ओरिजनल समझकर फाउंडेशन लगाया, चेहरे पर हुआ रिएक्शन: बाजार में बिक रहे डुप्लीकेट ब्यूटी प्रोडक्ट; भास्कर पड़ताल में खुलासा, पैकिंग-ब्रांड नेम में अंतर नहीं – Madhya Pradesh News

ओरिजनल समझकर फाउंडेशन लगाया, चेहरे पर हुआ रिएक्शन:  बाजार में बिक रहे डुप्लीकेट ब्यूटी प्रोडक्ट; भास्कर पड़ताल में खुलासा, पैकिंग-ब्रांड नेम में अंतर नहीं – Madhya Pradesh News


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ये कहना है भोपाल की 24 साल की कृतिका गौर का। हालांकि, वह अकेली नहीं हैं जो असली और नकली के इस खेल में धोखा खा गईं, बल्कि उनके जैसी हजारों महिलाएं और युवतियां हैं जो अनजाने में अपनी त्वचा पर नकली कॉस्मेटिक प्रोडक्ट लगा रही हैं। यह समस्या सिर्फ भोपाल तक सीमित नहीं, बल्कि देश के हर छोटे-बड़े शहर में एक बड़े रैकेट का रूप ले चुकी है।

दरअसल, इस वक्त बाजार में कई दुकानदार ग्राहकों को गुमराह कर नकली कॉस्मेटिक प्रोडक्ट बेच रहे हैं। ये उत्पाद देखने में हूबहू असली जैसे लगते हैं, लेकिन इनकी क्वालिटी और इनमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री स्किन के लिए बेहद हानिकारक हो सकती है। दैनिक भास्कर ने ऐसी ही दुकानों की पड़ताल की, जो डुप्लीकेट सामान बेच रही हैं।

इन दुकानदारों से खुफिया कैमरे पर बात कर समझा कि ये नकली माल कहां से आता है और कितने में बिकता है? साथ ही एक्सपर्ट से बात कर समझा कि आखिर ये स्किन के लिए कितने नुकसानदायक है? पढ़िए यह पूरी रिपोर्ट…

बाजार में मिलने वाले कॉस्मेटिक प्रोडक्ट असली है या नकली ये पहचानना मुश्किल है।

दो केस से समझिए किस तरह बिक रहे नकली प्रोडक्ट

केस1: नामी ब्रांड का फाउंडेशन समझकर खरीदा, मगर वो नकली था ये वाकया निकिता के साथ हुआ। वह बताती है कि ज्यादातर दुकानों पर नकली प्रोडक्ट ही मिलते हैं। कई बार इस्तेमाल किए प्रोडक्ट भी ग्राहकों को दे दिए जाते हैं। कुछ दिनों पहले मैंने लोकल दुकानदार से एक ब्रांडेड कंपनी का फाउंडेशन खरीदा था। उसने बेचते वक्त कहा था कि ये ओरिजिनल है, लेकिन वह डुप्लीकेट था। जब मैंने उसे चेहरे पर लगाया तो मुझे पिंपल्स हो गए। मैंने डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा कि ये रिएक्शन उस डुप्लीकेट प्रोडक्ट की वजह से हुआ है।

केस2: दो हजार का प्रोडक्ट 200 में दिया, वो नकली था साक्षी एक कॉलेज स्टूडेंट हैं। वह कहती है कि पिछले दिनों मैंने लोकल दुकान से एक ब्रांडेड प्रोडक्ट 200 रुपए में खरीदा। जब मैंने अपनी सहेलियों को इसके बारे में बताया, तो उन्होंने कहा कि ये नकली है। दरअसल, जो प्रोडक्ट मैंने खरीदा था उसकी ऑनलाइन कीमत 2 हजार रुपए थी। मुझे लगा कि इतने सस्ते में वो ही प्रोडक्ट मिल रहा है तो इससे अच्छा क्या हो सकता है।

साक्षी कहती है कि उसके बाद से मैं प्रोडक्ट पर ध्यान देती हूं। अब मैं जो भी प्रोडक्ट खरीदती हूं। उसे प्रोफेशनल मेकअप आर्टिस्ट को दिखाती हूं। वो क्वालिटी देखकर ही बता देते हैं कि प्रोडक्ट असली है या नकली।

अब भास्कर पड़ताल….

केस 1: स्कैनर का धोखा, ओरिजिनल बोल कर बेच रहे डुप्लीकेट प्रोडक्ट्स

हमारी टीम सबसे पहले शहर के सबसे व्यस्त बाजारों में से एक, न्यू मार्केट स्थित एक कॉस्मेटिक की दुकान पर पहुंची। दुकान बाहर से काफी आकर्षक थी और उसमें लगभग सभी बड़े ब्रांड्स के उत्पाद सजे हुए थे। हमने दुकानदार से ब्रांडेड कंपनी का फाउंडेशन दिखाने के लिए कहा, जो कि प्रीमियम ब्रांड्स माने जाते हैं।

रिपोर्टर: भैया.. एक फाउंडेशन चाहिए

दुकानदार: (एक शेड कार्ड दिखाते हुए) आपके स्किन टोन के हिसाब से चाहिए?

