नर्सिंग छात्रा बोली- फीस के लिए खेत गिरवी रखा: पहले रिजल्ट का इंतजार, अब काउंसलिंग का; एमपी में नर्सिंग एजुकेशन के बुरे हाल – Madhya Pradesh News

नर्सिंग छात्रा बोली- फीस के लिए खेत गिरवी रखा:  पहले रिजल्ट का इंतजार, अब काउंसलिंग का; एमपी में नर्सिंग एजुकेशन के बुरे हाल – Madhya Pradesh News


एमपी में नर्सिंग एजुकेशन के हाल बेहाल है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एमपी के 21 में से केवल 8 सरकारी नर्सिंग कॉलेजों को ही मान्यता दी गई है। 13 सरकारी कॉलेजों को अमान्य घोषित कर दिया है। वहीं बीएससी नर्सिंग के लिए 188 तो जीएनएम नर्सिं

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इसका असर ये है कि स्टूडेंट्स को प्राइवेट कॉलेज की भारी भरकम फीस देकर अपनी डिग्री पूरी करना होगी। दूसरी तरफ साल 2022 के प्री नर्सिंग सिलेक्शन टेस्ट के 60 हजार स्टूडेंट्स को अभी भी काउंसलिंग का इंतजार है। स्टूडेंट्स ये लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक ले गए हैं। एमपी में पिछले 6 साल से नर्सिंग एजुकेशन का ढर्रा बिगड़ चुका है। नर्सिंग कॉलेज घोटाले की सीबीआई जांच भी हो चुकी है।

इसके बाद भी व्यवस्थाएं पटरी पर नहीं आ सकी हैं। इस साल के सेशन में भी नर्सिंग की 40 फीसदी सीटें खाली है। पढ़िए रिपोर्ट

तीन केस से समझिए किस तरह से भविष्य से हुआ खिलवाड़

केस 1: मां-बाप ने एक-एक पैसा जोड़कर कोचिंग करवाई

ये केस बालाघाट की रहने वाली नंदिनी का है जिसने साल 2023 में PNST-2022 एग्जाम दिया था। इसमें नंदिनी की 404वीं रैंक आई थी, जिससे उनका किसी अच्छे सरकारी नर्सिंग कॉलेज में एडमिशन लगभग तय था, लेकिन सरकार ने रिजल्ट पर रोक लगा दी। नंदिनी बताती हैं, ‘मैं बहुत ही गरीब परिवार से आती हूं। मेरे घरवालों ने एक-एक पैसा जोड़कर मुझे कोचिंग करवाई थी।

हम हजारों लड़कियां थीं, पर केवल 111 लड़कियों ने पैसे जोड़कर हाईकोर्ट में केस किया कि स्टे हटाकर रिजल्ट दे दिया जाए। इसके बाद हाईकोर्ट ने स्टे हटाया भी, रिजल्ट भी आया, पर काउंसलिंग आज तक नहीं हुई। अब हमने सुप्रीम कोर्ट में केस लगाया है।’ नंदिनी कहती है कि-बहुत सारी लड़कियां तो निराश होकर बैठ गई हैं। वह कहती है कि हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट से कुछ राहत मिलेगी।

केस 2: परफॉर्मेंस देखना था तो मॉक टेस्ट ही ले लेते मंदसौर की रवीना सूर्यवंशी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उन्होंने 66,000 अन्य छात्राओं के साथ 2023 में यह परीक्षा दी थी। सेशन लेट होने के कारण रिजल्ट पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी और सरकार से हलफनामा मांगा। रवीना बताती हैं, ‘सरकार ने इस केस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। तब हम सभी छात्राओं ने अलग-अलग जिलों में ग्रुप बनाकर पैसे इकट्ठे किए और अपनी तरफ से एक वकील हायर किया, ताकि स्टे हट सके।’

एक साल की लंबी लड़ाई के बाद हाई कोर्ट ने रिजल्ट जारी तो किया, लेकिन यह परिणाम किसी और जख्म से कम नहीं था। रवीना कहती हैं, ‘हमें रिजल्ट तो दिया गया, लेकिन सिर्फ ‘सैटिस्फेक्शन’ के लिए, यानी हमारी परफॉर्मेंस देखने के लिए। हम दो साल से जिस रिजल्ट के पीछे लड़ रहे थे, हाईकोर्ट जा रहे थे।

