना अफसर-विधायक टकराव की गहरी खाई को दर्शाती है, जहां किसान हित दब जाता है.
अजय देव शर्मा: धार्मिक संवेदनशीलता पर ठोकर
पांढुर्णा (छिंदवाड़ा) के कलेक्टर अजय देव शर्मा नए कलेक्ट्रेट निर्माण को लेकर फंस गए. शहर से तीन किमी दूर अमरावती मार्ग पर शनि मंदिर के पास लिंगायत समाज की दान की गई जमीन पर भवन बनाने का फैसला विवादास्पद साबित हुआ. समाज ने दुरुपयोग का आरोप लगाया, जबकि अजय ने विकास का हवाला दिया. विरोध प्रदर्शन बढ़े, और स्थानीय धार्मिक भावनाएं भड़क उठीं. अजय को हटा दिया गया, और नीरज वशिष्ठ को नया कलेक्टर बनाया गया. यह मामला बताता है कि अफसरों को सांस्कृतिक मुद्दों में सावधानी बरतनी पड़ती है, वरना विकास परियोजनाएं अटक जाती हैं.
हरेंद्र नारायण: फोन न उठाने की सजा
भोपाल नगर निगम के कमिश्नर हरेंद्र नारायण पर भाजपा नेताओं की नाराजगी चरम पर थी. मंत्री विश्वास सारंग, सांसद आलोक शर्मा और विधायक भगवानदास सबनानी ने उन्हें फोन न उठाने और जनसमस्याओं की अनदेखी का आरोप लगाया. एक आग की घटना में पार्षदों के कॉल्स इग्नोर करने पर सारंग ने सार्वजनिक फटकार लगाई. दिशा बैठक में भी अनुपस्थिति ने विवाद बढ़ाया. अब हरेंद्र छिंदवाड़ा कलेक्टर हैं. राजधानी जैसे संवेदनशील पद पर यह लापरवाही महंगी साबित हुई, जो संवाद की कमी को उजागर करती है.
संस्कृति जैन: आंतरिक कलह का शिकार
सिवनी की कलेक्टर संस्कृति जैन पर उद्यानिकी विभाग की सहायक संचालक डॉ. आशा उपवंशी ने गंभीर आरोप लगाए. आशा ने 5 जून को पत्र लिखकर सात-आठ महीनों से मानसिक प्रताड़ना और अपमान का दावा किया. विभागीय कलह ने संस्कृति की छवि खराब की. अब वे भोपाल नगर निगम की कमिश्नर हैं. महिलाओं के बीच ऐसा विवाद कार्यस्थल संस्कृति पर सवाल उठाता है.
जमुना भिड़े: भूमाफिया को संरक्षण के आरोप
निवाड़ी की नई कलेक्टर जमुना भिड़े इंदौर अपर आयुक्त रहते रंगवासा-राऊ क्षेत्र में सरकारी जमीन बिक्री की मंजूरी पर घिरीं. 20 करोड़ कीमत की जमीन पर विवादित आदेश से भूमाफिया फायदा उठा रहे थे. कलेक्टर इलैया राजा टी ने मंजूरी रोकी, लेकिन जमुना के फैसले सवालों में हैं. यह भ्रष्टाचार के संदेह को जन्म देता है.
शीलेन्द्र सिंह: अपमान और न्यायिक सजा का दोहरा झटका
छिंदवाड़ा के पूर्व कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह का विवाद सबसे विचित्र है. प्रदर्शन के दौरान ज्ञापन न लेने पर कांग्रेसियों ने कुत्ते के गले में उनका नाम बांध दिया. इससे पहले छतरपुर में विधायक राजेश प्रजापति से झगड़ा और संविदा कर्मचारियों की बर्खास्तगी पर हाईकोर्ट ने सात दिन की सजा व 50 हजार जुर्माना लगाया. अब वे नगरीय विकास विभाग में अपर सचिव हैं. यह घटना प्रशासनिक गरिमा पर चोट है.
ये विवाद मध्य प्रदेश की नौकरशाही में राजनीतिक हस्तक्षेप, विभागीय कलह और पारदर्शिता की कमी को उजागर करते हैं. सात महिलाओं को कलेक्टर बनाना सकारात्मक कदम है, लेकिन विवाद बताते हैं कि अफसरों को संतुलन बनाना पड़ता है. सरकार को जांच तंत्र मजबूत करना चाहिए, ताकि विकास प्राथमिकता बने. नई पोस्टिंग से उम्मीद है कि ये अधिकारी बेहतर प्रदर्शन करेंगे, और राज्य प्रगति पथ पर चलेगा.