Data Bandi Chhod Gurudwara: ग्वालियर के ऐतिहासिक किले पर स्थित गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ सिखों ही नही सभी धर्मों की आस्था का बड़ा स्थान है. सिखों के छठवें गुरु हरिगोविंद सिंह के यहां कैद 52 हिन्दू राजाओं को मुगल शासक की कैद से आजाद कराया था. गुरु हरिगोविंद सिंह जी की मुगलों से रिहाई की याद में हर साल ग्वालियर स्थित गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ पर दाता बंदी छोड़ महोत्सव मनाया जाता है. सिख सामाज में दीपावली मनाने की शुरुआती भी दाता बन्दी छोड़ के दरबार से ही शुरू हुई है.
पूरा देश इन दिनों दीपावली का त्योहार मना रहा है और हर जगह उत्सव का माहौल है. खास बात ये है कि इस त्योहार को हिन्दू परंपरा में तो मनाते ही हैं, बाकी धर्म के लोग भी अलग-अलग तरह से मनाते हैं. दुनिया भर में फैले सिख धर्म को मानने वाले भी यह पर्व मनाते हैं. सिख लोग पहले दीवाली नहीं मनाते थे, लेकिन ग्वालियर में एक ऐसा घटनाक़म घटा की उसके बाद से उन्होंने दो दिन दिवाली मनाना शुरू कर दिया.
क्या है मान्यता और इतिहास?
ग्वालियर के विश्व प्रसिद्ध दुर्ग के ही एक बड़े हिस्से और ऊंचाई पर ऐतिहासिक गुरुद्वारा मौजूद है, जिसका नाम ‘दाता बंदी छोड़’ है. यह गुरुद्वारा सिख संगत में बड़े तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है. दुनिया भर से सिख सपरिवार हर साल यहां मत्था टेकने पहुंचते हैं.सिख इतिहास में इस जगह का महत्व बहुत है, क्योंकि इस गुरुद्वारे से जुड़ा किस्सा बड़ा ही दिलचस्प है और इससे पता चलता है कि सिख समाज में इसी जगह पर घटी एक घटना ने दीपावली मनाने की शुरुआत हुई. इसके बाद में यहां गुरुद्वारा भी बनाया गया.
मुगल काल के दौरान लोगों में सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए मुगल शासक जहांगीर ने सिखों के छठे गुरु हरगोविंद साहिब को बंदी बना लिया था. गुरु हरगोविंद साहिब ने मुस्लिम शासकों की धार्मिक शर्तें मानने से इनकार कर दिया था. जहांगीर ने गुरु महाराज को बंदी बनाकर ग्वालियर के किले में कैद कर दिया था. मुगल उस समय इस किले को अपने राजनीतिक बंदियों की कैद के लिए इस्तेमाल करते थे. इस किले में साहिब के आने से पहले से ही 52 हिंदू राजा कैद थे. गुरु हरगोविंद जी जब जेल में पहुंचे तो सभी राजाओं ने उनका स्वागत किया. जहांगीर ने गुरु हरगोविंद को 2 साल 3 महीने तक जेल से बाहर नहीं आने दिया.
जहांगीर के साथ घटी ये घटना
उसी दौरान अचानक जहांगीर की तबीयत खराब होने लगी. हकीम से लेकर वैद्य तक सब उपचार में जुटे थे, लेकिन उनकी तबीयत बिगड़ती ही जा रही थी. तभी एक शाही पीर ने जहांगीर को बताया कि ग्वालियर किले पर नजरबंद गुरु हरगोविंद साहिब को मुक्त कर दो, तभी आप ठीक हो सकते हैं. जान जाने से भयभीत जहांगीर ने उनकी बात मान ली. इसके बाद गुरू हरगोविंद साहिब को रिहा करने के लिए जहांगीर तैयार हुआ.
जहांगीर ने गुरु हरगोविंद साहिब को रिहा करने का फैसला लिया और कहा आपको यहां से मुक्त किया जाता है. बादशाह का जब यह आदेश ग्वालियर दुर्ग में पहुंचकर गुरु हरगोविंद साहिब को सुनाया गया तो गुरुजी ने इसे अस्वीकार कर दिया. उन्होंने कैद से अकेले रिहा होने से मना कर दिया. गुरु हरगोविद साहिब से जब जहांगीर ने इसकी वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि मैं यहां पर कैद सभी 52 हिंदू राजाओं को अपने साथ लेकर ही कैद से बाहर जाऊंगा. आखिरकार इसके बाद गुरु हरगोविंद साहिब की शर्त को स्वीकार करते हुए जहांगीर ने भी एक शर्त रखी. जहांगीर ने कहा कि कैद में गुरु जी के साथ सिर्फ वही राजा बाहर जा सकेंगे, जो गुरुजी का कोई कपड़ा पकड़े होंगे. इसके बाद गुरु हरगोविंद साहिब ने जहांगीर की शर्त को स्वीकार कर लिया.
चालाकी पर भारी पड़ा चमत्कार
जहांगीर की चालाकी को देखते हुए गुरु हरगोविंद साहिब ने एक 52 कलियों का चोंगा (कुर्ता) सिलवाया. इस तरह एक-एक कली को पकड़ते हुए सभी 52 हिंदू राजा जहांगीर की कैद से आजाद हो गए. 52 हिंदू राजाओं को ग्वालियर के इसी किले से एक साथ छोड़ा गया था. इसलिए यहां बने इस स्थान का नाम दाताबन्दी छोड़ रखा गया था, लेकिन कालांतर में यहां बने गुरुद्वारे का नाम ‘दाता बंदी छोड़’ के नाम से ही प्रसिद्ध हो गया. चूंकि, यह रिहाई दीपावली के मौके पर हुई थी, इसलिए सिखों ने उनकी अगवानी के लिए घर-घर दिए जलाए और तभी से सिख समाज भी अमावस्या और उसके एक दिन बाद तक घरों में दीपक जलाकर दीवाली मनाने लगे. ग्वालियर स्थित दाताबन्दी छोड़ गुरुद्वारे में भी दीपोत्सव होता है. यहां लाखों की तादाद में सिख धर्म के अनुयाई अरदास करने आते हैं.
ग्वालियर का गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ दुनियां विश्व में सिख समाज का छठवां सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है. इस गुरुद्वारे से दुनिया भर के सिखों के साथ ही हिंदू सहित अन्य धर्म के लोगों की भी बढ़िया आस्था है. यही वजह है कि दीपावली के दौरान यहां पर देश भर के अलग-अलग राज्यों के श्रद्धालु आकर मत्था देखते हैं. वहीं, विदेशी भी यह आकर अपनी प्रार्थना करते हैं.