मध्य प्रदेश का बालाघाट जिला धान की खेती के लिए जाना जाता है. ऐसे में किसान भाई ज्यादातर रकबे में धान की खेती करते हैं. लेकिन बीते कुछ सालों से धान की फसल में कटाई से पहले ही रोग लगने का पैटर्न देखने को मिल रहा है. अब करीब 15 दिन ही बचे है फसल के तैयार होने में. इसके बाद से फसल की कटाई शुरू हो जाएगी. लेकिन कुछ ऐसे रोग है, जो किसान भाई को परेशान कर सकते हैं. ऐसे में लोकल 18 की टीम ने राणा हनुमान सिंह कृषि विज्ञान केंद्र बड़गांव के डायरेक्टर डॉक्टर धुवारे से बातचीत की.
धान के खेत में रोग लगने की आशंका बनी रहती है. अगर रोग लग जाए और उसे कंट्रोल करने में देरी हो, तो समस्या बढ़ सकती है. दरअसल, रोग लगने से फसल की उपज और गुणवत्ता पर असर पड़ता है. ऐसे में फसल में उत्पादन कम और फसल का भाव भी कम. ऐसे में फसल उत्पादन में रोग प्रबंधन का अहम योगदान है. अब धान की फसल पकने को तैयार है लेकिन ये रोग फसल को खराब कर सकते हैं.
फाल्स स्मट या लाई फुटना
फाल्स स्मट एक कवक (फंगस) जनित रोग है जो धान की फसल को प्रभावित करता है, जिससे धान के दाने काले रंग की गेंदों या पाउडर से भर जाते हैं. इस रोग नियंत्रण के लिए रासायनिक छिड़काव जैसे मेंकोज़ेब या प्रोपिकोनाज़ोल का प्रयोग किया जाता है. लेकिन इस रोग से बचना है तो मोल्ड बोल्ड प्लाउ से गहरी जुताई और फसल चक्र के इस्तेमाल से बचना चाहिए.
नेक ब्लास्ट- गर्दन तोड़
जब धान की बालिया निकलती है, तो फसल में झोंका लग जाता है, जिसे नेक ब्लास्ट या पैनिक ब्लास्ट कहते हैं. धान में गर्दन तोड़ रोग (नेक ब्लास्ट) के नियंत्रण के लिए फंजीसाइड का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसमें ट्राइसाइक्लाजोल 75% WP (120-160 ग्राम प्रति एकड़) या टेबुकोनाजोल 50% + ट्राईफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25% WG (100 ग्राम प्रति एकड़) का छिड़काव कर सकते हैं.
शीत ब्लाइट –
धान में ये एक फफूंद जनित बीमारी है. इसके इसके लक्षण पत्ती के आवरण पर हरे-भूरे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो बाद में पुआल जैसे हो जाते हैं. यह नमी, और नाइट्रोजन के ज्यादा इस्तेमाल से होती है. इसके कंट्रोल के लिए थाई फ्लूजमाइड या एज़ोक्सीस्ट्रोबिन जैसे फफूंदनाशकों का इस्तेमाल कर सकते हैं. साथ जल निकासी की उचित व्यवस्था करनी चाहिए.
ब्राउन स्पॉट-
स रोग में धान की पत्तियों, तनों और दानों पर भूरे रंग के गोल धब्बे बनते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और उपज घट जाती है. बचाव के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले बीज का उपयोग, संतुलित उर्वरक प्रबंधन, खेत की नियमित निगरानी, और कवकनाशी दवाओं का छिड़काव करना चाहिए.
ब्लास्ट यानी झुलसा
एक फंगल बीमारी है जो धान की पत्तियों, तनों, गर्दन और बालियों पर नाव के आकार के धब्बों के रूप में दिखाई देती है. इन धब्बों के मध्य भाग राख जैसे और किनारे भूरे या कत्थई होते हैं, गंभीर मामलों में पत्तियां सूख जाती हैं और फसल को नुकसान होता है. इस रोग से बचने के लिए एज़ोक्सीस्ट्रोबिन, ट्रायज़ोल जैसे कवकनाशकों का छिड़काव किया जाता है.