हमारी उम्मीद थी कि हम नर्स बनकर अपने मां-बाप का दुख-दर्द दूर करेंगे, वह सब एक झटके में खत्म हो गया। यह तो एमपी गवर्नमेंट ने हम सभी लोअर-मिडिल क्लास लड़कियों की पढ़ाई और मेहनत का मज़ाक बनाया है।

केस 3: तीन सालों से केवल रिजल्ट का इंतजार किया बालाघाट के ही एक और छोटे से गांव रानी कोठार की रक्षा बोपचे भी इसी सिस्टम की शिकार हैं। एक पिछड़े परिवार से आने वाली रक्षा के परिवार ने उनकी नर्सिंग की पढ़ाई के लिए बहुत पैसे खर्च किए थे। रिजल्ट पर रोक लगने के बाद उन्होंने भी हाई कोर्ट में याचिका दायर की। नतीजा वही रहा- रिजल्ट तो मिला, पर एडमिशन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई।

2025 में जब रिजल्ट आया, तो उस पर साफ लिखा था कि यह केवल ‘सैटिस्फेक्शन’ के लिए है। रक्षा कहती हैं, ‘इन पूरे सालों में मैं घर पर बैठकर सिर्फ नर्सिंग के रिजल्ट का इंतजार करती रही। हम इतनी बुरी आर्थिक स्थिति से होने के बाद भी अपने भविष्य के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन हमारे लिए कोई भी न्याय व्यवस्था सक्रिय नहीं की गई है।’

अपनी मांगों को लेकर हाल ही में नर्सिंग स्टूडेंट्स ने प्रदर्शन किया था।

अपनी मांगों को लेकर हाल ही में नर्सिंग स्टूडेंट्स ने प्रदर्शन किया था।

कोरोना काल में कुकुरमुत्तों की तरह उगे नर्सिंग कॉलेज

इस पूरे घोटाले की जड़ें बहुत गहरी हैं। वर्ष 2019 तक मध्य प्रदेश में लगभग 450 नर्सिंग कॉलेज पंजीकृत थे। लेकिन 2020 में जब कोरोना महामारी ने दस्तक दी, तो यह कुछ लोगों के लिए ‘आपदा में अवसर’ बन गया। महज दो सालों (2020-2022) में प्रदेश में 200 से ज्यादा नए नर्सिंग कॉलेज खोल दिए गए।

इनमें से अधिकतर कॉलेजों के पास न तो अपनी बिल्डिंग थी, न योग्य स्टाफ, न लैब और न ही किसी संबद्ध अस्पताल की सुविधा, जो कि नर्सिंग की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए अनिवार्य है। कई कॉलेज तो सिर्फ कागजों पर चल रहे थे। इन्हीं गंभीर अनियमितताओं के आधार पर जबलपुर के वकील विशाल बघेल और ग्वालियर के वकील दिलीप शर्मा ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिकाएं दायर कीं। अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया।

CBI ने ही जांच में किया भ्रष्टाचार सीबीआई ने पहले चरण में प्रदेश के 700 से ज्यादा नर्सिंग कॉलेजों में से जिन 308 का निरीक्षण किया था। जांच टीम में सीबीआई अधिकारियों के साथ नर्सिंग विशेषज्ञ, पटवारी और तकनीकी अफसर भी शामिल थे।कहानी में सबसे बड़ा मोड़ तब आया, जब सीबीआई की अपनी जांच ही सवालों के घेरे में आ गई।

सीबीआई के अफसरों ने कॉलेज संचालकों से मान्यता देने के नाम पर पर्दे के पीछे से डील की। इस घोटालों के सामने लाने वाले व्हिसल ब्लोअर्स ने 169 कॉलेजों की मान्यता पर सवाल उठाए जिन्हें सीबीआई ने ‘सूटेबल’ घोषित किया था। उन्होंने सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों को उन कॉलेजों के वीडियो और तस्वीरें दिखाईं, जिन्हें जांच टीम ने पास कर दिया था।

