विश्व पर्यटन मानचित्र पर अपनी पहचान रखने वाले खजुराहो से करीब 5 किलोमीटर दूर, टिकरी गांव में इन दिनों समाजवादी पार्टी (सपा) के झंडे एक बड़ी सी चारदीवारी पर लहरा रहे हैं। यह मध्य प्रदेश में सपा के सबसे बड़े प्रदेश कार्यालय का निर्माण स्थल है, जिसे पार्ट
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आरोप है कि 7.5 एकड़ में बन रहे इस दफ्तर की डेढ़ एकड़ जमीन सरकारी है, जिस पर मौजूद सिंचाई विभाग की नहर को रातों-रात पाट दिया गया। इस मामले में तहसीलदार कोर्ट दो बार निर्माण पर रोक (स्टे) लगा चुका है, लेकिन सारे आदेशों को धता बताते हुए निर्माण काम बेरोकटोक जारी है। प्रशासन की सुस्ती और सत्ताधारी दल के स्थानीय जनप्रतिनिधियों की खामोशी भी स्थानीय लोगों की समझ से परे हैं।
दैनिक भास्कर ने इस पूरे विवाद की तह तक जाने के लिए मौके पर पहुंचकर ग्रामीणों, अधिकारियों और मामले से जुड़े अन्य पक्षों से बात की। पढ़िए रिपोर्ट
खजुराहो से 5 किमी दूर टिकरी गांव में सपा के प्रदेश कार्यालय का निर्माण हो रहा है।
ग्रामीणों का गुस्सा, ‘हमारा रास्ता बंद कर दिया’ टिकरी गांव में एयरपोर्ट की बाउंड्री से सटकर चल रहा यह निर्माण कार्य दूर से ही नजर आ जाता है। राजस्व अभिलेखों में यह जमीन ‘समाजवादी पार्टी राजनैतिक दल कार्यालय लखनऊ अधिकृत उदयवीर सिंह’ के नाम पर दर्ज है, जो अखिलेश यादव के बेहद करीबी माने जाते हैं। जैसे ही भास्कर की टीम निर्माण स्थल के पास पहुंची, गांव के लोग इकट्ठा हो गए। उनके चेहरे पर गुस्सा और बेबसी साफ झलक रही थी।
टिकरी गांव के युवा छोटे लाल पाल ने उस जगह की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘यहां से नहर निकली थी। पानी आना बंद हुआ तो हम गांव वालों ने इसे मुख्य सड़क तक आने-जाने का रास्ता बना लिया था। इस जमीन के पीछे पूरा मोहल्ला रहता है। इन्होंने जेसीबी से नहर तोड़कर उसे पाट दिया और हमारा रास्ता हमेशा के लिए बंद कर दिया। हमने विरोध किया तो अनसुना कर दिया गया।’

ये सिंचाई विभाग की जमीन है जिस पर कभी नहर बनी थी जो अब पाट दी गई है।
रात के अंधेरे में हुआ कब्जा: ग्रामीण वहीं पास में रहने वाले लच्छी रजक बताते हैं, “यह सिर्फ रास्ता नहीं था, हमारी सुविधा थी। सरकार ने इसी रास्ते पर स्ट्रीट लाइट के खंभे लगवाए थे, जो आज भी उस बाउंड्री के अंदर गड़े हुए हैं। एक और नहर यहां से पीरा हार तक जाती थी, उसे भी मिटाकर बाउंड्री बना ली। यहां बड़े लोगों की चलती है, हम गरीबों की कौन सुनेगा?’
एक बुजुर्ग किसान रामगोपाल तिवारी का दर्द और भी गहरा है। उन्होंने कहा, ‘सब चोरी-चोरी हुआ। रात में जेसीबी और ट्रैक्टर चलते थे, दिन में नहीं, ताकि कोई देख न सके।

कैसे हुआ सरकारी जमीन पर निर्माण ग्रामीणों और दस्तावेजों के अनुसार, इस विवाद की जड़ें दशकों पुरानी हैं। दस्तावेजों के मुताबिक साल 1959 में यह 9 एकड़ जमीन अयोध्या प्रसाद शुक्ला के नाम पर थी। इसके बाद साल 1978 में ‘रनगवां बाय नहर प्रोजेक्ट’ के तहत सिंचाई विभाग ने इसी जमीन के खसरा नंबर 996, 997, 973 के कुछ हिस्सों (करीब डेढ़ एकड़) को नहर के लिए अधिगृहीत कर लिया।
अयोध्या प्रसाद के निधन के बाद जमीन उनके वारिसों के नाम आई, जिन्होंने 2011 में इसे कुछ अन्य लोगों को बेच दिया। इसके बाद दिसंबर 2023 में कई हाथों से बिकने के बाद आखिरकार यह जमीन समाजवादी पार्टी कार्यालय के लिए खरीदी गई। आरोप है कि सपा को जमीन बेचने वालों ने सिंचाई विभाग की अधिगृहीत नहर की जमीन को भी निजी बताकर बेच दिया।
पार्टी ने जमीन खरीदने के बाद नियमानुसार सीमांकन कराने के बजाय सीधे फरवरी-मार्च 2024 में भूमिपूजन कर दिया और जनवरी 2025 से निर्माण कार्य शुरू हो गया, जिसका ठेका झांसी के प्रशांत यादव की फर्म को दिया गया।

