ग्वालियर हाईकोर्ट की युगल पीठ ने पुलिस भर्ती में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। न्यायालय ने एक अभ्यर्थी की उम्मीदवारी रद्द करने के मामले में कहा कि किसी युवा से हुई छोटी या तकनीकी भूल को जीवनभर का अपराध नहीं माना जा सकता है। अदालत ने विभाग को 90 दिनो
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यह मामला गुनिराम बनाम मध्यप्रदेश राज्य शासन का है। याचिकाकर्ता गुनिराम ने पुलिस विभाग में कॉन्स्टेबल पद के लिए आवेदन किया था और उसका चयन भी हो गया था। हालांकि, चरित्र सत्यापन के दौरान उसने एक पुराने मामूली आपराधिक प्रकरण का उल्लेख नहीं किया था।
यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 294, 323, 427, 506 और 34 से जुड़ा था, जिसमें वह समझौते के आधार पर वर्ष 2011 में ही बरी हो चुका था।
इसी आधार पर विभाग ने 2013 में उसकी उम्मीदवारी को निरस्त कर दिया था। न्यायमूर्ति आनंद पाठक और न्यायमूर्ति पुष्पेंद्र यादव की युगल पीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि संबंधित अधिकारी ने अपराध की प्रकृति, उसकी गंभीरता, आवेदक की भूमिका और भविष्य में उसके आचरण की संभावना पर विचार नहीं किया।
युवाओं को सुधार का अवसर मिलना चाहिए अदालत ने कॉन्स्टेबल अभ्यर्थी की उम्मीदवारी निरस्त करने का आदेश रद्द कर दिया और कहा कि अत्यधिक तकनीकी आधार पर हुई थी कार्रवाई, 20-22 साल की उम्र की गलती पर युवाओं को सुधार का अवसर मिलना चाहिए, विभाग को सभी तथ्यों का सम्यक मूल्यांकन करने कहा।
एकलपीठ के आदेश को निरस्त कर दिया अदालत ने 10 दिसंबर 2024 (संभवतः टाइपों, 2023 या पूर्व होना चाहिए) के एकलपीठ के आदेश और 29 जून 2013 को कमांडेंट, 10वीं बटालियन सागर द्वारा जारी निरस्तीकरण आदेश को निरस्त कर दिया है।
साथ ही राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह गुनिराम की उम्मीदवारी पर सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पुनर्विचार करे और आगामी 90 दिनों के भीतर एक नया निर्णय लें। अदालत ने स्पष्ट किया कि वह आवेदक की उपयुक्तता पर कोई टिप्पणी नहीं कर रही है, बल्कि केवल निर्णय प्रक्रिया में हुई त्रुटि को सुधारने का निर्देश दे रही है।