Dharohar: 1930 से कभी बंद नहीं हुआ ये मंदिर, खंडवा में ‘अमर धूनी’

Dharohar: 1930 से कभी बंद नहीं हुआ ये मंदिर, खंडवा में ‘अमर धूनी’


खंडवा. मध्य प्रदेश का खंडवा शहर अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां स्थित दादाजी धूनीवाले महाराज का मंदिर अपनी एक अलग ही पहचान रखता है. यह मंदिर पूरे भारत में अनोखा है क्योंकि यह 1930 से लेकर आज तक कभी बंद नहीं हुआ. जी हां, इस मंदिर के गेट आज तक नहीं लगे हैं और यहां दिन हो या रात, भक्तों के लिए दरबार हमेशा खुला रहता है. अनोखी परंपरा की शुरुआत सुभाष नागौरी मंदिर के ट्रस्टी और सेवाधारी कहते है कि, कहानी की शुरुआत होती है 1930 के दशक से, जब दादाजी धूनीवाले महाराज ने यहां तपस्या की थी.

उन्होंने अपने जीवनकाल में वचन दिया था कि इस धूनी (अग्नि) को कभी भी बुझने नहीं दिया जाएगा और मंदिर के द्वार कभी बंद नहीं होंगे. उसी आस्था और आदेश के अनुसार आज तक इस मंदिर के गेट नहीं लगे हैं. यहां निरंतर धूनी जलती रहती है, जिसे “अमर धूनी” कहा जाता है. माना जाता है कि इस धूनी की अग्नि भक्तों के जीवन से नकारात्मकता को समाप्त कर देती है.

24 घंटे खुला रहता है दरबार, कभी बंद नहीं होता मंदिर
भारत के अधिकतर मंदिरों के खुलने और बंद होने के समय तय होते हैं, लेकिन यह मंदिर उन सभी परंपराओं से अलग है. चाहे आधी रात हो या तड़के सुबह, भक्त जब भी यहां आते हैं, उन्हें भगवान और दादाजी के दर्शन सुलभ होते हैं. कहा जाता है कि दादाजी की कृपा से यहां आने वाला हर व्यक्ति सुकून और सकारात्मक ऊर्जा लेकर जाता है.

ग्रहण के समय भी नहीं बंद हुआ मंदिर
पटेल सेवा समिति ओर दादाजी के मंदिर के सेवक कोमल भाऊ कहते है कि यहां तक कि जब देशभर के सभी मंदिर ग्रहण के दौरान बंद कर दिए जाते हैं, तब भी दादाजी धूनीवाले महाराज का दरबार खुला रहता है. भक्तों का मानना है कि यह स्थान इतना पवित्र है कि यहां किसी ग्रहण या अपशकुन का कोई असर नहीं होता. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि 1930 से लेकर आज तक कभी भी यहां ताला नहीं लगा, और यही इस दरबार की सबसे बड़ी पहचान है.

भक्तों की अटूट श्रद्धा, दादाजी की धूनी में नारियल या लकड़ी अर्पित करना भक्तों की परंपरा
खंडवा और आसपास के जिलों के अलावा देशभर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं. कोई व्यापार में सफलता की कामना लेकर आता है, तो कोई अपने परिवार की सुख-शांति के लिए. दादाजी की धूनी में नारियल या लकड़ी अर्पित करना भक्तों की परंपरा है, और यह माना जाता है कि धूनी में चढ़ाई गई हर आहुति मनोकामना पूर्ण करती है.

धार्मिक और सामाजिक केंद्र
दादाजी भक्त आशीष चटकले कहते है कि यह मंदिर सिर्फ आस्था का नहीं बल्कि सेवा का भी केंद्र है. यहां हर दिन सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं, और सभी के लिए प्रसाद व लंगर की व्यवस्था रहती है. स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां कोई भूखा नहीं जाता. मंदिर परिसर में गरीबों के लिए कपड़े, भोजन और दवा वितरण जैसी सेवाएं भी समय-समय पर आयोजित की जाती हैं. आस्था का प्रतीक दादाजी धूनीवाले महाराज का यह दरबार आज भी उसी परंपरा और अनुशासन के साथ चलता है, जैसा लगभग एक सदी पहले शुरू हुआ था. बिना गेट, बिना रोक-टोक के खुला यह मंदिर मानवता, समानता और श्रद्धा का प्रतीक बन चुका है. खंडवा का यह पवित्र स्थल न सिर्फ धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह एक जीवंत उदाहरण है कि सच्ची आस्था के सामने समय की सीमाएं भी झुक जाती हैं. यही वजह है कि यह मंदिर सिर्फ एक धरोहर नहीं, बल्कि भक्तों की आस्था का जीवंत प्रतीक है- जो 1930 से आज तक हमेशा “खुला” है.



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