सूटेबल का टैग देने के लिए लाखों रुपए रिश्वत ली इन सबूतों के सामने आने के बाद सीबीआई के भीतर हड़कंप मच गया। वरिष्ठ अधिकारियों ने जांच करने वाली टीम की भूमिका की जांच के लिए एक नई टीम गठित की। इस आंतरिक जांच में पता चला कि कुछ अधिकारियों ने कॉलेज संचालकों से मोटी रिश्वत लेकर उन्हें ‘सूटेबल’ का सर्टिफिकेट दिया था।

एक सीबीआई इंस्पेक्टर को तो 10 लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया। इस मामले में डीएसपी स्तर के अधिकारियों की संलिप्तता भी सामने आई। यह खुलासा इस बात का प्रतीक था कि भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं-जिस एजेंसी को न्याय दिलाने की जिम्मेदारी दी गई थी, उसी के अधिकारी इस अन्याय में भागीदार थे।

2025 में देर से शुरू हुई प्रवेश प्रक्रिया, फिर दांव पर भविष्य मध्य प्रदेश के नर्सिंग कॉलेजों में प्रवेश प्रक्रिया इस वर्ष निर्धारित समय से देरी से शुरू हुई। पहले यह प्रक्रिया 30 सितंबर तक पूरी होनी थी, लेकिन इसकी शुरुआत ही 22 सितंबर से हो पाई। अब इंडियन नर्सिंग काउंसिल (आईएनसी) से प्राप्त अनुमति के अनुसार, स्टेट नर्सिंग काउंसिल को 30 अक्टूबर तक प्रवेश प्रक्रिया पूरी करनी है।

इसके तहत 22 से 30 सितंबर तक रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी की गई। इसके बाद 2 से 7 अक्टूबर तक अभ्यर्थियों ने अपनी पसंद के कॉलेजों की चॉइस फीलिंग की। 13 अक्टूबर को प्रोविजनल सीट अलॉटमेंट किया गया। अब 14 से 18 अक्टूबर के बीच अपग्रेडेशन और प्रवेश की प्रक्रिया पूरी होगी।

21 में से 8 सरकारी कॉलेजों को ही मान्यता मध्यप्रदेश में 2025-26 सत्र के लिए 21 में से सिर्फ 8 शासकीय नर्सिंग को मान्यता मिली हैं वहीं प्राइवेट कालेजों को बीएससी नर्सिंग के 196 कालेजों और जीएनएम नर्सिंग के 247 कालेजों को मान्यता मिली हैं। इसे लेकर नर्सिंग काउंसिल के रजिस्ट्रार मुकेश सिंह का कहना है कि नर्सिंग कॉलेज की मान्यता की तारीख और नियम इंडियन नर्सिंग काउंसिल तय करता है।

जो तारीख इंडियन नर्सिंग काउंसिल तय करता है उसी तारीख पर मप्र नर्सिंग काउंसिल की तरफ से काउंसलिंग की प्रक्रिया शुरू की जाती है। उनसे पूछा कि साल 2022 का रिजल्ट हाईकोर्ट के आदेश के घोषित तो हो गया लेकिन इसकी काउंसलिंग शुरू नहीं हुई तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।

छात्र संगठनों का आरोप- एमपी में नर्सिंग माफिया हावी इस साल की प्रवेश प्रक्रिया की अंतिम तिथि 31 अक्टूबर निर्धारित की गई है और इसके बाद काउंसलिंग के किसी भी अतिरिक्त राउंड की संभावना नहीं है। पिछले वर्ष बीएससी और जीएनएम नर्सिंग में काउंसलिंग के दो-दो राउंड हुए थे, जबकि एमएससी नर्सिंग में केवल एक ही राउंड हो पाया था। आखिरी तारीख के बाद आईएनसी ने प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी।

इस बार पहला राउंड 27 दिन चलेगा और उसके बाद केवल 12 दिन बाकी रह जाएंगे, जिससे यह तय माना जा रहा है कि इस बार कोई अतिरिक्त राउंड नहीं होगा। छात्र संगठनों का आरोप है कि एमपी में नर्सिंग माफिया के इशारे पर अफसर काम करते हैं। नामांकन से लेकर परीक्षा तक पूरी प्रक्रिया माफिया के इशारे पर होती है।



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