भारत-पाकिस्तान के बीच टूट चुका है क्रिकेट का पुल,लड़ाई का जरिया बन चुका है खेल

भारत-पाकिस्तान के बीच टूट चुका है क्रिकेट का पुल,लड़ाई का जरिया बन चुका है खेल


नई दिल्ली. जो कभी एक तनावपूर्ण और रोमांचक क्रिकेट प्रतिद्वंद्विता हुआ करती थी, अब कुछ और ही हो गई है.भारत-पाकिस्तान अब अंधराष्ट्रवाद में इस कदर डूबा हुआ है कि खिलाड़ी या प्रशंसक कैसे पीछे हट सकते हैं, यह देखना मुश्किल हो रहा है. सालों तक, भारत बनाम पाकिस्तान एक तनावपूर्ण मामला रहा और फिर भी, यह एक क्रिकेट प्रतिद्वंद्विता थी. शानदार मुकाबले हुए – उदाहरण के लिए, सचिन तेंदुलकर बनाम वसीम अकरम या शोएब अख्तर बनाम वीरेंद्र सहवाग और जो भी जीतता, वह राष्ट्रीय नायक बन जाता. लेकिन यह सब क्रिकेट तक ही सीमित था हाँ, सेना के जवान जीत का जश्न मनाते थे, लेकिन यह कभी भी मुख्य आकर्षण नहीं रहा. एशिया कप ने सब कुछ बदल दिया है. भारत-पाकिस्तान अब एक क्रिकेट मैच नहीं रहा. यह कुछ बहुत ही अलग हो गया है, और इस प्रक्रिया में, खेल ने हार मान ली है.

चलिए सही और गलत में न पड़ें बस तथ्य बताएँ तो सच यह है कि पिछले तीन हफ़्तों के नाटक में क्रिकेट हार गया है. क्रिकेटर ऐसे ग्लेडिएटर बन गए हैं जो मैच नहीं हार सकते. सच तो यह है कि हमेशा एक विजेता और एक हारने वाला होता है. और फिर भी, आप हारना नहीं चाहते तो क्या हुआ अगर ये एक खेल है? व्यावहारिक तौर पर, ये कुछ और ही है.

भारत जीता, खेल हार गया

एशिया कप फ़ाइनल के बाद से, सैकड़ों लोगों के मन में सवाल हैं कि अगर भारत मैच हार जाता तो क्या होता? तब क्या होता? वैसे तो कुछ नहीं होता, दुनिया उलट-पुलट नहीं होती, और चीज़ें आगे बढ़ती रहतीं. सूरज निकलता, और हम सब अपने कामों में लगे रहते. लेकिन फिर, क्या वाकई ऐसा होता? गालियाँ, कटाक्ष और बाकी सब जारी रहता और मामला फिर से राजनीतिक रूप से गरमा जाता. यह खेल के लिए अच्छा नहीं हो सकता. आगे चलकर, प्रशंसकों और खिलाड़ियों पर दबाव बढ़ता ही जाएगा, और कट्टरपंथियों द्वारा युवाओं को भड़काने के लिए खेल का इस्तेमाल किया जाएगा. पिछले हफ़्ते कोलंबो में 16 साल के पाकिस्तानी फ़ुटबॉलर ने जिस तरह जश्न मनाया, वह इसका एक बेहतरीन उदाहरण है. उसने जो किया उसके लिए किसी ने उसे एक शब्द भी नहीं कहा, और वह बड़ा होकर यही सोचेगा कि वह एक हीरो है पर असल में, वह एक मूर्ख है जिसने अपनी ज़िंदगी की दिशा खो दी है, और शायद एक अच्छा करियर भी छोड़ देगा.

रनभूमि बन चुकी है रणभूमि

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या आगे जाकर हालात बदल सकते हैं? यह प्रतिद्वंद्विता अब कहाँ जाएगी? क्या वापसी का कोई रास्ता है? दुख की बात है कि इसका जवाब ना है. जब प्रशासक शरारत करते हैं, जब सत्ता में बैठे लोग अपनी ज़िम्मेदारियाँ भूल जाते हैं, तो चीज़ें फिर कभी पहले जैसी नहीं रह सकतीं हारिस रऊफ़ और साहिबज़ादा फ़रहान को भूल जाइए.सूर्या को भूल जाइए अगर खिलाड़ी हद से ज़्यादा लापरवाही बरतते हैं तो उन्हें फटकार लगाई जा सकती है पर मोहसिन नक़वी जैसे व्यक्ति को कौन फटकारेगा, जिनसे मिसाल कायम करने की उम्मीद की जाती है? उन्हें कौन कहता है कि खिलाड़ियों को भड़काकर उन्होंने हद से ज़्यादा लापरवाही बरती है? उन्हें कौन कहता है कि उन्हें ये ट्वीट करने का कोई हक़ नहीं था? वो अपने राजनीतिक समर्थकों की सेवा में खुश हैं, और इस प्रक्रिया में, खेल का नुकसान हुआ है. क्रिकेट प्रतिद्वंद्विता अब खत्म हो चुकी है हमारे पास जो बचा है वह एक राक्षस है, जिसकी अगली झलक 5 अक्टूबर को कोलंबो में दिखाई देगी.



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