तारीख 30 सितंबर 2013। देवास के बावड़िया मोहल्ले की गलियों में उस दिन भी रोज की तरह ही चहल-पहल थी। 18 साल की नगीना शेख, अपनी 12वीं की किताबों का बैग कंधे पर टांगकर घर से निकली। मां ने पीछे से आवाज लगाई, ‘जल्दी लौट आना।’ नगीना ने पलटकर एक मुस्कान दी और
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ये नगीना के परिवार से आखिरी शब्द थे। इसके बाद नगीना नहीं लौटी। 18 दिन बाद एक कुएं से उसकी लाश बरामद हुई? नगीना की हत्या किसने की थी? क्या हुआ था उसके साथ?
आज मप्र क्राइम फाइल्स पार्ट-1 के 5 चैप्टर्स में पढ़िए, 12 साल पहले देवास के नगीना मर्डर केस की कहानी
नगीना शंकर कानूनगो कॉलोनी में अपनी ऋचा कोचिंग क्लासेस के लिए निकली थी। वह एक होनहार छात्रा थी, जो अपनी जिंदगी को संवारने के लिए मेहनत कर रही थी। शाम करीब 6 बजे, जब क्लास खत्म हुई, तो उसने अपनी बड़ी बहन हसीना को फोन किया। दोनों के बीच सामान्य सी बातचीत हुई।
नगीना ने पूछा, ‘दीदी, सब्जी में क्या लाना है?’ हसीना ने जवाब दिया, ‘पनीर ले आना।’ दोनों के बीच ये बातचीत आखिरी बातचीत थी। घंटे बीतते गए। घड़ी की सुई आगे बढ़ती रहीं, लेकिन नगीना के कदम घर की दहलीज तक नहीं पहुंचे। परिवार की बेचैनी बढ़ने लगी। रात करीब आठ बजे, हसीना का मोबाइल एक बार फिर बजा। स्क्रीन पर नगीना का नाम चमक रहा था।
हसीना ने फोन उठाया, ‘हैलो…’ लेकिन दूसरी तरफ से जो आवाज आई, उसने उसके पैरों तले जमीन खिसका दी। नगीना की घबराई हुई, कांपती हुई आवाज थी, ‘पुलिस को बुला… पुलिस को बुला…’ इससे पहले कि हसीना कुछ समझ पाती या सवाल कर पाती, फोन कट गया।

चारों ओर एक गहरा सन्नाटा पसर गया। नगीना का फोन अब बंद था। हर कोशिश नाकाम हो रही थी। एक अनजाना डर अब हकीकत का रूप ले रहा था। परिवार ने पूरी रात नगीना को हर उस जगह खोजा, जहां उसके होने की उम्मीद थी, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिला। अगली सुबह, थका-हारा और डरा हुआ परिवार देवास के बावड़िया थाने पहुंचा, जहां से उन्हें कोतवाली थाने भेज दिया गया। आखिरकार, नगीना की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई।

पुलिस ने अपनी जांच शुरू की। नगीना के दोस्तों, कोचिंग के साथियों और मोहल्ले वालों से पूछताछ की गई, लेकिन किसी को कुछ भी असामान्य नहीं लगा। सबका यही कहना था कि वह एक शांत और सुलझी हुई लड़की थी। लेकिन जैसे-जैसे पुलिस की जांच गहरी होती गई, घर की चारदीवारी में दबे राज बाहर आने लगे।
बड़ी बहन हसीना ने पुलिस को जो बताया, उसने जांच को एक नई दिशा दी। हसीना ने खुलासा किया कि उसके पिता आदम शेख ने उसकी शादी उसकी मर्जी के खिलाफ शुजालपुर में कर दी थी, जहां ससुराल वाले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करते थे। उनकी मांग थी- 14 लाख रुपए या एक पक्का मकान। इस प्रताड़ना के चलते हसीना अपने मायके में ही रह रही थी।
हसीना ने बताया, ‘हम तीनों- मैं, मां और नगीना ने मिलकर बारह लाख रुपए जमा किए थे, ताकि हम अपनी जिंदगी बेहतर कर सकें।’ लेकिन यह पैसा परिवार में कलह की सबसे बड़ी वजह बन गया। पिता आदम ने वह सारे पैसे लेकर अपने बेटे इरफान के नाम पर जमा कर दिए। जब नगीना ने अपना हक मांगा और उन पैसों से एक मकान खरीदने की बात कही, तो घर में भूचाल आ गया। पिता और भाई ने साफ इनकार कर दिया, जिससे घर का माहौल तनावपूर्ण हो गया था।

