हमें बचपन से सिखाया जाता है, सड़क पर हमेशा बाएं चलो। ये सीख हमारी आदत में इस तरह शुमार हो गई है कि हम सड़क पर पैदल चलते हुए भी इसी नियम का पालन करते हैं, जबकि ये नियम गलत है। सड़क पर बाएं चलने का नियम गाड़ियों के लिए हैं न कि पैदल चलने वालों के लिए।
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सड़क पर वाहनों की दिशा में, यानी उनकी ओर पीठ करके चलना, पैदल यात्रियों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इस जानलेवा गड़बड़ी को लेकर मध्य प्रदेश के एक सामाजिक कार्यकर्ता ज्ञान प्रकाश ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अपनी याचिका में उन्होंने सड़क पर मरने वाले लोगों के आंकड़े दिए हैं।ये भी बताया है कि आखिर क्यों देश में सड़क पर चलने वालों के लिए नियम कायदे नहीं बने हैं?
कैसे पिछले 100 सालों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग ये गलती दोहरा रहे हैं? उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी। इस मामले को लेकर भास्कर ने याचिकाकर्ता के साथ एक्सपर्ट से बात की। पढ़िए रिपोर्ट
चार केस से समझिए कैसे जानलेवा साबित हो रहा बाएं पैदल चलने का नियम केस1: रतलाम के एक वाहन शोरूम पर चौकीदारी करने वाले नानूराम सिंघाड़ की 24 अगस्त को सड़क हादसे में मौत हो गई। नानूराम महू-नीमच हाईवे से सटे खाराखेड़ी रिंगरोड पर पैदल घर जा रहे थे, तभी पीछे से आ रही बाइक ने नानूराम को टक्कर मारी, सिर में चोट लगने से उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
केस2: इंदौर में एयरपोर्ट रोड पर सड़क पर पैदल जा रही एक साध्वी को पीछे से आई एक क्रेन ने टक्कर मार दी, इससे बुजुर्ग साध्वी की मौके पर ही मौत हो गई। ये घटना 31 जुलाई की है। स्थानीय लोगों ने मौके पर ही क्रेन के ड्राइवर को पकड़ लिया और उसे पुलिस के हवाले कर दिया।

ज्यादातर लोग सड़क पर बायीं ओर चलते हैं, ये गलत तरीका है। पीछे से आने वाली गाड़ियां उन्हें दिखाई नहीं देती।
केस3: छतरपुर के खैरा कला गांव के रहने वाले 75 साल के कुंज बिहारी त्रिवेदी 24 सितंबर को सुबह 10 बजे गांव के मुन्ना आदिवासी के यहां पूजा करने गए थे। वहां से लौटते हुए एक तेज रफ्तार मोटरसाइकिल ने बुजुर्ग को टक्कर मार दी। परिजन बुजुर्ग को बिजावर के अस्पताल ले गए वहां से उन्हें छतरपुर रेफर किया लेकिन बुजुर्ग की मौत हो गई।
केस 4: भोपाल में 14 जून 2024 को हबीबगंज इलाके में वल्लभ भवन के प्रोटोकॉल अधिकारी संजय सिंह चौहान के पिता रघुवीर सिंह को तेज रफ्तार मोटरसाइकिल चालक ने टक्कर मार दी। अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। रघुवीर सिंह रात में टहलने के लिए गए थे। मोटरसाइकिल सवार ने उन्हें पीछे से टक्कर मारी।

कैसे हुई इस ‘जानलेवा भूल’ की शुरुआत? इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने वाले याचिकाकर्ता ज्ञान प्रकाश बताते हैं कि इस समस्या की जड़ अंग्रेजों के समय के एक यातायात चिह्न में छिपी है। वाहनों के लिए “Keep Left” का नियम बनाया गया था। जब इसका हिंदी में अनुवाद किया गया, तो लिखा गया-’अनिवार्य रूप से बाएं चलिए।’
ज्ञान प्रकाश के अनुसार, ‘चलिए’ शब्द ने भ्रम पैदा किया। पैदल चलने वालों ने इसे अपने लिए एक निर्देश मान लिया, क्योंकि उनके लिए सड़कों पर कोई अलग से स्पष्ट दिशा-निर्देश या चिह्न मौजूद ही नहीं थे। गाड़ियों के लिए बना यह नियम पैदल यात्रियों की आदत बन गया। उस दौर में सड़कों पर ट्रैफिक कम था, इसलिए खतरा भी कम था।
जैसे-जैसे वाहन बढ़ते गए, यह आदत एक जानलेवा भूल साबित होती गई। जब पैदल यात्री सड़क पर बायीं ओर चलता है, तो वाहन उसके पीछे से आते हैं। उसे न तो वाहन की गति का अंदाजा होता है और न ही उसकी सटीक स्थिति का। ऐसे में यदि वाहन चालक की जरा सी भी चूक हो, तो पैदल यात्री को संभलने का मौका तक नहीं मिलता।

