नई दिल्ली. 309-5 से 330 ऑलआउट तक के पतन के लिए निचला क्रम जितना ज़िम्मेदार था, उतनी ही ज़िम्मेदारी भारतीय टीम प्रबंधन की भी है अगर खिलाड़ियों में समझदारी की कमी है, तो उन्हें यह सिखाना आपका काम है. हम अक्सर सोचते हैं कि मैच प्रतिभा वाली टीमें जीतती हैं या यूँ कहें कि प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का एक समूह. सच तो यह है कि मैच समझदारी से भी जीते जाते हैं, और हमेशा प्रतिभा ही काफ़ी नहीं होती. हरमनप्रीत कौर की अगुवाई वाली भारतीय टीम में निश्चित रूप से आगे बढ़ने की प्रतिभा है.
ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका टूर्नामेंट की दो सर्वश्रेष्ठ टीमें हैं, और दोनों ही मैच भारत जीत सकता था लेकिन हार गई. और ऐसा इसलिए नहीं है कि उनके पास प्रतिभा नहीं है बल्कि, उनके पास बुनियादी बातों को सही ढंग से करने की समझदारी की कमी थी. अपने निचले क्रम के खिलाड़ियों को यह बताने में कोई रॉकेट साइंस की ज़रूरत नहीं है कि स्नेह राणा जैसी एक अच्छी बल्लेबाज़ अभी भी खेल रही है, उन्हें बस उसे स्ट्राइक देनी है. 10 गेंदें बाकी होने पर, यह हमेशा संभव था कि राणा एक चौका लगाकर कुछ रन बना ले अंत में, भारत द्वारा गँवाए गए कुछ रन ही अंतर पैदा करने वाले साबित हुए.
इंग्लैंड न्यूजीलैंड को कैसे हराएं
भारत के पास अभी भी मौका है. इंग्लैंड और न्यूज़ीलैंड के खिलाफ, उनके पास फिर से मौके होंगे लेकिन क्या वे उन मौकों का फायदा उठा सकते हैं? क्या वे बुनियादी बातें सही कर सकते हैं? क्या वे ऐसी गलतियाँ नहीं कर सकते जिनसे हम सब हताश हो जाएँ? कम से कम अब तक, यह एक बहुत ही निराशाजनक अभियान रहा है और यह कोई नई बात नहीं है. हम हर बार जब कोई विश्व प्रतियोगिता होती है, तो यही कहते हैं भारत करीब आकर भी हार जाता है. हरमनप्रीत स्पष्ट रूप से अपने अंतिम चरण में हैं और एक खिलाड़ी और कप्तान के रूप में उनके लिए समय तेज़ी से निकल रहा है. अगर वह अपने खिलाड़ियों से बुनियादी चीज़ें ठीक से नहीं करवा पातीं, तो उन्हें जवाबदेह ठहराया जाएगा. और संसाधनों की कमी का कोई बहाना काम नहीं आएगा। उनके पास सब कुछ है, और फिर मैदान पर समझदारी की कमी देखना दुखद रहा है.
खराब खेल का जिम्मेदार कौन
महिला टीम की हार में हर कोई दोषी है एक विचारधारा यह भी है कि हम युवा पुछल्ले बल्लेबाजों को दोष क्यों दे रहे हैं उन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का बहुत कम अनुभव है और वे ज़िम्मेदार नहीं हैं ऐसे तर्क मुझे समझ नहीं आते. उदाहरण के लिए, क्रांति गौड़ एक बहुत ही प्रतिभाशाली युवा खिलाड़ी हैं वह अब राष्ट्रीय टीम की खिलाड़ी हैं और विश्व कप खेल रही हैं अनुभवहीनता का यह तर्क वास्तव में सही नहीं है. जब आप स्नेह के साथ बल्लेबाजी कर रहे हों, जो अच्छी फॉर्म में हैं, तो आप बस एक रन लेकर उन्हें स्ट्राइक दे देते हैं और क्रांति बल्ले से इतनी अनाड़ी भी नहीं हैं कि ऐसा न कर सकें. इसके बजाय, उन्होंने बड़ा शॉट खेला और आउट हो गईं यह अनुभवहीनता की बात नहीं है यह खेल के प्रति जागरूकता की कमी या यूँ कहें कि सामान्य ज्ञान की कमी की बात है अगर हम सोचें तो यह बहुत ही बुनियादी बात है, और यही कमी भारत और क्रांति में थी.
कप्तान –कोच और उनकी सोच
अब हरमनप्रीत कौर और अमोल मजूमदार की बारी पुछल्ले बल्लेबाजों को स्नेह को ज़्यादा से ज़्यादा स्ट्राइक देने के साफ़ निर्देश क्यों नहीं दिए गए? आप ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेल रहे हैं, और वे सबसे बेहतरीन हैं हर रन मायने रखता है, फिर भी आप 309-5 के स्कोर पर, पाँच ओवर से ज़्यादा बचे होने पर, रन गँवा देते हैं. क्रांति और श्री चरणी को क्यों नहीं कहा गया कि जल्दबाज़ी में कुछ न करें और रन न गँवाएँ? अगर वे काबिल नहीं हैं, तो उन्हें बताया जाना चाहिए अगर वे सोच नहीं सकते, तो उन्हें प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. ऐसी बुनियादी गलतियों के लिए टीम को अंत में नुकसान नहीं उठाना चाहिए.
अब सवाल ये है कि क्या भारत पलटवार कर पाएगा या कप का सपना अभी थोड़ा दूर की कौड़ी है? एक आशावादी होने के नाते, मुझे अब भी लगता है कि भारत के पास मौका है उनके पास प्रतिभा है क्षमता की कोई कमी नहीं है व्यावहारिक बुद्धि का विकास ज़रूर किया जा सकता है, और यही अमोल को इंदौर में करना है. अगर वह ऐसा नहीं कर पाते, तो विश्व कप के बाद, उन्हें इस टीम की कमान नहीं संभालनी चाहिए बात इतनी सी है.