खरगोन में दिखा ‘गुस्सैल मेंढक’, रंग-साइज देख उड़ जाएंगे होश, PAK से कनेक्शन

खरगोन में दिखा ‘गुस्सैल मेंढक’, रंग-साइज देख उड़ जाएंगे होश, PAK से कनेक्शन


Last Updated:

Khargone News: इस प्रजाति को गुस्सैल मेंढक कहने की वजह इसका चेहरा और हावभाव हैं. इस मेंढक की आंखें हमेशा तनी हुई रहती हैं. स्थानीय लोगों ने कहा कि इसे देखकर लगता है कि जैसे गुस्से में हो.

खरगोन. आमतौर पर आपने हरे, भूरे या पीले रंग के मेंढक देखे होंगे लेकिन इस बार जो नजारा देखने को मिला, उसने सभी को हैरान कर दिया. मध्य प्रदेश के खरगोन में इन दिनों काले रंग का एक विशाल और दुर्लभ मेंढक देखा गया है. इसका आकार सामान्य मेंढक से कई गुना बड़ा है और इसकी शक्ल देखकर लोग दंग रह गए. इसे स्थानीय लोग मजाक में ‘गुस्सैल मेंढक’ कह रहे हैं क्योंकि यह हमेशा अपनी आंखों की भौहें चढ़ाकर रखता है, मानो किसी से नाराज हो. जिले के मंडलेश्वर में प्राचीन श्री गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में पानी की टंकी के पास यह मेंढक पिछले कई दिनों से देखा जा रहा है. यह मेंढक देखने में बिल्कुल अनोखा है. न इसकी त्वचा चिकनी है और न रंग समान. काले रंग की खुरदरी त्वचा और बड़े आकार के कारण इसे पहचानना आसान है. स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने इससे पहले ऐसा मेंढक कभी नहीं देखा. बिना आवाज के यह मेंढक यहां अकेला रहता है.

प्राणी शास्त्र के प्रोफेसर डॉ प्रवीण पांडे ने लोकल 18 को बताया कि यह मेंढक दरअसल भारतीय बुलफ्रॉग (Hoplobatrachus tigerinus) है. इसे सिंधु घाटी बुलफ्रॉग के नाम से भी जाना जाता है. यह प्रजाति दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में पाई जाती है, जिसमें भारत, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और म्यांमार जैसे देश शामिल हैं. भारतीय बुलफ्रॉग सामान्य रूप से हरे रंग का होता है लेकिन वातावरण के अनुसार इसका रंग बदलता है. कई बार यह इतना गहरा हो जाता है कि काला दिखाई देता है. रंग बदलने की क्षमता इस प्रजाति की खासियत है.

संकटग्रस्त प्रजाति और संरक्षण जरूरी
विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रजाति की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है. पर्यावरण असंतुलन, जल स्रोतों का सूखना और रासायनिक खेती इसके अस्तित्व के लिए खतरा बन चुके हैं. इसी वजह से इसे अब संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में शामिल किया गया है. डॉ पांडे ने कहा कि यह मेंढक पर्यावरण संतुलन में अहम भूमिका निभाता है. यह कीट, मच्छर, छोटे जीव और यहां तक कि सांपों को भी खा जाता है, इसलिए इसका बचना प्रकृति के लिए बहुत जरूरी है.

जमीन के नीचे बनाता है बिल
इस दुर्लभ मेंढक की एक और खासियत है कि इसे जीवित रहने के लिए खुले पानी की जरूरत नहीं होती है. यह ठंडी और नमी वाली मिट्टी या पानी में भी चूहों की तरह बिल बनाकर रहता है. यह 6 इंच तक सुरंग बना सकता है. बरसात के बाद यह जमीन के अंदर ही छिपा रहता है, जहां उसे पर्याप्त नमी मिलती रहती है. इस कारण यह शुष्क इलाकों में भी लंबे समय तक जीवित रह सकता है.

क्यों कहते हैं गुस्सैल मेंढक?
इस प्रजाति को गुस्सैल मेंढक कहने की वजह इसका चेहरा और हावभाव हैं. इसकी आंखें हमेशा तनी हुई होती हैं. स्थानीय लोग कहते हैं कि इसे देखकर लगता है जैसे गुस्से में हो. इसकी त्वचा पर मस्से नहीं बल्कि छोटे-छोटे उभार होते हैं, जो इसे सामान्य मेंढकों से अलग बनाते हैं.

Rahul Singh

राहुल सिंह पिछले 10 साल से खबरों की दुनिया में सक्रिय हैं. टीवी से लेकर डिजिटल मीडिया तक के सफर में कई संस्थानों के साथ काम किया है. पिछले चार साल से नेटवर्क 18 समूह में जुड़े हुए हैं.

राहुल सिंह पिछले 10 साल से खबरों की दुनिया में सक्रिय हैं. टीवी से लेकर डिजिटल मीडिया तक के सफर में कई संस्थानों के साथ काम किया है. पिछले चार साल से नेटवर्क 18 समूह में जुड़े हुए हैं.

न्यूज़18 हिंदी को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
homemadhya-pradesh

खरगोन में दिखा ‘गुस्सैल मेंढक’, रंग-साइज देख उड़ जाएंगे होश, PAK से कनेक्शन



Source link