Last Updated:
6 Unique Sports of Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश में कुछ पारंपरिक खेल इतने अनोखे और खतरनाक हैं कि देखने वाले दंग रह जाते हैं. ये खेल सिर्फ मनोरंजन नहीं हैं, बल्कि बहादुरी, आस्था और लोक परंपरा का भी प्रतीक हैं. दीपावली और अन्य त्योहारों के समय इन खेलों को देखने के लिए हजारों लोग गांवों और कस्बों में जुटते हैं. जानें कौन से है वो 6 खेल.
इंदौर से 40-50 किलोमीटर दूर गौतमपुरा कस्बे में दीपावली के दूसरे दिन हिंगोट युद्ध खेला जाता है. इसमें दो गांव के लोग पारंपरिक हथियारों के साथ हिंगोट (सूखे फल में भरा विस्फोटक) एक-दूसरे पर फेंकते हैं. यह परंपरा मुगल काल से चली आ रही है और अच्छी फसल और उपजाऊ मिट्टी की कामना के लिए निभाई जाती है. इस खेल में हर साल लोग गंभीर रूप से घायल होते हैं. कुछ की आंखों की रोशनी भी चली जाती है.

जबलपुर की सदियों पुरानी परंपरा कबूतरबाजी भी मध्य प्रदेश के प्रमुख खेलो में शामिल है. इसमें प्रशिक्षित कबूतरों को उड़ाकर उनकी दौड़ लगाई जाती है. मालिक अपने कबूतरों को आवाज और संकेत से नियंत्रित करते हैं. हालांकि यह खेल सुनने या देखने में जितना रोचक लगता है, उससे कही ज्यादा खतरनाक है. लेकिन तेज गति से उड़ते कबूतरों और उनकी ट्रेनिंग के दौरान अक्सर चोट लग जाती है.

निमाड़ और खरगोन जिले में पाड़ा दंगल आयोजित किया जाता है. इसमें पशु पालक अपने भैंसों को कुश्ती के लिए तैयार करते हैं और वे मैदान में आमने-सामने लड़ने के लिए उतारते है. दीपावली के अगले दिन इसे परंपरा के रूप में खेला जाता है. इस रोमांचक मुकाबले के दौरान कई बार भैंसे गंभीर रूप से घायल हो जाते है. जबकि, कुश्ती के दौरान देखने वालों पर ही ये भैंसे हमला कर देते है, जिससे लोगों को गंभीर चोट आ जाती है.

राजगढ़ जिले के सुल्तानिया गांव में दीपावली के दूसरे दिन गौ छोड़ या छोड़ा उत्सव मनाया जाता है. इसमें लकड़ी का छोड़ा गाय के सामने रखा जाता है और उसकी गंध से गाय उसे मारने के लिए दौड़ती है. ग्रामीण इसे देवताओं का खेल मानते हैं और इसे अच्छी फसल और खुशहाली के लिए निभाते हैं. लेकिन, दौड़ती गाय के पास होने से कई बार लोग चोटिल हो जाते है.

उज्जैन जिले के भिडावद गांव में दीपावली के दूसरे दिन गौ दौड़ का आयोजन होता है. यहां श्रद्धालु जमीन पर लेटते हैं और उनके ऊपर से सैकड़ों गायें दौड़ती हुई गुजरती हैं. लोग इसे मन्नत पूरी होने के लिए निभाते हैं. लेकिन, इस खेल के दौरान जमीन पर लेटने वाले लोग कई बार चोटिल हो चुके है. बावजूद इसके ग्रामीण इसे आस्था और बहादुरी के प्रतीक के रूप में हर साल निभाते हैं.

छिंदवाड़ा के पांढुर्णा में हर साल गोटमार खेला जाता है. इसमें दो पक्ष नदी के किनारे खड़े होकर एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं. इसे साहस और परंपरा का प्रतीक माना जाता है. लेकिन, यह खेल पत्थर लगने से लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और कई बार अपनी जान भी गंवा देते हैं. यह खेल बेहद खतरनाक माना जाता है

मध्य प्रदेश के ये खेल न केवल रोमांचक हैं, बल्कि ग्रामीण जीवन और लोक संस्कृति की झलक भी देते हैं. हिंगोट युद्ध, पाड़ा दंगल, गौ छोड़, गौ दौड़, कबूतरबाजी और गोटमार जैसे खेल पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे हैं. इन खेलों में जोखिम और खतरनाक पहलू होने के बावजूद लोग इन्हें अपनी आस्था, बहादुरी और परंपरा के प्रतीक के रूप में निभाते हैं.