नटेरन तहसील के रावण गांव में पर्यावरण और जल संरक्षण की मिसाल कायम हो रही है। यहां का नाम भले ही पौराणिक खलनायक रावण से जुड़ा हो, लेकिन इस गांव के युवाओं ने इसे पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बना दिया है। कुछ साल पहले लगाए गए सैकड़ों पौधे आज हरे-भरे पेड़
.
गांव के युवाओं ने लंकेश्वर वेलफेयर सोसाइटी गठित कर इस दिशा में काम शुरू किया है। वे पूरे मंदिर परिसर को हरियाली से आच्छादित कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि 2015 में आचार्य शिवकुमार तिवारी के मार्गदर्शन में छात्रों ने गांव में पौधरोपण का बीड़ा उठाया। यह सिलसिला लगातार चल रहा है।
2018 में लंकेश्वर वेलफेयर सोसाइटी के बैनर तले गांव के युवाओं ने एक विशेष अभियान चलाया। इस अभियान में रावण बाबा के ऐतिहासिक तालाब के चारों ओर सैकड़ों पौधे एक साथ रोपे गए। आज वे पौधे पेड़ बनकर तालाब की सुंदरता और पर्यावरण की शुद्धता को बढ़ा रहे हैं। इस अभियान में शिवाकांत मिश्रा, उपेंद्र तिवारी, चंद्रकांत तिवारी, अभय तिवारी, बृजमोहन तिवारी और गांव के अन्य उत्साही युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
पत्थर मार युद्ध आज, ध्वज परिक्रमा के समय राम सेना पर पत्थर बरसाती है रावण सेना
आनंदपुर जिले से 125 किमी दूर स्थित काला देव में अनोखे ढंग से दशहरा मनाया जाता है। यह पत्थर मार युद्ध जिले में ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है। काला देव के दशहरा मैदान में एक ओर भगवान राम की ध्वज पताका लगी होती है ताे दूसरी ओर रावण की सेना खड़ी होती है। जब राम सैनिक दौड़कर बीच मैदान में लगी ध्वज पताका की परिक्रमा करते हैं, तभी दूसरी ओर से रावण दल के सैनिक गोफन से पत्थर बरसाते हैं।
यह प्रक्रिया एक या दो बार नहीं, बल्कि पांच बार चलती है । सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ध्वज पताका की परिक्रमा कर रहे राम सैनिकों को रावण दल के सैनिकों द्वारा गोफन से बरसाए गए पत्थर छू भी नहीं पाते। ग्राम काला देव के लोग राम सेना में शामिल होकर ध्वज की परिक्रमा करते हैं। वहीं, रावण दल की सेना में आसपास के भील बंजारा समुदाय के लोग शामिल होते हैं।