छतरपुर में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) की जमीन बेचने के मामले में बड़ी कार्रवाई हुई है। विभाग के मुख्य अभियंता सागर ने छतरपुर में पदस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों को लापरवाही का दोषी पाते हुए निलंबित कर दिया है। इसमें प्रभारी एसडीओ कमलेश मिश्रा, स
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अधिकारियों की लापरवाही के कारण विभाग की जमीन बिकी यह मामला हाईकोर्ट के प्रकरण एफ.ए./06/2005 से जुड़ा है। कोर्ट ने 4 अक्टूबर 2024 को आदेश दिया था, लेकिन इन अधिकारियों ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। उनकी लापरवाही से विभाग की कीमती जमीन बिक गई। इसी वजह से विभाग ने इसे गंभीर गलती मानते हुए कार्रवाई की है। यह कार्रवाई मध्यप्रदेश सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के तहत की गई है।
निलंबन के बाद कमलेश मिश्रा का मुख्यालय पन्ना पीडब्ल्यूडी कार्यालय और विजय कुमार खरे का मुख्यालय नौगांव कार्यालय तय किया गया है। दोनों को नियमों के अनुसार जीवन निर्वाह भत्ता मिलेगा।
वहीं, कर्मचारी राजाराम कुशवाहा ने भी कोर्ट के आदेश के बाद आगे की कार्रवाई का प्रस्ताव वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं भेजा था। इस कारण उनके खिलाफ भी विभागीय जांच के आदेश दिए गए हैं।
इन अधिकारियों पर होगी कार्रवाई मुख्य अभियंता सागर ने इस मामले में तत्कालीन प्रभारी कार्यपालन यंत्री आर.एस. शुक्ला हाल ही में 31 अगस्त 2025 को रिटायर हुए हैं, और कमलेश मिश्रा के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव मुख्य अभियंता भोपाल को भेजा है।
क्या है पूरा मामला समझिए
कोतवाली थाना के पास स्थित लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) की करोड़ों की सरकारी जमीन निजी लोगों के नाम पर रजिस्ट्री होने का मामला सामने आया। यह संपत्ति शक्ति मेडिकल स्टोर के पास हाउस ऑफ दफ्तरी वाला नाम से दर्ज है। करीब 4000 वर्ग फीट क्षेत्र की इस जमीन की कीमत लगभग 9 करोड़ रुपये बताई जा रही है।
यह रजिस्ट्री धीरेंद्र गौर और दुर्गेश पटेल के नाम 13 जून 2024 को 84 लाख 54 हजार रुपये में की गई। बताया जा रहा है कि यह काम फर्जी दस्तावेजों और गलत कोर्ट डिक्री के आधार पर हुआ। धीरेंद्र गौर, बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री के दिल्ली से वृंदावन यात्रा प्रभारी बताए जा रहे हैं।
मामला सामने आने पर कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने पीडब्ल्यूडी के कार्यपालन यंत्री आशीष भारती को जांच सौंपी और रजिस्ट्री लेखक रघुनंदन पाठक का लाइसेंस निलंबित कर दिया।
50 साल पुराना विवाद जमीन का विवाद 1974 से चल रहा है। पहले यह भवन राजशाही संपत्ति थी, जिसे बाद में पीडब्ल्यूडी के अधीन किया गया। लेकिन कुछ लोगों ने फर्जी कागजात बनाकर निजी स्वामित्व का दावा किया। 2004 में कोर्ट ने विभाग के पक्ष में फैसला दिया था, पर 2005 में हाईकोर्ट से स्टे मिल गया। फिर नवंबर 2024 में कथित तौर पर गलत डिक्री निकलवाकर जून 2025 में रजिस्ट्री कर दी गई।
एसडीएम अखिल राठौर ने अब नामांतरण पर रोक लगा दी है और विभाग ने हाईकोर्ट में अपील की तैयारी शुरू कर दी है। कलेक्टर ने कहा कि यह पूरी तरह सरकारी संपत्ति है और जांच पूरी होने तक कोई कार्रवाई नहीं होगी।
खरीदार धीरेंद्र गौर का कहना है कि कोर्ट की डिक्री के आधार पर रजिस्ट्री कराई गई, जबकि प्रशासन का कहना है कि बिना विभागीय रिकॉर्ड बदले सरकारी संपत्ति की रजिस्ट्री अमान्य मानी जाएगी।