रिपोर्टर: ये दिखने में तो अच्छा लग रहा है, लेकिन क्या ये ओरिजिनल हैं?

दुकानदार: बिल्कुल मैडम, पूरे मार्केट में सिर्फ हम ही हैं जो ओरिजिनल प्रोडक्ट्स देते हैं। हमारी गारंटी है।

रिपोर्टर: सब दुकान वाले ऐसा ही बोलते हैं। पर इसकी क्या गारंटी कि यह ओरिजिनल है?

दुकानदार: (पूरे आत्मविश्वास से) जी हां, अगर आपको यकीन नहीं तो पीछे दिए स्कैनर पर इसे स्कैन कर लीजिए, सीधे ओरिजिनल वेबसाइट पर चला जाएगा।

रिपोर्टर: अच्छा, इनकी कीमत कितनी है?

दुकानदार: दो हजार रुपए।

रिपोर्टर: दो हजार? लेकिन इस ब्रांड का ओरिजिनल फाउंडेशन तो 4000 रुपए से भी ज्यादा का आता है।

दुकानदार: हां मैडम, अभी ऑफर चल रहा है, इसलिए दाम थोड़ा कम है। लिमिटेड स्टॉक है।

रिपोर्टर: ठीक है, अब आप N*rs कंपनी का फाउंडेशन दिखाइए। ये आप कहां से लाते हैं?

दुकानदार: ये सब मुंबई से लाते हैं मैडम, आप चाहें तो इसे भी स्कैन कर लीजिए।

केस 2: ‘ओरिजिनल फर्स्ट कॉपी’ के नाम पर ज्यादा दाम में बेच रहे नकली माल

इसके बाद हमारी टीम एक और दुकान पर पहुंची। यहां हमने सीधे तौर पर पूछा कि क्या उनके पास ब्रांडेड प्रोडक्ट्स की ‘कॉपी’ मिलती है।

रिपोर्टर: एक H*da B**uty का फाउंडेशन दिखाइए।

दुकानदार: (फाउंडेशन निकालते हुए) ये लीजिए, मैडम।

रिपोर्टर: क्या ये ओरिजिनल हैं या फर्स्ट कॉपी?

दुकानदार: (थोड़ा हिचकिचाते हुए) ये ओरिजिनल नहीं हैं, फर्स्ट कॉपी हैं। यहां कौन ओरिजिनल खरीदता है? बजट में यही बेस्ट है।

रिपोर्टर: इसकी कीमत क्या है?

दुकानदार: 1500 रुपए।

रिपोर्टर: आप तो नकली माल को भी ओरिजिनल के दाम में बेच रहे हैं।

दुकानदार: मैडम, ये ‘ओरिजिनल फर्स्ट कॉपी’ है, सेकेंड और थर्ड नहीं। कोई फर्क नहीं बता सकता, बिल्कुल एक जैसी है।

रिपोर्टर: आप कहां से लाते हैं ये सब सामान, यहां तो मिलता नहीं होगा?

दुकानदार: हम मुंबई और दिल्ली से लाते हैं। वहां पूरा मार्केट है इसका। यहां इतना अच्छा माल कहीं नहीं मिल सकता।

ब्यूटी पार्लर भी इस खेल में शामिल? न्यू मार्केट में ही कॉस्मेटिक की दुकान चलाने वाले एक अन्य दुकानदार, साहिर (बदला हुआ नाम) ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘कोई भी पार्लर वाला ओरिजिनल प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल नहीं करता। अगर कोई आपसे कहे कि वह 3000 रुपए में मेकअप करेगा और ओरिजिनल प्रोडक्ट्स का उपयोग करेगा, तो वह आपको बेवकूफ बना रहा है, क्योंकि पार्लर वाले तो प्रोडक्ट्स हमारी दुकान से ही लेते हैं।’

साहिर ने आगे बताया, ‘अगर किसी डुप्लीकेट फाउंडेशन के साथ अच्छा बेस या प्राइमर, जो 400-500 का आता है, इस्तेमाल किया जाए तो नकली फाउंडेशन भी ओरिजिनल जैसा लुक देता है। पार्लर में यही ट्रिक अपनाई जाती है।’

क्यों खतरनाक हैं ये नकली प्रोडक्ट्स? त्वचा विशेषज्ञ डॉ. एकता साहू बताती हैं, ‘नकली कॉस्मेटिक्स में अक्सर पारा, सीसा, आर्सेनिक, और कैडमियम जैसे खतरनाक तत्व पाए जाते हैं, जिनकी मात्रा को नियंत्रित नहीं किया जाता। ये तत्व त्वचा में जलन, एलर्जी, मुंहासे और एक्जिमा जैसी समस्याएं पैदा कर सकते हैं। लंबे समय तक इनका उपयोग करने से त्वचा का कैंसर होने का खतरा भी बढ़ जाता है।

