8 पारी, 147 रन, इंग्लैंड के बाद इंडिया में भी फ्लॉप, कोच की साई पर कृपा कब तक

8 पारी, 147 रन, इंग्लैंड के बाद इंडिया में भी फ्लॉप, कोच की साई पर कृपा कब तक


नई दिल्ली. टीम इंडिया में इन दिनों एक नया ट्रेंड चल रहा है  फ़ॉर्म भले ही फिसड्डी हो, लगातार फ्लॉप शो चल रहा हो पर कप्तान कोच की कृपा आपपर है तो टीम में  जगह पक्की है. इसका सबसे ताज़ा उदाहरण हैं साई सुदर्शन.  वेस्टइंडीज़ के खिलाफ मिले मौके में महज़ 7 रन की पारी और इंग्लैंड दौरे पर सात पारियों में कुल 140 रन  बावजूद इसके, नंबर तीन की कुर्सी पर उनका कब्ज़ा बरकरार है सवाल उठता है आखिर ये भरोसा परफॉर्मेंस पर है या फिर किसी ‘खास कृपा’ का नतीजा.

साई का लगातार फ्लॉप प्रदर्शन अब आंखें चुभने लगा है जहां एक ओर भारत के बेंच पर बैठे कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी मौके का इंतज़ार कर रहे हैं, वहीं सुदर्शन को बार-बार आज़माना चयनकर्ताओं और टीम मैनेजमेंट की मंशा पर सवाल खड़े करता है . क्या टीम इंडिया अब परफॉर्मेंस से ज़्यादा ‘पसंद-नापसंद’ की राह पर चल पड़ी है.

साई पर कृपा बरस रही है 

इंग्लैंड दौरे पर 7 पारियों में सिर्फ 140 रन बनाने वाले साई सुदर्शन के लिए इंडिया में पहले टेस्ट में बल्लेबाजी का अनुभव बेहद खराब रहा क्योंकि एक बेहद खराब शॉट खेलकर उन्होंने अपना विकेट गंवा दिया. गुजरात टाइटंस के लिए खेलने वाले साई से उम्मीद की जा रही थी कि वो अपने दूसरे घरेलू मैदान पर रनों के सूखे को खत्म कर देंगे पर ऐसा हुआ नही. रोस्टन चेज की एक गेंद को लेंथ पढ़ने में चूके और 7 रन बनाकर वो पवेलिएन लौट गए. मजे की बात ये है कि इंग्लैंड में साई को सीम गेंदबाज परेशान कर रहे थे और इंडिया आते ही वो स्पिन का शिकार हो गए. साई अब तक कुल 8 टेस्ट पारियों में कुल 147 रन बनाए है जो उनके लगातार खराब फॉर्म की कहानी बयां कर रहा है.

प्रतिभा है, पर अब प्रदर्शन चाहिए

यह कहना गलत नहीं होगा कि साई सुदर्शन के पास प्रतिभा है  ये उन्होंने आईपीएल में दिखाया भी है लेकिन इंटरनेशनल क्रिकेट का मंच अलग होता है, जहां हर रन, हर इनिंग पर देश की उम्मीदें जुड़ी होती हैं यहां ‘टैलेंट’ नहीं, ‘परफॉर्मेंस’ ही पैमाना होता है. अगर मैनेजमेंट सच में उन्हें लॉन्ग टर्म प्लेयर मानता है, तो बेहतर होगा कि या तो उन्हें घरेलू क्रिकेट में वापस भेजकर फॉर्म में लौटने का समय दिया जाए, या फिर कुछ समय के लिए बेंच पर बैठाया जाए, ताकि दूसरे विकल्पों को भी आज़माया जा सके.

नंबर तीन कोई जगह नहीं, जिम्मेदारी है

भारतीय क्रिकेट में नंबर तीन की पोजीशन कभी राहुल द्रविड़ जैसे दीवार की तरह स्थिर रही, तो कभी चेतेश्वर पुजारा जैसे रन मशीन ने इसे अपनी पहचान बना लिया. ऐसे में जब कोई खिलाड़ी इस जगह पर खेले, तो उससे उम्मीदें सिर्फ रन बनाने की नहीं होती, बल्कि मैच को संभालने, आगे ले जाने और लंबी पारी खेलने की होती हैं.
साई सुदर्शन इस कसौटी पर लगातार फेल हो रहे हैं न तो स्ट्राइक रोटेट कर पा रहे हैं, न ही गेंदबाज़ों पर दबाव बना पा रहे हैं.  उनकी पारी अक्सर रुक-रुक कर चलती है, और आखिर में विकेट गिरता है, जिससे टीम का मिडिल ऑर्डर दबाव में आ जाता है.

साई सुदर्शन के लिए यह समय बेहद अहम है.  या तो वो अगली कुछ पारियों में खुद को साबित करें, या फिर टीम मैनेजमेंट को यह सोचना होगा कि क्या सिर्फ ‘संभावना’ के दम पर किसी खिलाड़ी को इतने मौके दिए जा सकते हैं, जब देश में टैलेंट की कोई कमी नहीं. क्रिकेट एक प्रदर्शन आधारित खेल है  और अगर कोई खिलाड़ी बार-बार फ्लॉप हो रहा है, तो सवाल उठना न केवल जायज़ है, बल्कि ज़रूरी भी.



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