एमपी में ओबीसी वर्ग को दिए गए 27% आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर हुई है। मध्य प्रदेश ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से लगाई गई पिटीशन में पिछडे़ वर्ग को एमपी में आबादी के अनुपात में 50% आरक्षण देने की मांग की गई है।
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ओबीसी एडवोकेट्स की याचिका पर दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एमपी के मुख्य सचिव से जवाब मांगा है। चार हफ्ते बाद इस मामले को लेकर फिर सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर वरुण ठाकुर विनायक प्रसाद शाह हनुमत लोधी रामकरण प्रजापति ने पैरवी की।
वकील बोले- SC-ST की तरह OBC को आरक्षण मिले याचिकाकर्ताओं के वकील वरुण ठाकुर ने बताया- मध्य प्रदेश ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा एक पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में फाइल की गई है। जिसमें एक्ट की वैलिडिटी को यह कहते हुए चैलेंज किया गया है कि ओबीसी वर्ग को केवल 27% रिजर्वेशन तक क्यों रोका गया है। जबकि उनकी आबादी 50% से ऊपर है।
उनका रिप्रजेंटेशन बिल्कुल नगण्य है। जो डाटा पेश किए गए हैं वो डेटा 13% से भी कम दिखाते हैं। क्लास वन और क्लास टू पर जो अंबेडकर रिसर्च कमेटी की रिपोर्ट में ये साफ दिख रहा है कि उनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं हैं। इन सब बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए यह पिटीशन ड्राफ्ट हुई थी।
वरुण ठाकुर ने कहा- इस मामले को इस तर्क के साथ सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया है कि एमपी में ओबीसी वर्ग का प्रॉपर प्रतिनिधित्व होना चाहिए। लेकिन चूंकि यह धारा उसमें रिस्टेन करती है और प्रॉपोशनेट रिजर्वेशन नहीं मिल पा रहा है।
इस कारण से इस सेक्शन को सैटेलाइट किया जाए। जिसको सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए एमपी के चीफ सेक्रेटरी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट ने यह भी पूछा है कि क्यों न इनको प्रपोशनेट रिजर्वेशन क्यों नहीं दिया जा रहा है? इन सब बिंदुओं पर चार सप्ताह बाद जवाब मांगा है।
कानून ओबीसी को 27% देने पर रोकता है, 50% मिलना चाहिए ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ एवं जस्टिस संदीप मेहता की डबल बेंच में सुनवाई हुई।
याचिका मे आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4(2) की संवैधानिकता को चुनौती दी है। याचिका में धारा 4(2) को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 एवं 16 से असंगत बताया है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि आरक्षण अधिनियम की धारा 4(2) एस.सी.को 16% एस.टी.को 20% तथा ओबीसी को 27% आरक्षण का प्रावधान करती है। मध्य प्रदेश में 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग की आबादी 15.6% एसटी वर्ग की आबादी 21.01% तथा अन्य पिछड़े वर्ग की आबादी 50.01% है।
ठाकुर ने कहा- एससी और एसटी वर्ग को आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया जा रहा है। जबकि, अन्य पिछड़े वर्ग को मात्र 27% आरक्षण दिया जा रहा है इसलिए धारा 4(2) भारत के संविधान के अनुच्छेद 14,15 एवं 16 से असंगत है।
धारा 4 की उप धारा 2 ओबीसी वर्ग के साथ भेदभाव पैदा कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को गंभीरता से लेते हुए याचिका को स्वीकार करते हुए मध्य प्रदेश शासन को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के अंदर जवाब तलब किया है।