अनीता डफाल 35 साल तक प्लॉट के लिए चक्कर लगाती रहीं। इसके बाद भी उन्हें प्लॉट नहीं मिला। अक्टूबर 2024 में उनका निधन हो गया।
39 साल से अपने हक के प्लॉट के लिए दर-दर भटक रही 78 साल की महिला सविता रानी को अब जाकर न्याय की एक उम्मीद जागी है। देवी अहिल्या श्रमिक कामगार सहकारी संस्था द्वारा फोरम के आदेश का पालन न करने पर जिला उपभोक्ता फोरम ने संस्था अध्यक्ष के खिलाफ गिरफ्तारी व
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सविता रानी ने 14 साल पहले उपभोक्ता फोरम की शरण ली थी। चार साल बाद फोरम ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया लेकिन संस्था ने स्टेट उपभोक्ता फोरम में अपील की और फिर 9 साल तक मामला चलता रहा। 2024 में फिर महिला के पक्ष में फैसला आया लेकिन संस्था ने प्लॉट नहीं दिया। इस पर फोरम ने अब गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। बीते 14 सालों में वह इंदौर-भोपाल में फोरम 50 से ज्यादा बार पेशी पर गई। अभी भी पता नहीं कि उसे प्लाट मिलेगा भी या नहीं, और मिलेगा तो कब?
पहले जानिए क्या है मामला?
इंदौर निवासी सविता रानी ने 1986 में देवी अहिल्या संस्था से प्लॉट खरीदने के लिए 6 किश्तों में 30 हजार रुपए जमा किए। यह प्लॉट 1500 वर्गफीट का था। संस्था द्वारा श्री महालक्ष्मी नगर में आवंटित किया जाना था। महिला ने 2006 तक नियमित किश्तें भरीं और कुल 80 हजार रुपए से ज्यादा की राशि जमा की। जब प्लॉट की कीमत के सारे रुपए ब्याज सहित भर दिए, तब भी संस्था ने उन्हें प्लॉट नहीं दिया।
2011 में फोरम का दरवाजा खटखटाया
महिला ने 2011 में अपने एडवोकेट ऋषि आनंद चौकसे के माध्यम से जिला उपभोक्ता फोरम में देवी अहिल्या संस्था के खिलाफ केस लगाया। यह केस चार साल तक चला। 2015 में फोरम ने उनके पक्ष में फैसला दिया कि संस्था उन्हें प्लॉट का कब्जा दें।
इस फैसले के खिलाफ देवी अहिल्या संस्था ने राज्य उपभोक्ता फोरम (भोपाल) में अपील की। इसमें गुहार लगाई गई कि केस की सुनवाई एक बार और की जाएं। यहां 2022 तक केस की सुनवाई चलती रही। इसमें करीब ढाई साल तक कोरोना संक्रमण भी रहा। इसके बाद स्टेट उपभोक्ता फोरम ने फिर से जिला उपभोक्ता फोरम को रेफर किया कि इस फैसले पर एक बार फिर सुनवाई हो।
महिला ने 2011 में जिला उपभोक्ता फोरम में देवी अहिल्या संस्था के खिलाफ केस लगाया।
फोरम ने दो माह में प्लॉट देने का आदेश दिया, फिर भी संस्था ने नहीं किया पालन
दो साल तक फिर जिला उपभोक्ता फोरम में केस की सुनवाई हुई। 2024 में जिला उपभोक्ता फोरम ने फिर महिला के पक्ष में फैसला दिया कि देवी अहिल्या संस्था उन्हें दो माह में प्लॉट का कब्जा दे। इसके बाद काफी समय तक संस्था ने टालमटोल की। संस्था ने कई बार कलेक्टर को वरीयता सूची देने को लेकर फोरम को बताया कि वरीयता सूची बन रही है। इसके बाद भी जब संस्था ने प्लॉट नहीं दिया तो महिला के एडवोकेट ऋषि आनंद चौकसे ने संस्था अध्यक्ष के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट के लिए आवेदन प्रस्तुत किया।
जानिए संस्था ने क्या दिया जवाब
फोरम ने संस्था को समय दिया कि वह जवाब पेश करे। संस्था ने अपने जवाब में कहा कि 2021 से वरीयता सूची बनाने की कोशिश की जा रही है। हकीकत यह है कि अब (2025) तक भी वरीयता सूची नहीं बनी है। यानी 1400 से भी ज्यादा दिन बीत जाने के बाद भी वरीयता सूची तैयार नहीं की गई। वैसे यह समस्या सिर्फ इस महिला सदस्य की नहीं, बल्कि 400 से ज्यादा सदस्यों की शिकायत है।

चक्कर लगाते-लगाते बूढ़ी हो गई महिला
महिला ने 1986 में जब पहली किश्त भरी थी, उसे अब 39 साल हो चुके हैं। इस दौरान दो बार फोरम ने उनके पक्ष में फैसला दिया, इसके बाद भी उन्हें प्लॉट नहीं मिला। बीते 39 सालों में वह 50 से ज्यादा बार इंदौर-भोपाल फोरम में पेशी पर जा चुकी हैं।
महिला के परिवार में उनके पति, बेटा और बहू हैं। अपील का निराकरण भी हो चुका है। लिटिगेशन के तीन राउंड पूरे हो चुके हैं, लेकिन संस्था ने अब तक वरीयता सूची पेश नहीं की। इस पर फोरम ने केस की परिस्थिति और गंभीरता को देखते हुए 9 अक्टूबर को संस्था अध्यक्ष (पदेन) के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है।

