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Ujjain ki Ajab Gajab Diwali: उज्जैन में दीपावली पर अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जहां माता महालक्ष्मी की बजाय पूर्वजों की पूजा की जाती है. नागदा के ग्राम डाबरी सहित कई गांवों में गुर्जर समुदाय पितृ पूजन करता है, जिसमें खीर-चूरमे का भोग लगता है. पूर्वजों की याद में पीपल और घास की रस्सी विसर्जित की जाती है. इस दौरान तीन दिनों तक गांव से बाहर नहीं जाते जानिए क्यों.
शुभम मरमट / उज्जैन. मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में हर पर्व बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. यहां कई परम्परा ऐसी भी है जिसको आज भी निभाया जाता है. दीपावली के त्योहार पर वैसे तो सभी माता महालक्ष्मी और भगवान श्री गणेश का पूजन अर्चन कर शुभ समृद्धि की कामना करते हैं. लेकिन जिले में कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां पर दीपावली पर अनोखी परंपरा देखने को मिलती है. ऐसा ही एक गांव में दीपावली पर माता महालक्ष्मी की पूजा करने के अलावा पूर्वजों की पूजा की जाती है. इस दौरान पूर्वजों के निमित तर्पण कर खीर और चूरमे का भोग लगाया जाता है. साथ ही पूर्वजों की याद में पीपल और घास की रस्सी भी पूर्वजों की याद में नदी में विसर्जित की जाती है.
अनूठी पूजा में होता है बेल का इस्तेमाल
दीपावली से पहले गुर्जर समाज के सभी पुरुष एक साथ मिलकर घास और पीपल की पत्तियों से लंबी बेल बनाते हैं. दीपावली के दिन एक ही गोत्र और परिवार के लोग पानी के स्थान पर जुटते हैं, यहां खीर और पकवान बनाकर बेल पकड़कर अपने पूर्वजों को याद करते हुए पानी में विसर्जित करते हैं. बेल के समान वंश वृद्धि की कामना के लिए यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी निभाई जा रही है.
ऐसे हुई परंपरा की शुरुआत
गांव के नरसिंह गुर्जर और भैरुसिंह गुर्जर ने बताया कि वनवास के बाद भगवान राम जब अयोध्या लौटे थे तो उन्होंने राजतिलक से पहले पिता दशरथ का पुष्कर में श्राद्ध किया था. ऐसे में दीपावली पर पूर्वजों के श्राद्ध की परंपरा का निर्णय भगवान श्रीराम से प्रेरित होकर ही लिया गया था. समाज के लोगों का मानना है कि अमावस्या पर पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध करना श्रेष्ठ है. इस दिन पितरों को खीर और चूरमे का भोग लगाया जाता है और परिवार में सुख-शांति की प्रार्थना की जाती है.
जानिए कैसे हुई परंपरा की शुरुआत
ग्रामीणों का मानना है कि वनवास के बाद भगवान राम जब अयोध्या लौटे थे तो उन्होंने राजतिलक से पहले पिता दशरथ का पुष्कर में श्राद्ध किया था. ऐसे में दीपावली पर पूर्वजों के श्राद्ध की परंपरा का निर्णय भगवान श्रीराम से प्रेरित होकर ही लिया गया था. समाज के लोगों का मानना है कि अमावस्या पर पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध करना श्रेष्ठ है. इस दिन पितरों को खीर और चूरमे का भोग लगाया जाता है और परिवार में सुख-शांति की प्रार्थना की जाती है.
Shweta Singh, currently working with News18MPCG (Digital), has been crafting impactful stories in digital journalism for more than two years. From hyperlocal issues to politics, crime, astrology, and lifestyle,…और पढ़ें
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