ये केमिकल त्वचा के पोर्स को बंद कर देते हैं, जिससे त्वचा सांस नहीं ले पाती और स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकती है।’ वे कहती हैं कि कई बार ऐसे मरीज आए जिनका चेहरा डुप्लीकेट प्रोडक्ट लगाने के कारण बर्न हो गया। अगर उस पर ध्यान नहीं दिया जाता तो ये रिएक्शन कई बार परमानेंट मार्क चेहरे पर छोड़ देता है।

डॉ. साहू के मुताबिक डुप्लीकेट प्रोडक्ट में पैराबेन नाम का केमिकल ज्यादा मात्रा में होता है, जो स्किन से हमारे ब्लड में जाता है जिसके कारण वह हमारे हार्मोन पर असर डालता है। वह बताती है कि जब भी कोई नया प्रोडक्ट खरीदें तो उसे कान के पीछे वाले हिस्से में लगा कर टेस्ट करें, और उसे कुछ देर छोड़ दीजिए।

दिवाली के समय स्किन से जुड़े केस 40% बढ़ जाते हैं एम्स भोपाल के त्वचा रोग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. मनीष खंडारे कहते हैं कि त्योहार के वक्त हमारी स्किन धुएं और सजावटी उत्पादों के संपर्क में आती है, जिससे एलर्जी या जलन की संभावना बढ़ जाती है। यही कारण है कि आम दिनों की तुलना में स्किन रिलेटेड केसेस की संख्या 40 फीसदी तक बढ़ जाते हैं। इसके अलावा महिलाएं मेकअप से जुड़े सामान को अपनी फैमिली और फ्रेंड्स के बीच शेयर करती हैं।

डॉ. खंडारे के मुताबिक त्योहार के वक्त कुछ सावधानियां त्वचा को इन खतरों से बचा सकती है। धुएं और पटाखों के अवशेषों से सीधे संपर्क से बचना चाहिए। यह एलर्जी या जलन का कारण बन सकता है। वहीं त्वचा जलने की स्थिति में तुरंत ठंडे पानी का 10 से 15 मिनट तक इस्तेमाल करना चाहिए। इस पर सिल्वर सल्फाडायजीन या एलोवेरा जेल लगाएं न कि टूथपेस्ट या मक्खन।

कैसे करें असली और नकली प्रोडक्ट की पहचान?

  • पैकेजिंग ध्यान से देखें: असली प्रोडक्ट की पैकिंग साफ-सुथरी, चमकदार और परफेक्ट होती है, जबकि नकली प्रोडक्ट्स की पैकिंग थोड़ी फीकी, धुंधली या गलत स्पेलिंग वाली हो सकती है।
  • बारकोड और क्यूआर कोड स्कैन करें: असली प्रोडक्ट स्कैन करने पर आपको सीधे ब्रांड की ऑफिशियल वेबसाइट पर ले जाएगा। अगर स्कैन करने के बाद गूगल इमेज या किसी अन्य अनजान साइट पर रीडायरेक्ट हो, तो समझिए प्रोडक्ट नकली है।
  • कीमत में बड़ा अंतर: अगर कोई ब्रांडेड प्रोडक्ट अपनी असली कीमत से बहुत ज्यादा सस्ते दाम में मिल रहा है, तो वह लगभग हमेशा डुप्लीकेट होता है।
  • खुशबू और टेक्स्चर पर ध्यान दें: असली प्रोडक्ट्स में हल्की और नेचुरल खुशबू होती है, जबकि डुप्लीकेट प्रोडक्ट्स की खुशबू तेज या केमिकल जैसी होती है। उनका टेक्स्चर भी भारी, चिपचिपा या दानेदार लग सकता है।
  • मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट जांचें: असली प्रोडक्ट पर बैच नंबर, मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट साफ-साफ और ठीक जगह पर छपी होती है, जबकि नकली प्रोडक्ट में यह या तो गायब रहती है या धुंधली होती है।
  • ब्रांड का लोगो और फोंट जांचें: नकली प्रोडक्ट्स में ब्रांड का लोगो थोड़ा टेढ़ा, धुंधला या असली से थोड़ा अलग हो सकता है। फोंट में भी मामूली अंतर मिल सकता है।
  • हमेशा विश्वसनीय स्टोर से खरीदें: हमेशा अधिकृत डीलर, ब्रांड के ऑफिशियल आउटलेट या भरोसेमंद ई-कॉमर्स वेबसाइट से ही मेकअप प्रोडक्ट्स खरीदें।



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