दीवाली की अजब-गजब परंपरा! पैरों में घुंघरू और मौन व्रत कर नापते हैं 12 गांव

दीवाली की अजब-गजब परंपरा! पैरों में घुंघरू और मौन व्रत कर नापते हैं 12 गांव


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Sagar News: दरअसल दीवाली (Diwali 2025) के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा परमा को इस व्रत को किया जाता है. व्रत रखने वाले श्रद्धालु नए सफेद वस्त्र धारण करते हैं, जिसमें धोती और बनियान का पहनावा होता है.

सागर. दीपावली का त्योहार पूरे देश में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. बुंदेलखंड में रोशनी के इस पर्व को मनाने के लिए लोग कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. यहां तक कि सनातन काल से चली आ रही परंपराएं आज भी यहां पर उसी रूप में जीवंत हैं. ऐसी ही एक परंपरा मोनिया नृत्य की है, जिसमें साधक कम से कम 12 साल तक इसको निभाने का संकल्प लेता है. इस व्रत को करना बड़ा ही अनूठा और अनोखा है. मनोकामना पूर्ण होने के बाद इस व्रत को किया जाता है. व्रत रखने वालों के घर परिवार में सुख-समृद्धि आती है, उनकी गायें सुरक्षित रहती हैं और उन्हें कोई कष्ट नहीं होता.

दरअसल दीपावली के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा परमा को इस व्रत को किया जाता है. व्रत रखने वाले लोग नए सफेद वस्त्र धारण करते हैं, जिसमें धोती और बनियान का पहनावा होता है. इसके साथ पैरों में घुंघरू और कमर में 84 होती है, जो चलने पर आवाज करती है इसी आवाज को सुनकर लोग समझ जाते हैं कि रास्ते से मोनिया गुजर रहे हैं. इनको देखना काफी शुभ माना जाता है. मान्यता है कि व्रत करते समय इनमें देवताओं का अंश आ जाता है. रास्ते में मिलने वाले लोगों को यह प्रसाद बांटते हुए जाते हैं.

गाय के नीचे से निकलते हैं
व्रत रखने वाले को सबसे पहले अपने गांव के कारस देव के स्थान पर पहुंचना होता है. यहां गाय की पूजन के बाद वे गाय के नीचे से निकलते हैं और फिर वहीं पर नृत्य करते हैं. इसके साथ ही यह व्रत शुरू हो जाता है. मौन व्रत तब तक रहेगा, जब तक वे पैदल चलते हुए 12 गांव की सीमाएं नहीं लांघ जाते हैं और यह इन्हें सूर्यास्त होने से पहले करना होता है. इस दौरान वे जितने भी गांव से गुजरते हैं, सभी जगह भक्त प्रसाद चढ़ाते हैं. साथ ही रास्ते में अगर किसी खेत में फल-फूल लगे हुए हैं, तो उनको तोड़ लेते हैं और कोई रोकता नहीं है बल्कि किसी के खेत में पहुंचना इनका शुभ संकेत माना जाता है. कई लोग इन्हें पैसे देते हैं. बड़े-बड़े मंदिरों में पहुंचकर यह मोनिया नृत्य भी करते हैं. नृत्य के दौरान उनके हाथों में मोर पंख होता है. वे मंजीरे, ढोलक और मृदंग की थाप पर नृत्य करते हैं.

द्वापर युग से चली आ रही परंपरा
सागर निवासी बुजुर्ग द्रौपदी बाई गौतम लोकल 18 को बताती हैं कि मान्यता है कि द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे अपनी गायों को चराने के लिए गए थे, तो गाय दूर निकल गईं. कृष्णा नदी के किनारे ही बैठे रहे. उन्हें अपनी गायों का कुछ पता नहीं चला, तो वह उदास होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए. जब उनके मित्रों को पता चला कि कान्हा उदास हैं, तो वे भी भगवान की गाय-बछड़ों को ढूंढने के लिए अलग-अलग दिशाओं में निकल पड़े, तब से ही यह परंपरा शुरू हुई, जो आज भी चल रही है.

Rahul Singh

राहुल सिंह पिछले 10 साल से खबरों की दुनिया में सक्रिय हैं. टीवी से लेकर डिजिटल मीडिया तक के सफर में कई संस्थानों के साथ काम किया है. पिछले चार साल से नेटवर्क 18 समूह में जुड़े हुए हैं.

राहुल सिंह पिछले 10 साल से खबरों की दुनिया में सक्रिय हैं. टीवी से लेकर डिजिटल मीडिया तक के सफर में कई संस्थानों के साथ काम किया है. पिछले चार साल से नेटवर्क 18 समूह में जुड़े हुए हैं.

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