जमीन के चारों तरफ बाउंड्रीवॉल बना दी गई है। जिस पर समाजवादी पार्टी के झंडे लगे हैं।
दो स्टे के बाद भी नहीं रुका काम जैसे ही नहर को पाटने का काम शुरू हुआ, ग्रामीणों और सिंचाई विभाग ने मोर्चा खोल दिया। इसके बाद की घटनाओं का क्रम प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है
- 29 जनवरी 2025: सिंचाई विभाग ने तहसीलदार कोर्ट में आवेदन देकर निर्माण पर रोक लगाने की मांग की।
- 30 जनवरी 2025: तत्कालीन तहसीलदार ने पूरी जमीन पर निर्माण कार्य रोकने का पहला स्टे ऑर्डर जारी किया। इसी दिन सिंचाई विभाग ने तहसीलदार को पत्र लिखकर सरकारी भूमि का सीमांकन कराने और नहर तोड़ने वालों पर FIR दर्ज कराने का अनुरोध किया।
- मई 2025: लगभग चार महीने काम बंद रहने के बाद, सपा ने स्टे ऑर्डर के खिलाफ कोई कानूनी कदम उठाए बिना या कोर्ट में पेश हुए बिना ही अवैध रूप से निर्माण फिर शुरू कर दिया। न तो सीमांकन हुआ, न ही कोई FIR दर्ज हुई।
- 4 सितंबर 2025: ग्रामीणों ने दोबारा तहसीलदार को ज्ञापन सौंपकर आपत्ति दर्ज कराई।
- 10 सितंबर 2025: मामले की गंभीरता को देखते हुए तहसीलदार ने एक पटवारी और आरआई का दल बनाकर पुलिस बल के साथ मौके पर जाकर काम बंद कराने का दूसरा आदेश पारित किया।
- वर्तमान स्थिति: दूसरे स्टे ऑर्डर के बावजूद, प्रशासनिक दल कभी मौके पर नहीं पहुंचा और निर्माण कार्य आज भी धड़ल्ले से जारी है।

जो जमीन पार्टी ने खरीदी है वहां एक छोटा तालाब भी है।
प्रशासन का ढुलमुल रवैया और मिलीभगत के आरोप ग्रामीणों की ओर से इस केस की पैरवी कर रहे वकील मुकेश मिश्रा, जो खुद टिकरी के निवासी हैं, प्रशासन पर मिलीभगत का सीधा आरोप लगाते हैं। उन्होंने कहा, “स्टे पूरी जमीन पर है, फिर भी काम चल रहा है। जब मैंने तहसीलदार से FIR के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘थाने जाइए, यह मेरा काम नहीं है।’ अगर हमें ही सब करना है तो अधिकारी किसलिए हैं? पार्टी कोर्ट में पेश नहीं हो रही, फाइल को दबाने का प्रयास हो रहा है।

तहसीलदार ने कहा- काम निजी जमीन पर हो रहा इस मामले पर राजनगर तहसीलदार धीरज गौतम का जवाब बेहद चौंकाने वाला है। उन्होंने कहा, “मौके पर कोई नहर नहीं है, वो ‘डेड नहर’ थी। लोग उसे रास्ते की तरह इस्तेमाल करते थे। स्टे विवादित हिस्से पर है और वे अपनी खरीदी हुई निजी जमीन पर काम कर रहे हैं। हम दशहरे के बाद सीमांकन कराएंगे क्योंकि कभी रोवर उपलब्ध नहीं था, तो कभी पटवारी व्यस्त थे।” जब उनसे पूछा गया कि बिना सीमांकन के यह कैसे तय हुआ कि निर्माण विवादित भूमि पर नहीं हो रहा, तो वे कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे सके। एल-शेप की दूसरी नहर को कब्जे में लेने की जानकारी से भी उन्होंने इनकार किया।

सपा का कानूनी बचाव और ठेकेदार का तर्क इस विवाद पर सपा का शीर्ष नेतृत्व चुप है। 23 सितंबर को खजुराहो आए आजमगढ़ सांसद धर्मेंद्र यादव ने मीडिया के सवालों पर कहा, “जो भी होगा, हम कानूनी तरीके से देखेंगे। हमारे वकील देखेंगे। इसका फैसला मीडिया नहीं करेगी।” वहीं, निर्माण का ठेका लेने वाले प्रशांत यादव ने इसे भाजपा की राजनीति बताया।
उन्होंने कहा, “हम विवादित नहर के पास काम नहीं कर रहे हैं। हमने खुद तहसीलदार को सीमांकन के लिए आवेदन दिया है, लेकिन वो करा ही नहीं रहे। अखिलेश भैया का आदेश है कि किसी ग्रामीण को परेशान न किया जाए, इसलिए हमने अपनी जमीन छोड़कर उन्हें एक ऑप्शनल रास्ता बना दिया है।”

क्यों भोपाल छोड़ खजुराहो बना सपा का केंद्र? इस पूरे विवाद के पीछे एक बड़ी राजनीतिक रणनीति है। बुंदेलखंड का यह इलाका उत्तर प्रदेश से सटा हुआ है और यहां यादव, कुर्मी समेत पिछड़ा वर्ग का वोटर बड़ी संख्या में है। सपा मध्य प्रदेश में खुद को तीसरे सबसे बड़े दल के रूप में स्थापित करना चाहती है और खजुराहो को केंद्र बनाकर आसपास की विधानसभा और लोकसभा सीटों पर अपनी पकड़ मजबूत करने की फिराक में है।