नागपुर में जन्म, पर खंडवा की गलियों में गढ़ी गई संघ की आत्मा, जानें गुरुजी गोलवलकर से जुड़ी अनसुनी कहानी

नागपुर में जन्म, पर खंडवा की गलियों में गढ़ी गई संघ की आत्मा, जानें गुरुजी गोलवलकर से जुड़ी अनसुनी कहानी


भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है. संघ आज एक संगठन भर नहीं, बल्कि एक विचार, एक संस्कार और एक जीवनशैली बन चुका है जो राष्ट्र निर्माण के हर मोर्चे पर सक्रिय है.

यह वर्ष संघ के लिए ऐतिहासिक है संघ का शताब्दी वर्ष, यानी 100 साल की अद्भुत यात्रा! लेकिन इस शताब्दी के मौके पर एक शहर का नाम फिर सुर्खियों में है मध्यप्रदेश का खंडवा. जी हां, वही खंडवा, जिससे संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ‘गुरुजी’ का गहरा नाता रहा है.

खंडवा में बीता गुरुजी का बचपन
गुरुजी का जन्म भले नागपुर में हुआ, लेकिन उनका बचपन खंडवा की गलियों में बीता. उनके पिता सदाशिव राव गोलवलकर डाक विभाग में पोस्टमैन थे और परिवार सहित खंडवा के कुम्हारबेड़ा इलाके में रहते थे. उस वक्त यह इलाका शांत, संस्कारी और मिलजुलकर रहने वाले लोगों का था और यही माहौल गुरुजी के व्यक्तित्व का मूल बना.

गुरुजी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा खड़कपुरा स्थित ‘मेन हिंदी स्कूल’ से प्राप्त की. यह वही जगह थी जहां उन्होंने न सिर्फ पढ़ना-लिखना सीखा, बल्कि जीवन के आदर्श और अनुशासन की पहली सीख भी पाई.

एक साधारण बच्चे से राष्ट्रऋषि तक की यात्रा
गुरुजी का बचपन किसी आम भारतीय बच्चे की तरह ही गुजरा सादा जीवन, सीमित साधन और बड़े सपने. वे स्कूल जाते, दोस्तों के साथ खेलते, और घर के कामों में मदद करते हुए धीरे-धीरे समाज की असल तस्वीर को समझने लगे. यही अनुभव आगे चलकर उन्हें राष्ट्र निर्माण की दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करते रहे.

बाद में गुरुजी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से जीवविज्ञान में स्नातक की पढ़ाई की. वहीं से वे रामकृष्ण मिशन से जुड़े, जहाँ उन्हें आध्यात्मिक जीवन की गहराईयों को समझने का अवसर मिला.

डॉ. हेडगेवार के बाद संघ की कमान
जब डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के निधन के बाद संघ को नए नेतृत्व की आवश्यकता हुई, तब गुरुजी ने वह जिम्मेदारी संभाली.उनके नेतृत्व में संघ ने न केवल देशभर में विस्तार किया, बल्कि शिक्षा, सेवा, और संस्कार के क्षेत्र में भी बड़ा योगदान दिया. गुरुजी ने संघ को विचार से संगठन, और संगठन से आंदोलन का स्वरूप दिया.

खंडवा से रिश्ता कभी नहीं टूटा
हालांकि गुरुजी राष्ट्रीय स्तर के नेता बन चुके थे, पर खंडवा से उनका अपनापन कभी कम नहीं हुआ. स्थानीय स्वयंसेवकों के अनुसार, जब भी वे यहां आते, पुराने दोस्तों से मिलना और साधारण जनों के बीच बैठकर बातें करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा होता. मीसाबंदी रहे सुरेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि गुरुजी जब भी खंडवा आते, तो घर जरूर आते थे. उनकी सादगी देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वे इतने बड़े संगठन के प्रमुख हैं.

आज संघ सेवा का पर्याय
आज, जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने 100 वर्ष पूरे कर रहा है, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि गुरुजी की प्रेरणा, विचार और खंडवा की मिट्टी ने संघ को वैचारिक आधार दिया. संघ आज देशभर में शिक्षा, स्वास्थ्य, सेवा और संस्कार के माध्यम से समाज को जोड़ने का कार्य कर रहा है.और इस महायात्रा के इतिहास में खंडवा का नाम सदा के लिए स्वर्णाक्षरों में दर्ज है क्योंकि यहीं से शुरू हुई थी उस राष्ट्रऋषि की कहानी, जिसने कहा था राष्ट्र की सेवा ही परम धर्म है.



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