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Khargone Amazing Facts: मध्य प्रदेश का खरगोन जिला निमाड़ का केंद्र बिंदु माना जाता है. विंध्याचल और सतपुड़ा, इन दो पहाड़ों के बीच बसा यह जिला सफेद सोना और तीखी मिर्च के लिए प्रसिद्ध है. आइए जानते हैं इस शहर का रोचक इतिहास.
खरगोन का नाम सुनते ही हर किसी के जहन में यह सवाल उठता है कि आखिर खरगोन का यह नाम कैसे पड़ा? तो आपको बता दें कि, यह नाम खर-दूषण से आया है. कहते हैं कि, रामायण काल में यह क्षेत्र दंडक वन था. खर और दूषण नाम के दो राक्षस यहां के राजा थे, जो रावण के चचेरे भाई थे. यह दोनों अपनी बहन शूर्पणखा के साथ यहां रहते थे. संभवतः खर भूषण से ही खरगोन नाम निकला है. यहां देश का इकलौता सूर्य प्रधान नवग्रह मंदिर भी है.

देश की सबसे पुरानी जेलों में से एक खरगोन के मंडलेश्वर में मौजूद है. साल 1890 में ब्रिटिश गवर्मेंट ने इसकी स्थापना की थी. अंग्रेजों ने इसे सेंट्रल जेल बनाया था. निमाड़ अंचल में आजादी के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को यहीं पर कैद करके रखा जाता था. होलकर शासन में इसे जिला जेल बनाया गया. वर्तमान में यह सब जेल है. आज भी यहां 150 से ज्यादा कैदी बंद हैं.

खरगोन के बड़वाह का CISF ट्रेनिंग सेंटर न सिर्फ देश के पुराने ट्रेनिंग सेंटरो में शामिल है, बल्कि एशिया के सबसे लंबे महलों में से एक है. यह ट्रेनिंग सेंटर दरिया महल परिसर में है. इसकी लंबाई करीब 750 मीटर है और इसमें 198 कमरे हैं. 1968 में यहां CRPF का प्रशिक्षण केंद्र शुरू हुआ था, बाद में इसे CISF को सौंप दिया गया. 1 अप्रैल 1985 से यह आधिकारिक तौर पर CISF-RTC (Recruit Training Centre) के रूप में काम कर रहा है.

बड़वाह का CISF ट्रेनिंग सेंटर अब देश का पहला महिला कमांडो ट्रेनिंग सेंटर भी बन चुका है. 28 महिला कमांडो का पहला बैच यहां ट्रेनिंग ले रहा है. यह ट्रेनिंग 11 अगस्त से शुरू होकर 4 अक्टूबर को संपन्न हुई. पहले बैच को “स्पेशल 28 STF” नाम दिया है. इस साल कुल 100 महिला जवानों को कमांडो ट्रेनिंग देने का लक्ष्य है. बड़वाह के इस ट्रेनिंग सेंटर पर अब तक करीब यहां से 10,000 से ज्यादा पुरुष कमांडो ट्रेनिंग ले चुके हैं.

खरगोन मध्य प्रदेश में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक जिला भी है. यहां का कपास सफेद सोना के नाम से देशभर में प्रसिद्ध है. जिले में हर साल करीब 2 लाख हेक्टेयर में किसान बीटी कॉटन की खेती करते है. इससे बने धागे की कपड़ा बाजार के भारी डिमांड रहती है. विदेशों तक इसका एक्सपोर्ट होता है. यहां ए श्रेणी की कपास मंडी भी हैं.

नर्मदा किनारे बसा खरगोन का महेश्वर ऐतिहासिक एवं पर्यटक नगर है. यह क्षेत्र माहेश्वरी साड़ी के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां बुनकर हैंडलूम पर हाथों से साड़ियां बुनते है, जिसकी डिमांड पूरे विश्व में है. महेश्वर अहिल्या बाई होलकर की राजधानी भी रहा है. इसका प्राचीन नाम माहिष्मति है. इस नगर को हैहैय वंश के राजाओं ने बसाया था.

खरगोन को मिर्च उत्पादन के लिए भी जाना जाता है. जिले के बेड़ियां गांव में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मिर्च मंडी है. यहां की लाल तीखी मिर्च एक जिला एक उत्पादक में भी शामिल है. हर साल लगभग 50 हजार हेक्टेयर में किसान सबसे तीखी मिर्च की खेती करते है. जिसे जीआई टैग भी मिला है. यहां की मिर्च देश-विदेश में निर्यात होती है.

खरगोन में बोलचाल की भाषा निमाड़ी है, जिसे लोक बोली कहते है. निमाड़ी बोली कि उत्पत्ति संत सिंगाजी महाराज द्वारा की गई थी. वर्तमान में निमाड़ी बोलने वालों की संख्या देशभर में लगभग 1 करोड़ से ज्यादा है. हर साल यहां 19 सितंबर को निमाड़ी दिवस धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन निमाड़ी से जुड़े विभिन्न कलाओं के कलाकारों का सम्मान भी होता है.

खरगोन में बसा छोटा सा गांव बकावा पूरे देश में प्रसिद्ध है. यह इकलौता ऐसा गांव है जहां नर्मदेश्वर शिवलिंग तराशे जाते है. इस क्षेत्र से नर्मदा नदी बहती है. कहते है कि, यहां नर्मदा से निकलने वाला हर एक पत्थर शिवलिंग जैसा है. इस गांव में 4 इंच से 24 फिट तक के शिवलिंग मिलते है. जिन्हें प्राण प्रतिष्ठा की जरूरत नहीं है.