जानिए दुनिया भर में क्या है नियम? भारत क्यों है पीछे? ज्ञान प्रकाश अपनी याचिका में बताते हैं कि भारत में पैदल चलने वालों के लिए कोई स्पष्ट ट्रैफिक कानून ही नहीं है। हमारा मोटर व्हीकल एक्ट, 1988 मुख्य रूप से मोटर वाहनों पर केंद्रित है। जबकि इंग्लैंड, अमेरिका, जापान और मलेशिया जैसे देशों में ‘रोड ट्रैफिक एक्ट’ है, जिसमें वाहनों के साथ-साथ पैदल यात्रियों के लिए भी स्पष्ट नियम हैं।
इंग्लैंड के हाईवे रूल में साफ लिखा है कि अगर फुटपाथ न हो, तो पैदल यात्रियों को हमेशा आने वाले ट्रैफिक की ओर मुंह करके (यानी सड़क के दाहिने ओर) चलना चाहिए। जापान और अमेरिका में भी यही नियम लागू है।

ज्ञान प्रकाश 1984 से लड़ाई लड़ रहे ज्ञान प्रकाश पिछले चार दशकों से इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने 1984 में ‘यातायात शिक्षा’ नाम से एक किताब भी लिखी थी, जिसमें उन्होंने पैदल यात्रियों को वाहनों के सामने की ओर चलने की सलाह दी थी। साल 2018 में ज्ञान प्रकाश की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी मोटरसाइकिल में साड़ी गार्ड और पीछे बैठने वाली सवारी के लिए हेलमेट अनिवार्य कर दिया था।
साल 2019 में उन्होंने एक और याचिका दायर कर यह सवाल उठाया था कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर ट्रैफिक नियंत्रण की जिम्मेदारी किसकी है? उनका तर्क था कि ‘कंट्रोल ऑफ नेशनल हाईवे लैंड एंड ट्रैफिक एक्ट’ के तहत यह जिम्मेदारी केंद्र की है, लेकिन केंद्र के पास इसके लिए न तो कोई समर्पित बल है और न ही कोई व्यवस्था।
ज्ञान प्रकाश की याचिका के जरिए मांग
- केंद्र सरकार देश भर में यातायात चिन्हों को सुधारे और स्पष्ट करे कि पैदल यात्री हमेशा वाहनों की विपरीत दिशा में चलें।
- पैदल चलने वालों सहित सड़क के सभी उपयोगकर्ताओं के लिए स्पष्ट निर्देश जारी किए जाएं।
- एक ‘हाईवे सेफ्टी कोड’ बनाया जाए, जिसमें हर वर्ग के लिए ट्रैफिक नियम शामिल हों।
उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया है, जिसे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने स्वीकार किया। मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी।

मोटर व्हीकल एक्ट गाड़ियों के लिए न कि पैदल चलने वालों के लिए रिटायर्ड अधिकारी सतविंदर सिंह लल्ली के मुताबिक मोटर व्हीकल एक्ट वाहनों को दिशा निर्देश देता है लेकिन पैदल चलने वाले सड़क के बायीं ओर चले या दाहिने तरफ, ये कहीं नहीं लिखा। मोटर व्हीकल एक्ट के अंतर्गत आरआरआर( रुल्स ऑफ रोड रेगुलेशन ) बनाए गए थे।
इसमें एक प्रावधान था कि जो भी सड़क का उपयोग करने वाले हैं, चाहे वह साइकिल वाले हों या पैदल यात्री, सभी ट्रैफिक नियम और पुलिस के आदेशों का पालन करेंगे। मगर, बाद में इसे हटा लिया गया और उसकी जगह ड्राइविंग रेगुलेशन आ गए हैं। ये भी केवल वाहनों के लिए हैं, अब पैदल चलने वालों के लिए कोई नियम ही मौजूद नहीं है।
जब तक कानून में स्पष्टता नहीं आती, तब तक अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमें खुद उठानी होगी। जहां फुटपाथ नहीं है वहां दाएं ओर मतलब आ रहे वाहनों की ओर सिर करके चलना चाहिए। हालांकि, मोटर व्हीकल एक्ट में सरकार को नियम बनाने का अधिकार है।
