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Tips And Tricks: आज जब बाजारों में महंगे फुट क्रीम और लोशन की भरमार है, तब भी बघेलखंड के ग्रामीण लोग एक पुराने घरेलू नुस्खे पर भरोसा करते हैं. वे एक पेड़ से निकलने वाले दूध का उपयोग फटी एड़ियों को मुलायम बनाने के लिए करते हैं.
Tips And Tricks: पुराने जमाने में जब नंगे पैर चलना आम बात थी और पैरों में चप्पल पहनना हर किसी के लिए संभव नहीं होता था, तब फटी एड़ियां लगभग हर व्यक्ति की समस्या होती थीं. खासकर ग्रामीण महिलाएं और नंगे पैर चलने वाले साधु-संत जिनके पैरों की एड़ियां दरारों से भर जाती थीं. लेकिन, उस दौर में भी लोग आधुनिक क्रीम या लोशन के बिना अपनी एड़ियों को स्वस्थ बनाए रखते थे और इसका रहस्य छिपा था बरगद के पेड़ में. वहीं, आज भी बघेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में यह परंपरा जीवित है.
लोकल 18 से बातचीत में औषधीय विशेषज्ञ विष्णु तिवारी ने बताया कि पुराने समय में फटी एड़ियों के इलाज के लिए लोग बरगद के पेड़ के दूध (रस) का उपयोग करते थे. इस दूध को पेड़ की जड़ या तने से हल्की कट लगाकर निकाला जाता था और इसे सीधा फटी एड़ियों पर लगाया जाता था. उन्होंने बताया कि यदि इस दूध को लगातार 6 से 7 दिनों तक रोजाना दो से तीन बार फटी एड़ियों पर लगाया जाए तो एड़ियां फिर से पहले जैसी मुलायम हो जाती हैं. बरगद के दूध में एंटी-बैक्टीरियल. एंटी-फंगल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं. ये गुण त्वचा की नमी बनाए रखने, दरारों को भरने और संक्रमण से बचाने में मदद करते हैं. यही कारण है कि इसे पुराने समय का प्राकृतिक लोशन कहा जाता है.
त्वचा की अन्य समस्याओं में भी फायदेमंद
विशेषज्ञों का कहना है कि बरगद के दूध का उपयोग केवल फटी एड़ियों तक सीमित नहीं है. इसका प्रयोग त्वचा की कई अन्य समस्याओं जैसे एलर्जी, मुहांसे और दाग-धब्बों को दूर करने के लिए भी किया जाता था. इसके अलावा बरगद के पत्तों को पीसकर लेप के रूप में लगाने से खुजली और पिगमेंटेशन में भी राहत मिलती है. यह त्वचा की रंगत को समान करने और उसे प्राकृतिक चमक देने में मदद करता है.
ग्रामीण इलाकों में आज भी जारी परंपरा
सतना और आसपास के गांवों में आज भी कई लोग बरगद के दूध का उपयोग करते हैं. खासतौर पर सर्दियों के मौसम में जब हाथ-पैरों की नमी गायब हो जाती है तो लोग इसे प्राकृतिक मॉइश्चराइजर के रूप में इस्तेमाल करते हैं. ग्रामीण महिलाएं इसे पारंपरिक घरेलू नुस्खा मानकर पीढ़ी दर पीढ़ी अपनाती आई हैं. बरगद के पेड़ का दूध आज भी बघेलखंड की परंपरा और आयुर्वेदिक ज्ञान का प्रतीक माना जाता है जो आधुनिक युग में भी उतना ही कारगर है जितना सदियों पहले था.
एक दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय. प्रिंट मीडिया से शुरुआत. साल 2023 से न्यूज 18 हिंदी के साथ डिजिटल सफर की शुरुआत. न्यूज 18 के पहले दैनिक जागरण, अमर उजाला में रिपोर्टिंग और डेस्क पर कार्य का अनुभव. म…और पढ़ें
एक दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय. प्रिंट मीडिया से शुरुआत. साल 2023 से न्यूज 18 हिंदी के साथ डिजिटल सफर की शुरुआत. न्यूज 18 के पहले दैनिक जागरण, अमर उजाला में रिपोर्टिंग और डेस्क पर कार्य का अनुभव. म… और पढ़ें
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.