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MP Tiger Reserve: कान्हा नेशनल पार्क में लौटी बारहसिंगा की रौनक! कभी विलुप्ति के कगार पर था ये खूबसूरत जानवर, अब संख्या 1000 के पार. जानिए कैसे कान्हा बना इसका घर.
जंगल में इन दिनों नई रौनक है. मानसून के बाद जैसे ही धूप खिली, कान्हा नेशनल पार्क एक बार फिर सैलानियों से गुलज़ार हो गया. 1 अक्टूबर से पार्क के गेट खुलते ही देश-विदेश से लोग यहां पहुंचने लगे कोई बाघ के दीदार को बेताब है तो कोई जंगल की शांति में खो जाना चाहता है. लेकिन बाघ के अलावा कान्हा की एक और शान है, जिसे यहां का “गहना” कहा जाता है बारहसिंगा.
एक वक्त था जब खत्म होने के कगार पर था ‘बारहसिंगा’
साल 1970 के दशक में बारहसिंगा की संख्या केवल 65-70 रह गई थी. यह स्थिति इतनी भयावह थी कि इसे “रेड डेटा बुक” में विलुप्त प्रजाति के तौर पर सूचीबद्ध कर लिया गया. मगर कान्हा के जंगलों ने इस कहानी को पलट दिया. सरकार और वन विभाग के प्रयासों से आज इनकी आबादी 1000 से 1100 तक पहुंच गई है.
कान्हा के मुक्की रेंज के रेंजर वीरेंद्र सिंह जामौर बताते हैं कि यहां सिर्फ बाघों का नहीं, बारहसिंगा का भी बखूबी संरक्षण हो रहा है. अब जंगल में इनकी झलक आम हो गई है, जिससे पर्यटक भी खुश हैं और पर्यावरण भी.
बारहसिंगा क्यों है खास
बारहसिंगा का वैज्ञानिक नाम Rucervus duvaucelii है. इसे दलदली या सुंदर हिरण भी कहा जाता है. नर के सींगों में 10 से 14 शाखाएँ होती हैं, इसी वजह से इसका नाम बारहसिंगा पड़ा. इसकी ऊंचाई करीब 120 सेंटीमीटर और लंबाई 6 फीट तक होती है. यह जानवर न सिर्फ खूबसूरत है बल्कि जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद जरूरी भी है. यह घास और पत्तियां खाता है, जिससे वनस्पति का संतुलन बना रहता है. वहीं यह बाघ और तेंदुए जैसे शिकारियों के लिए भोजन का अहम स्त्रोत भी है.
कान्हा नेशनल पार्क का योगदान
कान्हा टाइगर रिज़र्व को इस उपलब्धि का श्रेय दिया जा सकता है. यहां की हरियाली, जल स्रोत और दलदली क्षेत्र बारहसिंगा के लिए आदर्श निवास स्थान साबित हुए हैं. अब कान्हा के अलावा बांधवगढ़ और सतपुड़ा नेशनल पार्क में भी इनकी संख्या बढ़ रही है, जहां इन्हें शिफ्ट किया गया था.
Shweta Singh, currently working with News18MPCG (Digital), has been crafting impactful stories in digital journalism for more than two years. From hyperlocal issues to politics, crime, astrology, and lifestyle,…और पढ़ें
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