पैसों के विवाद के अलावा एक और राज था, जो शेख परिवार को अंदर ही अंदर खाए जा रहा था- नगीना की दोस्ती। मोहल्ले के ही 25 वर्षीय एमबीए छात्र विजेंद्र उर्फ बीजू लोखंडे के साथ नगीना की नजदीकियां उसके पिता और भाई को कांटे की तरह चुभ रही थीं। बीजू अक्सर नगीना के पिता की किराना दुकान पर आता-जाता था, और यहीं से दोनों की दोस्ती शुरू हुई थी।
हसीना ने अपने बयान में कहा, ‘पापा और भाई को यह रिश्ता बिल्कुल पसंद नहीं था। वे कहते थे कि यह लड़की घर की इज्जत मिट्टी में मिला देगी।’ इस दोस्ती की कीमत नगीना को अक्सर मार और डांट खाकर चुकानी पड़ती थी। वह रोती, सिसकती, लेकिन चुप रहती। पुलिस के लिए बीजू अब मुख्य संदिग्ध था। क्या नगीना उसके साथ भाग गई थी? या इस गुमशुदगी के पीछे बीजू का कोई गहरा राज था?

पुलिस ने बीजू को हिरासत में लेकर पूछताछ की। उसने साफ कहा, ‘मैं नगीना को जानता हूं, लेकिन हमारा कोई अफेयर नहीं था। जिस दिन वह गायब हुई, मैं तो शिर्डी में था।’ उसने यह भी बताया कि हसीना ने खुद उसे फोन करके नगीना के बारे में पूछा था और वापस आने के बाद उसने भी नगीना को खोजने में मदद की थी।
बीजू ने यह भी खुलासा किया कि नगीना के पिता ने उसे धमकाया था, ‘अगर अगली बार दुकान पर दिखा, तो अंजाम बुरा होगा।’ बीजू के बयान में सच्चाई और डर का मिला-जुला असर था। पुलिस ने उसे छोड़ दिया, लेकिन वह अब भी शक के दायरे में था और उस पर नजर रखी जा रही थी।

दिन हफ्तों में बदलने लगे। हर सुबह एक नई उम्मीद के साथ हसीना थाने जाती और हर शाम नाउम्मीदी के साथ घर लौटती। 17 दिन बीत चुके थे। 18 अक्टूबर 2013 को देवास पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि इंदौर बायपास एमआर-10 रोड के पास एक खेत के कुएं में कुछ संदिग्ध बोरे तैर रहे हैं।
पुलिस की टीम मौके पर पहुंची। कुएं के अंदर वाकई दो बड़े बोरे तैर रहे थे, जिनके मुंह कसकर रस्सियों से बंधे थे। जब उन बोरों को बाहर निकाला गया, तो वे असामान्य रूप से भारी थे। जैसे ही पहले बोरे को खोला गया, वहां मौजूद हर शख्स की रूह कांप गई। अंदर मानव शरीर का कमर से नीचे का हिस्सा था। दूसरे बोरे में ऊपरी धड़ और सिर था।
शव को डुबोने के लिए बोरों को टाइल्स के टूटे हुए टुकड़ों से भरा गया था। हत्यारों ने सबूत मिटाने की हर संभव कोशिश की थी। उन्होंने कुएं में एक खास किस्म की मांसाहारी मछलियां भी डाल दी थीं, ताकि वे लाश को खा जाएं और कोई निशान न बचे। लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। लाश पानी में फूलकर ऊपर आ गई और 18 दिनों से दबा सच बाहर आ गया।

पहचान के लिए हसीना को बुलाया गया। अपनी छोटी बहन की लाश को टुकड़ों में देखकर वह टूट गई। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। उसने नगीना के कुर्ते से उसकी पहचान की। 18 दिन पहले जो बहन पनीर लाने का वादा करके गई थी, वह आज टुकड़ों में बंटी हुई लौटी थी। अब यह मामला सिर्फ गुमशुदगी का नहीं, बल्कि एक बर्बर हत्या का था।
पुलिस के सामने सवाल था कि नगीना की हत्या किसने और क्यों की। हत्या कब और कहां गई? कातिल अभी भी आजाद था। परिवार की चुप्पी और गहरी हो गई थी। बीजू की आंखों में खौफ था और मोहल्ले की हवाओं में कानाफूसी थी- ‘ये इज्जत का मामला है।’ शक का दायरा अब परिवार, दोस्ती और इज्जत के त्रिकोण में उलझ चुका था।
- कौन था वो, जिससे डरकर नगीना ने आखिरी कॉल में पुलिस को बुलाने के लिए कहा था?
- क्यों उसकी मदद की पुकार के बाद फोन कट गया?
- आरोपी तक पुलिस कैसे पहुंची और उसने क्या चौंकाने वाले खुलासे किए?
- नगीना के पिता और भाई ने इस हत्याकांड के बारे में क्या सच बताया?
पढ़िए क्राइम फाइल्स के पार्ट 2 में