संस्था ही साबित नहीं कर सकी, क्यों नहीं दिया प्लॉट?
महिला के एडवोकेट ऋषि आनंद चौकसे ने बताया कि संस्था द्वारा दोनों बार फोरम में केस हारने का मुख्य कारण यह रहा कि महिला के पास शुरुआत से लेकर आखिरी तक भरी गई किश्तों के सभी दस्तावेज मौजूद हैं। दूसरा यह कि संस्था ने सुनवाई की दोबारा अपील तो की, लेकिन फोरम में यह ठोस कारण नहीं बता सकी कि बीते 39 सालों में महिला द्वारा सारी किश्तें भरने के बाद भी उसे प्लॉट क्यों नहीं दिया गया।
वैसे इस संस्था के कई सालों तक अध्यक्ष विमल अजमेरा रहे हैं। पिछले माह संस्था की बैठकों में सदस्यों ने प्लॉट न मिलने को लेकर जोरदार हंगामा किया था। एक सदस्य से मारपीट के मामले में अजमेरा और उनके बेटे पर भी केस दर्ज है। पिछले माह ही उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया गया।

अब पदेन अध्यक्ष के पास ये हैं विकल्प… कानूनविदों के मुताबिक, प्रोसीडिंग के तहत जिला उपभोक्ता फोरम ने देवी अहिल्या संस्था के अध्यक्ष (यानी नाम से नहीं बल्कि पदेन) के खिलाफ वारंट जारी किया है। दूसरी ओर, घोटाले और आरोपों से घिरे अध्यक्ष विमल अजमेरा को हटाया जा चुका है। उनके स्थान पर पंकज जायसवाल संस्था के प्रभारी अध्यक्ष हैं। ऐसे में अब वे जवाबदेह हैं। ऐसे में उनके पास चार विकल्प हैं।
- या तो वे फोरम में उपस्थित होकर अपना पक्ष रखें या कुछ दिन का समय मांगें।
- इस वारंट के खिलाफ राज्य उपभोक्ता फोरम की शरण लें, लेकिन वहां से पहले ही मामला जिला उपभोक्ता फोरम को रेफर किया जा चुका था।
- महिला को उनके प्लॉट का विधिवत कब्जा सौंप दें।
- इन तीनों में से कुछ नहीं करते हैं, तो फिर जेल जाना पड़ सकता है।
इधर 35 साल प्लॉट के लिए चक्कर लगाते-लगाते चल बसी महिला
एक दुखद मामला संस्था की वरिष्ठ सदस्य अनीता डफाल (81) का है। उन्होंने 1986 में देवी अहिल्या संस्था से प्लॉट खरीदा था। खास बात यह है कि श्री महालक्ष्मी नगर में सबसे पहली रजिस्ट्री भी उनकी ही हुई थी, लेकिन उन्हें भी प्लॉट नहीं मिला। वे सालों तक संस्था कार्यालय, सहकारिता विभाग और कलेक्टोरेट के चक्कर लगाती रहीं, फिर भी संस्था ने उन्हें प्लॉट नहीं दिया, जबकि शुरुआती वरीयता सूची में उनका नाम था।
इसके बाद मार्च 2021 में ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक कार्यक्रम में आए तो वे बड़ी मुश्किल से व्हीलचेयर पर मुख्य हॉल तक पहुंचीं। कार्यक्रम खत्म होते ही कुछ लोगों ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि यह बुजुर्ग महिला चल नहीं सकती, 35 सालों से प्लॉट के लिए भटक रही हैं।
इस बीच उनके पति का भी निधन हो चुका था। तब मुख्यमंत्री स्वयं मंच से उतरकर उनके पास पहुंचे, उनकी पूरी पीड़ा सुनी और मौके पर मौजूद प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश दिए कि उन्हें हर हाल में प्लॉट का कब्जा दिलाया जाए।

अक्टूबर 2024 में अनीता डफाल का निधन हो गया। और आखिर तक उन्हें संस्था ने प्लॉट नहीं दिया।
संस्था ने कलेक्टर की बात तक को गंभीरता से नहीं लिया
बहन लता जाधव ने बताया कि इसके बाद तत्काल प्रशासनिक अधिकारियों ने सहकारिता विभाग के अधिकारियों और देवी अहिल्या संस्था के पदाधिकारियों को तलब किया। फिर तेजी से सारी फाइलें खंगाली गईं। वरीयता के आधार पर उनके सहित अन्य कुछ सदस्यों के प्लॉट के दस्तावेजों की छानबीन की गई और मौके पर जाकर नाप-जोख की गई।
इसमें अनीता डफाल को प्लॉट आवंटित करने की प्रक्रिया पूरी की गई। विडम्बना यह है कि संस्था के कर्ताधर्ताओं द्वारा फिर भी कई घालमेल किए गए और तत्कालीन कलेक्टर ने वरीयता सूची बनाने को कहा, लेकिन संस्था ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। सिर्फ पात्र और अपात्र सदस्यों का हवाला देकर टालमटोल की जाती रही।

दिल से सहेज कर रखे प्लॉट के दस्तावेज
पिछले साल अक्टूबर में अनीता डफाल का निधन हो गया और आखिर तक उन्हें संस्था ने प्लॉट नहीं दिया। बहन लता के अनुसार, उनके जीवित रहने के दौरान, तीन साल पहले संस्था ने उनसे आईडीए की बकाया राशि, जो सभी सदस्यों को भरनी थी, डेवलपमेंट चार्ज सहित लगभग 1 लाख रुपए जमा करवाई। फिर पता चला कि जिस लाइन में उनका प्लॉट है, वहां स्मार्ट सिटी के तहत सड़क का प्लान है, जिससे उनका प्लॉट का अधिकांश हिस्सा खत्म हो रहा है। आखिरकार उनका प्लॉट का सपना पूरा नहीं हुआ और अब वह इस दुनिया में नहीं हैं।