Last Updated:
Paddy Farming Tips: कृषि विभाग ने किसानों को सलाह दी है कि अक्टूबर में धान की फसल पर विशेष नजर बनाए रखें. अगर समय रहते कंडुआ रोग पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो न सिर्फ उत्पादन कम होगा बल्कि दानों की गुणवत्ता पर भी असर पड़ेगा.
धान की खेती करने वाले किसानों के लिए अक्टूबर का महीना बेहद अहम है. इस समय धान की फसल पैनिकल इनीशिएशन स्टेज (पैनिकल की शुरुआत की अवस्था) में होती है, जब पौधा वानस्पतिक विकास से प्रजनन अवस्था की ओर बढ़ता है.

इसी चरण में तने की गांठें लंबी होने लगती हैं और पुष्पगुच्छ (पैनिकल) का निर्माण शुरू होता है. यही समय होता है, जब धान की फसल सबसे संवेदनशील होती है और कंडुआ रोग का खतरा तेजी से बढ़ जाता है.

मध्य प्रदेश के सतना के कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, कंडुआ रोग लगने पर धान की बाली में मौजूद दाने प्रभावित हो जाते हैं. उन पर पीले रंग का पाउडर दिखाई देता है. इस रोग के असर से दानों का वजन घट जाता है और उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है.

सहायक संचालक कृषि राम सिंह बागरी ने लोकल 18 को बताया कि यह रोग लगने के बाद फफूंदी नाशक दवाओं का छिड़काव ज्यादा असरदार नहीं होता, इसलिए शुरुआती लक्षण दिखते ही नियंत्रण जरूरी है. प्रभावित बालियों को खेत से सावधानीपूर्वक उखाड़कर खेत से दूर नष्ट करना चाहिए.

इस रोग की रोकथाम बीज शोधन से की जा सकती है. इसके लिए कार्बेन्डाजिम दवा की दो ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज पर प्रयोग करनी चाहिए. कंडुआ रोग के बीजाणु मिट्टी में लंबे समय तक रहते हैं, इसलिए गर्मी में गहरी जुताई करना और खेत को ट्राइकोडर्मा धूल या ट्राइकोडर्मा कल्चर से शोधित करना लाभकारी रहता है.

साथ ही फसल की शुरुआती अवस्था में यूरिया का संतुलित प्रयोग करने से भी रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है. फसल पर कंडुआ रोग के प्रसार को रोकने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की दो ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.

यह छिड़काव धान की लगभग 50 प्रतिशत बालियां निकलने से पहले किया जाना प्रभावी माना गया है. इसके अलावा क्लोरथनोनिल 75 प्रतिशत डब्ल्यू पी या कैप्टॉन नामक दवा की भी सिफारिश की जाती है, जो रोग के फैलाव को नियंत्रित करने में सहायक है.

कृषि विभाग ने किसानों को सलाह दी है कि अक्टूबर माह में धान की फसल पर विशेष नजर रखें. यदि समय रहते कंडुआ रोग पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो न केवल उत्पादन कम होगा बल्कि दानों की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी, इसलिए लक्षण दिखाई देते ही प्रभावी कदम उठाना बेहद जरूरी है.